Dharma : भीष्म के अनुरोध पर राजकुमारों के गुरु बने द्रोणाचार्य, जानें शिष्यों से उन्होंने ऐसा क्या मांगा 

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भीष्म का अनुरोध स्वीकार करने पर द्रोणाचार्य ने राजकुमारों को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया।

Dharma : भीष्म पितामह ने द्रोणाचार्य की बातें धैर्य और सम्मान के साथ सुनने के बाद निवेदन किया कि वे हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र और पांडु के पुत्रों को शिक्षा दें। भीष्म का अनुरोध स्वीकार करने पर उन्होंने द्रोणाचार्य को एक सुंदर सा भवन रहने के लिए दिया तो वे हस्तिनापुर में ही रहने लगे और राजकुमारों को शिष्य रूप में स्वीकार कर लिया। 

गुरु ने शिष्यों से इच्छा पूरी करने को कहा

उनकी शिक्षा का प्रभाव हुआ कि सभी राजकुमार धनुर्विद्या में पारंगत होने लगे। एक दिन शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने अपने सभी शिष्यों को पास में बुलाकर कहा, मैं चाहता हूं कि तुम लोग अस्त्र की शिक्षा समाप्त होने के बाद मेरी एक इच्छा को पूरा करो। सभी राजकुमार चुप रहे लेकिन अर्जुन ने बड़े ही उत्साह से कहा कि आचार्य की इच्छा पूरा करना शिष्य का कर्तव्य है इसलिए मैं आपकी इच्छा पूरी करने की प्रतिज्ञा करता हूं। इतना सुन कर द्रोणाचार्य बहुत ही प्रसन्न हुए, उन्होंने अर्जुन को हृदय से लगा लिया और आंखों से आंसू छलक आए। 

कर्ण ने भी पाई द्रोणाचार्य से शिक्षा

द्रोणाचार्य अपने सभी शिष्यों को उनकी योग्यता और क्षमता के अनुसार दिव्य और अलौकिक अस्त्रों की शिक्षा देने लगे। उस समय उनके शिष्यों में यदुवंशियों के साथ ही दूसरे देशों के राजकुमार भी थे। सूतपुत्र के नाम से प्रसिद्ध कर्ण भी उनसे शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। अर्जुन को धनुर्विद्या सीखने का बहुत ही उत्साह और लगन थी, वे अपने गुरु की विशेष सेवा करने लगे। इसका सार्थक परिणाम निकला और अर्जुन अन्य राजकुमारों के मुकाबले शिक्षा, बाहुबल, शस्त्रों का चतुराई और फुर्ती से प्रयोग करने में सबसे बढ़ चढ़ कर निकले। 

शिक्षा में अर्जुन ने अश्वत्थामा की बराबरी की

द्रोणाचार्य का अपने पुत्र अश्वत्थामा के प्रति विशेष प्रेम था, जो उन्हीं शिष्यों के साथ शिक्षा ग्रहण कर रहा था। द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों को पानी लाने के लिए जो बर्तन दिए, वो औरों के तो देर से भरते किंतु अश्वत्थामा का पहले ही भर जाता था। इसलिए पानी भर कर अश्वत्थामा सबसे पहले अपने पिता के पास पहुंच जाता। इस बात को बड़ी ही बारीकी से अर्जुन ने पहचान लिया और अब वे वरुणास्त्र का प्रयोग कर अश्वत्थामा से भी पहले ही पानी भर कर पहुंच जाते। इससे उनकी शिक्षा-दीक्षा गुरुपुत्र के मुकाबले किसी भी तरह कम नहीं हुई।

    

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