संतान सुख और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए करें गुरुवार का व्रत..भगवान विष्णु की कृपा से मिलता है सुख शांति और समृद्धि का फल

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Vedeye Desk 

सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित है. गुरुवार का दिन देव गुरु बृहस्पति को समर्पित है. इस दिन बृहस्पति देव का पूजन और व्रत करने से मनुष्य को धन, विद्या, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा के साथ भगवान विष्णु जी की कृपा भी प्राप्त होती है. बृहस्पति को बुद्धि और शिक्षा का कारक माना जाता है. 

पूजन विधि

बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए विशेष रूप से गुरुवार के दिन केले के वृक्ष की जड़ में विष्णु जी का हल्दी और चने दाल तथा गुड़ से पूजन किया जाता है. इस दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र पहनने चाहिए और पूरे दिन में केवल एक ही समय पीले चने की दाल आदि का भोजन करना चाहिए, व्रत के दिन नमक का सेवन वर्जित है.

बृहस्पतिवार व्रत कथा

प्राचीन काल में एक दानी और प्रतापी राजा राज्य करता था. वह प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखता था. उनके दरवाजे से कोई निराश नहीं लौटता. यह सब देख उनकी रानी नाराज रहती थी. एक दिन राजा शिकार खेलने गए तो बृहस्पति देव उनके घर पर साधु वेश में आए तो रानी ने कहा कि वह रोज के दान कर्म से तंग आ चुकी है, कोई ऐसा उपाय बताएं कि सब धन संपदा नष्ट हो जाए और मैं आराम से रहूं. साधु ने कहा कि यह तो अच्छा कार्य है, धन से लोक हित के कार्य करो, किंतु रानी के न मानने पर साधु महाराज ने कहा कि हर बृहस्पतिवार के दिन घर को गोबर से लीपना, बालों को धोना, राजा से दाढ़ी बनवाने को कहना और मांस मदिरा का सेवन करने से सात बार के अंदर ही सारा धन नष्ट हो जाएगा. 

रानी ने वैसा ही करना शुरु किया किंतु तीन बार के बाद ही सब कुछ नष्ट हो गया राजा दूसरे स्थान पर जाकर जंगल में लकडी काट कर जीवन निर्वहन करने लगा. इधर दुखी रानी ने अपनी दासी से कहा कि पास के नगर में मेरी एक धनवान बहन है, उसके घर से जाकर कुछ भोजन ले आओ. दासी बृहस्पतिवार के दिन पहुंची जब उसकी बहन पूजा कर रही थी, दासी के आवाज देने के बाद भी उत्तर न मिलने पर निराश होकर वह लौट आई और पूरी बात बताई तो रानी बोली इसमें उसका कोई दोष नहीं है, बुरे समय में ऐसा ही होता है. 

उधर बहन बृहस्पतिदेव की पूजा कर उठी तो दासी के आने की जानकारी मिली तो दौड़ी दौड़ी अपने बहन के घर पहुंची और बताया कि पूजा करने के कारण वह दासी से नहीं मिल सकी. रानी ने बहन को पूरी बात बतायी तो उसने कहा देखो हो सकता है तुम्हारे घर पर ही कहीं कुछ अनाज मिल जाए. दासी अंदर गयी तो देखा अनाज से भरी एक मटकी रखी है. दासी के कहने पर उसने बृहस्पतिदेव की कथा की विधि पूछी और अगले बृहस्पतिवार को विधि के अनुसार पूजा की किंतु खाने के लिए कुछ न मिला तभी देखा कि एक सज्जन दो थाल भोजन देकर चले गए कि तुम रानी के साथ भोजन कर लेना. दासी ने रानी से भोजन करने के लिए कहा तो वह बोली क्यों मजाक करती है, इस पर दासी ने पूरी बात बतायी. दोनों ने बृहस्पतिदेव को प्रणाम कर भोजन प्रसाद किया और व्रत करने लगीं. इससे उनके पास धन धान्य खूब आ गया और रानी पहले की तरह आलस्य करने लगी दो दासी ने समझाया कि धन को पुण्य के कार्य में लगाओ. 

इधर लकड़ी काट कर गुजर बसर कर रहे राजा के पास बृहस्पतिदेव साधु बन कर पहुंचे और उनकी चिंता का कारण पूछा. पूरी बात बताने पर साधु ने कहा कि तुम्हारी पत्नी द्वारा बृहस्पतिदेव का अनादर करने के कारण ही यह सब हुआ है. अब तुम्हारी पत्नी व्रत करने लगी है. साधु के कहने पर राजा को अगले दिन लकड़ी बेचने से दोगुना धन मिला और उसने अगले बृहस्पति वार को व्रत व पूजा की. धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो गया और राजा फिर से अपने महल में रहने लगा लेकिन बृहस्पतिदेव की पूजा करना नहीं भूला. 

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