Badrinath Temple : विश्व का अनोखा मंदिर जिसका हर युग में बदल जाता है नाम, क्या है इसके पीछे का रहस्य और महिमा

0
370
चार धामों में से एक बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जो देवभूमि उत्तराखंड में स्थित है.

Badrinath Temple : चार धामों में से एक बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जो देवभूमि उत्तराखंड में स्थित है. आद्य शंकराचार्य की तपोभूमि बद्रीनाथ को बद्री नारायण और बद्री विशाल भी कहा जाता है, जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं.   

बद्रीवृक्ष प्रकट करने से पड़ा नाम

कहा जाता है कि भगवान विष्णु पृथ्वी लोक में किसी शांत स्थान की तलाश कर रहे थे, जहां पर वे ध्यान कर सकें. उन्हें बद्रीनाथ स्थल अपने अनुकूल लगा क्योंकि वहां अखंड शांति थी, यहीं पर विष्णु जी ध्यान में इतना गहरे डूबे कि उन्हें कड़ाके की ठंड का भी आभास नहीं हुआ. उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी ने उन्हें खराब मौसम से बचाने के लिए बद्री वृक्ष को प्रकट किया. ध्यान पूर्ण होने के बाद उन्होंने लक्ष्मी जी की भक्ति से प्रभावित हो कर इस स्थान का नाम बद्रीकाश्रम रखा. विष्णु पुराण, महाभारत और स्कंद पुराण में इस स्थल का उल्लेख है. एक अन्य प्राचीन ग्रंथ के अनुसार इस स्थल पर धर्म के पुत्र नर और नारायण अपना आश्रम बनाने के लिए इस स्थान पर आए थे. दोनों ही भगवान विष्णु का अवतार माने जाते हैं. जब वे अलकनंदा के झरनों वाले स्थान पर पहुंचे तो देख कर प्रसन्न हुए कि आश्रम के लिए यही स्थान श्रेष्ठ है. यहां पर स्थित विष्णु जी की प्रतिमा को बद्रीविशाल कहा जाता है, जिसे स्वयंभू माना जाता है. भगवान विष्णु को ही समर्पित पास के अन्य चार मंदिरों योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री और आदि बद्री के साथ जोड़कर पूरे समूह को पंच बद्री के रूप में जाना जाता है. मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में कराया गया था. मंदिर में शालिग्राम शिला से निर्मित बद्रीनाथ की मूर्ति स्थापित की गई है.

यहां पर स्थित विष्णु जी की प्रतिमा को बद्रीविशाल कहा जाता है जिसे स्वयंभू माना जाता है

हर काल में अलग-अलग नाम

इस मंदिर की विशेषता है कि हर काल में अलग अलग नामों से इस स्थान को पुकारा गया. स्कंद पुराण के अनुसार सतयुग में इस स्थान को मुक्तिप्रदा कहा गया जबकि त्रेता युग में भगवान नारायण ने इस क्षेत्र को योग सिद्ध और द्वापर में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन के कारण इसे मणिभद्र आश्रम या विशाला तीर्थ कहा गया. कलयुग में इस स्थान को बद्री विशाल के रूप में जाना जा रहा है. महाभारत काल की मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर पांडवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था, यही कारण है कि बद्रीनाथ के ब्रम्हाकपाल क्षेत्र में आज भी तीर्थयात्री अपने पितरों का आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं. 

अनोखा है तप्तकुंड 

पवित्र अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है,  बद्रीनाथ मंदिर में ही मौजूद है अनोखा कुंड. इस कुंड का पानी हर मौसम में गर्म रहता है जिसके कारण इसका नाम ही तप्तकुंड पड़ गया भले ही आसपास का तापमान शून्य के आसपास हो. मंदिर में पानी के दो तालाब हैं जिन्हें नारद व सूर्य कुंड कहा जाता है. 

पुजारी बनाने की परम्परा

उत्तर भारत में स्थित बद्रीविशाल मंदिर में मुख्य पुजारी जिन्हें रावल कहा जाता है, परम्परागत रूप से केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं. माना जाता है कि यह परम्परा आदि शंकराचार्य ने शुरु की थी. मुख्य पुजारी की नियुक्ति के लिए केरल सरकार से अनुरोध किया जाता है. गढ़वाल नरेश केरल से भेजे गए पुजारी को मंजूरी प्रदान करते हैं. वैष्णव पंथ के ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले रावल के लिए संस्कृत में आचार्य की उपाधि होना आवश्यक है. इसके साथ ही उसका मंत्रोच्चारण स्पष्ट और पवित्र ग्रंथों को पढ़ने में निपुण होना चाहिए. पुजारी को रावल के पद पर बिठाने के लिए तिलक समारोह आयोजित होता है. 

मौसम के हिसाब से तय होतीं, यात्रा की तिथियां

बद्रीनाथ मंदिर के आसपास सर्दियों में मौसम की स्थितियां बहुत ही खराब रहती हैं, जिसे देखते हुए सामान्य तौर पर नवंबर से अप्रैल तक मंदिर के पट बंद ही रहते हैं. श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के दर्शन की तिथियां हिंदू पंचांग के अनुसार तय की जाती हैं. नियमानुसार वसंत पंचमी को पट खुलने और विजयादशमी को पट बंद होने की तिथियां घोषित की जाती हैं.

+ posts

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here