Dharma : द्रुपद की विशाल सेना के साथ पांडवों का युद्ध शुरु हुआ तो भीमसेन गदा लेकर द्रुपद की सेना के भीतर घुस गए और अपनी विशाल गदा से हाथियों पर धावा बोला और उनके सिर तोड़ दिए। उन्होंने हाथी ही नहीं, घोड़े रथ और पैदल सेना को तहस-नहस कर दिया। अर्जुन ने उस युद्ध में अपने बाणों की ऐसी झड़ी लगायी कि पांचाल राज की सारी सेना ही ढ़क गयी।
अर्जुन ने द्रुपद के रथ के घोड़े और सारथि को मारा
राजा द्रुपद के पुत्र सत्यजित ने अर्जुन पर भीषण आक्रमण किया किंतु कुछ ही देर में अर्जुन ने अपने तीखे बाणों से उसे वापस लौटने को मजबूर कर दिया। इसके बाद अर्जुन ने द्रुपद का धनुष और ध्वजा को बाण से काट कर गिरा दिया। इसके बाद अर्जुन ने लक्ष्य साध कर पांच बाण छोड़े जिनसे चार घोड़े और एक सारथि को मार डाला। द्रुपद दूसरा धनुष उठाना चाहते थे कि अर्जुन हाथ में तलवार लेकर अपने रथ से कूदे और द्रुपद के रथ पर जाकर उन्हें पकड़ लिया। जैसे ही अर्जुन द्रुपद को पकड़ कर अपने गुरु द्रोणाचार्य को सौंपने के लिए चले, सारे राजकुमार राजधानी में लूटपाट मचाने लगे। इस पर अर्जुन ने अपने भाई को संबोधित करते हुए कहा, भैया भीमसेन, राजा द्रुपद कौरवों के संबंधी हैं, इनकी सेना का संहार न करें केवल गुरु दक्षिणा के रूप में राजा द्रुपद को गुरु के अधीन कर दीजिए। उन्हें अर्जुन की बात ठीक लगी और लौट चले।
द्रुपद को पकड़ कर चूर किया घमंड
इस तरह पांडव पांचाल राज द्रुपद को पकड़ कर गुरु द्रोणाचार्य के पास ले आए। अब तक उनका सारा घमंड चूर-चूर हो चुका था और धन भी छिन गया था। अब वे पूरी तरह से द्रोणाचार्य के अधीन थे। आचार्य द्रोण बोले, द्रुपद ! मैंने बलपूर्वक तुम्हारे राज्य और नगर को रौंद डाला है, अब तुम्हारा जीवन अपने शत्रु के अधीन है। क्या तुम पुरानी मित्रता चालू रखना चाहते हो। गुरु ने हंसते हुए कहा, द्रुपद ! तुम प्राणों को लेकर निराश मत हो, ब्राह्मण तो स्वभाव से क्षमाशील होते हैं। मैं चाहता हूं तुम आधे राज्य के स्वामी रहो, तुमने कहा था जो राजा नहीं वह राजा का मित्र नहीं हो सकता है इसलिए मैं भी तुम्हारा आधा राज्य लेकर राजा हो गया हूं। तुम गंगा जी के दक्षिणी किनारे और मैं उत्तरी किनारे का राजा रहूंगा। अब तुम मुझे अपना मित्र समझो। द्रुपद बोले, हे ब्राह्मन ! आप जैसे महापराक्रमी उदारहृदय महात्माओं के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मैं आपसे प्रसन्न हूं और अनंत प्रेम चाहता हूं। इतना कह कर द्रोण ने उन्हें मुक्त कर दिया और प्रसन्नता के साथ सत्कार कर आधा राज्य दे दिया। द्रुपद माकन्दी प्रदेश के नगर काम्पिल्य को राजधानी बना कर रहने लगे जिसे दक्षिण पांचाल भी कहते हैं। इधर अहिच्छत्र प्रदेश की अहिच्छत्रा नगरी में द्रोणाचार्य रहने लगे। उन्होंने अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को आशीर्वाद दिया।