छठ पूजा की तैयारियों में आम जन से लेकर सरकार तक जुट गई है. कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि अर्थात 5 नवंबर मंगलवार से शुरु होने वाला यह पर्व सप्तमी के दिन उदित होते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पूर्ण होता है जो 8 नवंबर शुक्रवार को है. हिंदू धर्म में सबसे कठिन व्रतों में शामिल इस पूजा में 36 घंटे तक व्रती निर्जला रहते हैं. यह व्रत महिलाएं अपने पुत्र और पति की लंबी आयु, रोग मुक्त जीवन और सुख समृद्धि की कामना से रखती हैं. जिस तरह करवा चौथ का व्रत अब महिलाओं के साथ पुरुष रखने लगे हैं, ठीक उसी तरह इस व्रत को भी पुरुषों ने अपना लिया है.
नहाय खाय में क्या करें
पांच नवंबर मंगलवार को पूरे घर की अच्छी तरह से सफाई करने के बाद स्नान और शुद्ध शाकाहारी सात्विक भोजन का सेवन करने के साथ ही व्रत का पहला चरण नहाय खाय शुरु जाएगा. स्नान पवित्र नदी या तालाब में किया जाता है किंतु बहुत से लोग घर में पानी की बाल्टी में थोड़ा सा गंगाजल डाल कर उसे शुद्ध और पवित्र कर लेते हैं. यूं तो व्रती सात्विक भोजन खाने की शुरुआत दशहरा होते ही कर देते हैं यानी बीते 15 दिनों से ऐसा क्रम शुरु कर दिया जाता है किंतु इस दिन से विशेष ध्यान रखा जाता है. परिवार के लोग बाहर का खानपान वर्जित कर देते हैं.
खरना 6 को, इन बातों का रखना होगा ध्यान
नहाय खाय के अगले दिन अर्थात 6 नवंबर पंचमी तिथि को खरना होगा. इसमें व्रती दिन भर व्रत रखने के बाद शाम को संध्या पूजा के बाद गाय के दूध और गुड़ से बनी खीर को रोटी और फलों के साथ खाकर निर्जला व्रत शुरु कर देते हैं.
अस्तांचल और उदित सूर्य को अर्घ्य
इसके अगले दिन यानी 7 नवंबर षष्ठी तिथि जो छठ पूजा का तीसरा दिन होता है, जिस दिन व्रती सूर्यास्त के समय किसी पवित्र नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं. सूर्यदेव की पत्नी प्रत्यूषा अर्थात सूर्य की अंतिम किरण को देखते हुए अर्घ्य देने का विधान है. पूजा के चौथे दिन 8 नवंबर शुक्रवार सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य की पहली किरण अर्थात सूर्यदेव की पत्नी ऊषा का दर्शन करते हुए अर्घ्य दिया जाएगा. इसके बाद तालाब या नदी किनारे बनायी गयी वेदी पर पूजा करने के साथ ही छठ मैया के महत्व की कथा परिवारी जनों के साथ बैठ कर सुनी और सुनाई जाती है. इसके बाद आरती कर व्रत का पारण किया जाता है. बाद में प्रसाद सभी लोगों के बीच वितरित किया जाता है.