Dharamsthal: उत्तर प्रदेश में कानपुर का बिठूर क्षेत्र पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक प्रमाणों से भरा हुआ है. इसी बिठूर के वाल्मीकि आश्रम में माता जानकी ने गर्भावस्था का समय बिताया था जब उन्हें मर्यादाओं से बंधे अयोध्या के राजा प्रभु राम ने जनता के एक आरोप पर निकाल दिया था, इसी तपोभूमि पर एक अति प्राचीन मंदिर है उजियारी देवी जो मैनावती मार्ग पर स्थित है कभी इस स्थान तक पवित्र गंगा नदी बहती थीं. मान्यता है कि सात शुक्रवार तक लगातार दर्शन करने से माता मनोकामना पूरी करती हैं. मंदिर में प्रतिदिन सुबह 5.30 बजे मंगला आरती और शाम 7.30 बजे संध्या आरती होती है. मां को हलुआ, चना और खीर तथा नारियल का भोग लगता है.
त्रेता युग में यहां पर घना जंगल था और महर्षि वाल्मीकि अपने आश्रम में रह कर प्रभु चिंतन करते थे. उनके आश्रम से कुछ दूरी पर घना जंगल देख श्री राम के आदेश पर लक्ष्मण जी माता सीता को उस समय यहां पर छोड़ गए थे जब वे गर्भावस्था से थीं. लक्ष्मण के जाने के बाद त्रिकालदर्शी महर्षि वाल्मीकि ने अपनी कुछ महिला शिष्यों को भेज सीता जी को आश्रम में बुलवा लिया और वहीं पर रहने के लिए कुटिया दे दी. यहां पर रहते हुए ही श्री राम की पत्नी सीता ने दो पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम लवकुश रखा गया. इन दोनों बालकों ने भी ऋषि पुत्रों के समान महर्षि से वेद और शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण की. दोनों बालकों के बड़े होने पर महर्षि के निर्देश पर आश्रम से करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित उजियारी देवी मंदिर में लव-कुश का मुंडन संस्कार कराया था. मैनावती मार्ग पर यह मंदिर ऊंचे टीले पर स्थित है क्योंकि गंगा जी भी यहीं से बहती थीं जो अब कुछ दूरी पर हो गयी हैं.
मंदिर का इतिहास क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के अत्याचारों से भी जुड़ा है धूधूपंत नानाराव पेशवा के पिता पेशवा बाजाराव का बिठूर में शासन था
क्रांतिकारियों से जुड़ा मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के अत्याचारों से भी जुड़ा है. धूधूपंत नानाराव पेशवा के पिता पेशवा बाजाराव का बिठूर में शासन था, उन्हीं की सेवा में थे मोरोपंत जिनकी बेटी का नाम तो मणिकर्णिका था किंतु प्यार से लोग उन्हें मनु कह कर बुलाते थे. मनु नानाराव पेशवा की मुंहबोली बहन होने के साथ ही बहुत बहादुर थीं और उनकी एक सहेली का नाम था मैना. वे मैना के साथ अक्सर उजियारी देवी मंदिर में आकर मां की पूजा आराधना करती थीं. उन्हीं मैना के नाम पर इस सड़क का नाम मैनावती मार्ग रखा गया जो कानपुर नगर को बिठूर से जोड़ती है. इतना ही नहीं आजादी की लड़ाई में भी इस मंदिर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह और राजगुरु आदि की तो यह मंदिर शरण स्थली थी. दरअसल यह स्थान गंगा से घिरा एक सघन वन क्षेत्र था जहां छिपना और गंगा अथवा जंगल के रास्ता भागना आसान होता था. आज भी मन्दिर परिसर में एक प्राचीन कुआं है. यह कुआं वास्तव में एक सुरंग है जो मंदिर से पांच किलोमीटर दूर गंगा तट पर खुलती थी. इसी मार्ग से क्रांतिकारियों का आना जाना होता था.
पर्यटन मानचित्र में हुआ शामिल
उजियारी देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष मनीष त्रिपाठी बताते हैं कि उत्तर प्रदेश राज्य पर्यटन विभाग ने उजियारी देवी मंदिर को भी पर्यटन मानचित्र में शामिल करते हुए करीब डेढ़ करोड़ की राशि से विकास कार्य शुरु कराया है. जल्द ही मंदिर में माता सीता और लव-कुश की प्रतिमाएं भी लगाई जाएंगी. मानस का जिक्र करते हुए वे बताते हैं कि उसमें गोस्वामी जी ने खेवनार और जेवनार शब्दों का उल्लेख किया है. दरअसल लव-कुश के मुंडन के समय इस मंदिर में मां शारदा, मां लक्ष्मी और मां कालिका के तीन विग्रह थे जो आज भी हैं. छौल कर्म के बाद महर्षि की तरफ से लोगों को खेवरा और जेवरा बांटा गया जिसका अपभ्रंश खेवनार और जेवनार है जिन्हें अब ख्योरा और ज्योरा बोला जाता है.