मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर मनौती का दीया जला कर पूर्णता का परिचय देते हैं.
Chandrika Devi Temple :उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के मध्यक्षेत्र में देवनगर (रायपुरवा) कालपी रोड पर स्थित यह देवी सिद्धपीठ करीब डेढ़ सौ वर्षों से आस्था, भक्ति और चमत्कार का केंद्र है. मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर मनौती का दीया जला कर पूर्णता का परिचय देते हैं. इस मंदिर की एक और विशेषता है कि यहां पर कमल के पत्ते पर बीते 47 वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है. कानपुर के रायपुरवा क्षेत्र के देवनगर में सिद्धपीठ के रूप में प्रतिष्ठित चण्डिका देवी मंदिर आने वाले भक्तों की श्रद्धा, तपस्या के साथ ही आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र भी है. इस मंदिर की स्थापना के पीछे ईश्वरीय प्रेरणा और दिव्य संकेत की विलक्षण कथा भी समाहित है. वर्तमान में जिस स्थान पर मंदिर है, इस क्षेत्र का पुराना नाम बसऊपुरवा था जो कालांतर में रायपुरवा के रूप में चलन में आ गया. यहां आने वाले श्रद्धालु मां चण्डिका देवी के आशीर्वाद से आत्मिक संतोष एवं आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करते हैं. मंदिर का पवित्र वातावरण भक्तों के हृदय में शांति और श्रद्धा का संचार करता है. मंदिर के कारण ही चौराहा का नाम चण्डिका देवी चौराहा है.
राजस्थान के जिला करौली में प्रसिद्ध मेंहदीपुर बालाजी मंदिर के निकट टोडाभीम तहसील है
गौड़ परिवार को इस तरह मिली मंदिर स्थापना की प्रेरणा
राजस्थान के जिला करौली में प्रसिद्ध मेंहदीपुर बालाजी मंदिर के निकट टोडाभीम तहसील है. इसी तहसील के एक गांव भजेड़ा पाटोली से स्मृति शेष पंडित धारामल गौड़ ने अपने सुपुत्र आचार्य कन्हैया लाल गौड़ के साथ कानपुर नगर में आए और इस स्थान पर रहने लगे. ऐसी मान्यता है कि एक रात्रि, पंडित धारामल गौड़ को स्वप्न में शीतला माता का दिव्य आदेश प्राप्त हुआ कि “हे भक्त! मेरा धाम इस पुण्यभूमि पर स्थापित करो, यहां मेरी कृपा से असंख्य भक्तों के कष्टों का निवारण होगा और मैं सदा अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करूंगी” इस दिव्य संदेश को पाकर धारामल गौड़ ने तुरंत ही इस पावन कार्य का संकल्प लिया. उन्होंने अपने परिवार के संग कुछ धनी वैश्य परिवारों का सहयोग लेकर राजस्थानी शिल्पकला के आधार पर मंदिर का निर्माण कराया.
मंदिर की आध्यात्मिकता और पूजन व्यवस्था
मंदिर की स्थापना के बाद अनेकों वर्षों तक आचार्य पंडित कन्हैया लाल गौड़ ने पूजन-अर्चन किया. उनके देहावसान के बाद उनके छोटे भाई स्मृति शेष पंडित हरसहाय गौड़ और उनके ज्येष्ठ पुत्र स्मृति शेष पंडित श्रवण कुमार गौड़ ने अपनी निष्ठा और तपस्या से मंदिर की सेवा आराधना की. मंदिर के गर्भगृह में मां चण्डिका देवी के साथ श्री गणेश एवं श्री भैरव जी की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं. मान्यता है कि इन विग्रहों की पूजा-अर्चना से भक्तों के समस्त विघ्न नष्ट होते हैं. मंदिर प्रांगण में स्थित प्राचीन नर्मदेश्वर महादेव शिवालय इस स्थल के आध्यात्मिक महत्व को और भी बढ़ा देता है.
अखण्ड ज्योति का चमत्कार
मन्दिर के संस्थापक पंडित धारामल गौड़ के प्रपौत्र दीन दयाल गौड़ ने बताया कि उनके पिता स्मृति शेष आचार्य मुरारी लाल गौड़ ने वर्ष 1978 में सरसों के तेल का उद्योग स्थापित करने की मनोकामना मां से की. जब उनकी यह अभिलाषा पूर्ण हुई तो उन्होंने माता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए मां चण्डिका देवी ऑयल मिल के नाम से फर्म स्थापित की. इसके साथ ही उन्होंने मंदिर के गर्भगृह में कमल के पत्तों पर सरसों के तेल का दीप प्रज्ज्वलित किया. यही दीप आज अखण्ड ज्योति के रूप में प्रज्वलित है, जो भक्तों की अटूट आस्था और मां की अनुकंपा का प्रतीक बन चुका है.
दैवीय दर्पण और मां के प्रत्यक्ष दर्शन का चमत्कार
मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित एक विशेष दर्पण में मां के दर्शन करने पर उनका मस्तक श्रद्धा से कुछ झुका हुआ प्रतीत होता है. किंतु एक अद्भुत तथ्य यह है कि अष्टमी पूजन के पावन क्षणों में कुछ समय के लिए देवी मां का शीश पूर्णतः सीधा दिखाई देने लगता है. भक्तों का विश्वास है कि यह देवी मां की कृपा का प्रत्यक्ष संकेत है, जो उनके आशीर्वाद का साक्षात प्रमाण है.
नवरात्रि महोत्सव की दिव्यता
चैत्र एवं शारदीय नवरात्र के शुभ अवसर पर मंदिर में विशेष अनुष्ठान एवं पूजन होते हैं. नौ दिनों तक भक्तगण श्रद्धा एवं आस्था के साथ नारियल और चुनरी अर्पित करते हैं. मनोकामनाएं पूर्ण होने के उपरांत, श्रद्धालु यहां “मनौती के दीपक” प्रज्वलित कर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं. मंदिर में नवरात्र के दौरान विशेष हलुआ प्रसाद अर्पित करने की परंपरा है. माता को अर्पित यह प्रसाद भक्तों में वितरित किया जाता है, जिससे वे मां की कृपा एवं दिव्य आशीर्वाद का पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं.
JAI MAA CHANDIKA DEVI AND SHRI DEEN DAYAL JI DWARA BATAI SAHI JANKARI.