Birth of Bhimsen & Arjun :  जानिए युधिष्ठिर के बाद किस देवता के आह्वान पर हुआ भीमसेन और अर्जुन का जन्म 

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देवता के आह्वान पर कुंती ने भीमसेन और अर्जुन को जन्म दिया।

Birth of Bhimsen & Arjun :  युधिष्ठिर के जन्म के कुछ समय बाद राजा पाण्डु ने कुन्ती से फिर कहा, प्रिये ! क्षत्रिय जाति बल प्रधान है और क्षत्रियों की पहचान बल से ही है, इसलिए एक ऐसा पुत्र पैदा करो जो संसार में सबसे अधिक बलवान हो। पतिदेव की आज्ञा पाते ही कुन्ती ने  इस बार वायुदेव का आह्वान किया। उनके आह्वान करने के कुछ देर बाद ही हिरन पर सवार होकर वायुदेव कुन्ती के सामने उपस्थित हुए। कुन्ती ने उनसे महा बलशाली अत्याधिक पराक्रमी पुत्र की कामना की। 

बालक के गिरने से चट्टान हो गई चूर-चूर

कुन्ती की कामना फलीभूत हुई, कुछ समय के बाद उन्होंने महा पराक्रमी बालक को जन्म दिया और उसी समय भविष्यवाणी हुई, यह पुत्र बलवानों में शिरोमणि रहेगा। ऋषि वैशम्पायन ने राजा जनमेजय को बताया कि उस बालक का नाम भीमसेन रखा गया। भीमसेन के पैदा होते ही एक बहुत ही विचित्र घटना हुई। भीमसेन अपनी मां की गोद में सो रहे थे, तभी वहां पर एक बाघ आया। उससे डर कर कुन्ती तो भीमसेन को छोड़ कर भाग निकलीं तो भीमसेन एक चट्टान पर गिरे, लेकिन यह क्या चट्टान तो चूर-चूर हो गयी। इस नजारे को देख कर पाण्डु भी हक्का-बक्का रह गए। जिस दिन भीमसेन का जन्म हुआ, उसी दिन दुर्योधन का भी जन्म हुआ था। 

पाण्डु ने तीसरे पुत्र की कामना की

धर्म का पालन करने वाला और बलशाली दो पुत्र पाने के बाद पाण्डु की अभिलाषा अब एक ऐसा पुत्र पाने की हुई जो दुनियां में सर्वश्रेष्ठ माना जाए, उन्होंने अपनी इच्छा कुन्ती को बताते हुए कहा, देवताओं में सबसे श्रेष्ठ इंद्र हैं, यदि वे किसी प्रकार संतुष्ट हो जाएं तो मुझे पुत्र का दान कर सकते हैं। ऐसा विचार कर उन्होंने कुन्ती को एक वर्ष तक व्रत करने की आज्ञा दी। वे स्वयं भी सूर्य के सामने एक पैर से खड़े होकर तप करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर इंद्र एक दिन प्रकट हुए और बोले, हे कुन्ती ! मैं तुम्हें एक विश्वविख्यात, ब्राह्मण, गाय और अच्छे हृदय वालों का सेवक तथा शत्रुओं का नाश करने वाला श्रेष्ठ पुत्र दूंगा। 

अर्जुन के जन्म पर हुई कैसी आकाशवाणी

इसके बाद पाण्डु ने कुन्ती से कहा कि मैंने इंद्रदेव को प्रसन्न कर वर प्राप्त कर लिया है अब तुम उनका आह्वान करो, कुन्ती ने वैसा ही किया तो देवराज इंद्र प्रकट हुए और अर्जुन का जन्म हुआ। अर्जुन के जन्म लेते ही गंभीर आकाशवाणी हुई, कुन्ती ! तुम्हार यह पुत्र कार्तवीर्य अर्जुन और भगवान शंकर के समान पराक्रमी तथा इंद्र के समान अपारजित होकर तुम्हारा यश बढ़ाएगा। जैसे विष्णु ने अपनी माता अदिति को प्रसन्न किया था, वैसे ही यह तुम्हें प्रसन्न करेगा। यह बहुत से राजाओं पर विजय प्राप्त कर तीन अश्वमेध यज्ञ करेगा। स्वयं भगवान रुद्र भी इसके पराक्रम से प्रसन्न होकर इसे अस्त्र दान करेंगे। यह इंद्र की आज्ञा से निवातकवच असुर को मारेगा। आकाशवाणी को आश्रम और आसपास के लोगों ने सुना तो ऋषि मुनि और देवता भी प्रसन्न हुए।

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