Shri Bhaktmal :  “श्री भक्तमाल” का संक्षिप्त परिचय

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श्री भक्तमाल” जो भगवान के भक्तों की पुनीत गाथा है। इस पुस्तक के रचयिता श्री नाभादास जी हैं.

Shreebhaktamal : मेरे हाथ में है गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “श्री भक्तमाल” जो भगवान के भक्तों की पुनीत गाथा है। इस पुस्तक के रचयिता श्री नाभादास जी हैं जिन्होंने मूल ग्रंथ को छप्पय (छह लाइनों की छंद रूपी कविता जिसमें 24 मात्राएं होती हैं) और दोहों में लिखा है। यूं तो भक्तमाल पर बहुत सी टीकाएं लिखी और प्रकाशित हुई है किंतु संवत 1769 (ईस्वी सन् 1712) में श्री प्रियादास जी की लिखी टीका का सर्वाधिक प्रचार-प्रसार हुआ। उन्होंने अपनी इस टीका का नाम रखा “भक्तिरसबोधिनी” जिसमें भगवान के सभी भक्तों का चरित्र विस्तार से लिखा है। वैसे तो उन्होंने टीका को सरल शब्दों में ही लिखा है फिर भी बहुत से शब्दों का अर्थ आज के युवाओं को समझ में नहीं आते। ऐसे लोगों की सुविधा के लिए ही हम अपनी वेबसाइट में बहुत ही सरल और आम आदमी की समझ में आने वाले शब्दों में लिखने का प्रयास करेंगे जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कृपा के बिना पूरा नहीं हो सकता है।   

“श्री भक्तमाल” की यह पुस्तक संवत 2076 सन 2019 में पुनः छापे गए नवें संस्करण की प्रति है जिसकी पांच हजार प्रतियां छापी गई हैं। वर्तमान में संवत 2081-82 अर्थात ईसा सन 2025 चल रहा है।  “श्री भक्तमाल” की अब तक 43 हजार प्रतियां छापी जा चुकी हैं। पुस्तक में श्री विष्णु जी के 24 अवतारों की कथा के साथ ही प्रभु श्री राम के चरणों में बने हुए चिन्हों का वर्णन है। इसके बाद 12 प्रधान भक्तों के साथ ही भक्त अजामिल की कथा है। भगवान के यूं तो अनगिनत पार्षद हैं किंतु पुस्तक में 16 प्रमुख पार्षदों के बारे में भी संक्षेप में बताया गया है। इसके बाद हरिवल्लभ माता लक्ष्मी, गरुड़ जी, हनुमान जी आदि भगवान के प्रिय 22 भक्तों के बारे में बताया गया है। आगे के अध्याय में हरिध्याननिष्ठ अर्थात श्री हरि का ध्यान करने वाले भक्त नौ योगीश्वर, श्रुतदेवजी, अंगजी, सूत जी, शतरूपा जी आदि का वर्णन है।

संसार में बहुत से ऐसे भक्त भी हुए हैं जिन्होंने भगवान की भक्ति करते हुए प्रभु प्राप्ति का मार्ग पाया इस तरह के 20 भक्तों की कथा प्रभु प्राप्ति का मार्ग अनुसरण करने वाले भक्तों के अध्याय में बतायी गयी है। अनेकों ऐसे भक्त हुए जिन्होंने भगवान की माया को ही जीत लिया जिनमें महर्षि ऋभु, महाराज ययाति, निषादराज गुह, उत्तानपाद और याज्ञवल्क्य जी आदि 30 भक्तों का वर्णन है। भक्ति भी कई प्रकार की होती है जिसमें सर्वश्रेष्ठ नवधा भक्ति कहलाती है। ऐसे भक्तों का वर्णन नवधा भक्ति के आचार्य शीर्षक में किया गया है। दुनिया में भक्ति और ज्ञान का प्रचार प्रसार करने वाले बहुत से आचार्य हुए हैं किंतु पुस्तक में महर्षि पुलह, महर्षि अगस्त्य, महर्षि पुलस्त्य आदि 27 आचार्यों का वर्णन भक्ति तथा ज्ञान के प्रकाशक आचार्य शीर्षक से किया गया है। पुस्तक में 18 पुराणों व 18 स्मृतियों एवं उनके रचयिता आचार्यों, भगवान श्री राम के मंत्रियों तथा उनके सहचरों, नौ नन्दों के परिचय के साथ ही भगवान श्री कृष्ण की लीला के सहचरों, उनके 16 मित्रों, सप्तद्वीप, जम्बूद्वीप के भक्त, श्वेत द्वीप के भक्त, अष्टनागों का परिचय भी संक्षेप में लिखा गया है।

पुस्तक के आगे के अध्यायों में चतुः सम्प्रदायाचार्य, श्रीसम्प्रदाय के आचार्य, चार महान संत, श्रीरामानुजसिद्धांत के मतावलम्बी अन्य आचार्य, श्रीस्वामी रामानन्दाचार्य जी और उनके 12 प्रधान शिष्य, श्री अनन्तादास जी और उनकी शिष्य परम्परा, कलियुग में प्रेम की प्रधानता करने वाले भक्त, भक्ति से भगवान को वश में करने वाले भक्त, भवसागर पार उतारने वाले भक्त, सच्चे संत, अभिलाषा पूर्ण करने वाले भक्त, भक्तों के पालक महंत, कलियुग की भक्त नारियां, संतसेवा को भवत्सेवा से बढ़कर मानने वाले भक्त, संसार से निवृत्त भक्त, भगवद्भक्त नारियां, परम धर्मपोषक संन्यासी भक्तों के वर्णन के साथ ही संतों का उत्कर्ष और सबसे अंत में श्री भक्तमाल जी की आरती है।  

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