गुरूद्रोण को किसने राजा बनने पर आधा राज्य देने का किया वादा.
Dharma : कौरव और पांडव गुरु कृपाचार्य से धनुर्वेद की शिक्षा ले रहे थे, जिसे देख भीष्म प्रसन्न तो थे लेकिन महसूस कर रहे थे कि इन लोगों को इससे भी अधिक अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। उन्हें लगने लगा था कि अब इन युवाओं को कोई श्रेष्ठ गुरु ही शिक्षा दे सकता है। श्रेष्ठ गुरु की तलाश में उन्हें गुरु द्रोणाचार्य के बारे में बता लगा।
द्रोण ने ली आग्नेयास्त्र की शिक्षा
गुरु द्रोणाचार्य का नाम सुनते ही उनके बारे में जानने का कौतुहल राजा जनमेजय के मन में होने लगा। उन्होंने अपनी जिज्ञासा कथा सुना रहे ऋषि वैशम्पायन से कही तो उन्होंने उनके और गुरु के पुत्र के जन्म के बारे में विस्तार से बताया। गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त महाभारत के प्रथम खंड में आदिपर्व के अनुसार गंगा नदी के तट पर एक स्थान है गंगाद्वार जहां महर्षि भरद्वाज आश्रम बना कर रहते थे। एक बार वे यज्ञ करने जा रहे थे तो अन्य महर्षियों को लेकर गंगा स्नान करने गए। तट पर पहुंच कर उन्होंने देखा कि घृताची नाम की अप्सरा स्नान कर बाहर निकल रही है। उसे देख कर महर्षि भरद्वाज के मन में काम वासना जागी और उनके शरीर से पुरुष हार्मोन बहने लगा जिसे उन्होंने द्रोण नाम के यज्ञपात्र में रख दिया। कुछ समय बाद उसी से द्रोण का जन्म हुआ तो द्रोण ने वेद और वेदांगों का अध्ययन किया। महर्षि भरद्वाज अपने शिष्य अग्निवेश्य को पहले ही आग्नेयास्त्र की शिक्षा दे चुके थे, तो महर्षि की आज्ञा से अग्निवेश ने द्रोण को भी उसकी शिक्षा दी।
द्रुपद ने ली महर्षि भरद्वाज से शिक्षा
पृषत नाम के एक राजा भरद्वाज मुनि के मित्र थे। द्रोण के जन्म के समय ही उसके भी द्रुपद नाम का पुत्र पैदा हुआ तो उन्होंने उसे अपने मित्र महर्षि के आश्रम में शिक्षा लेने के लिए भेज दिया। दोनों साथ में ही शिक्षा लेने लगे तो गहरी मित्रता हो गयी। इतनी गहरी कि एक दिन द्रुपद ने द्रोण से कह दिया कि जब वो राजा बनेगा तो आधा राज्य द्रोण को दे देगा। राजा पृषत का स्वर्गवास होने पर द्रुपद पांचाल देश के राजा बने और ऋषि भरद्वाज के ब्रह्मलीन होने पर द्रोण आश्रम में रह कर तपस्या करने लगे।