Birth of Yudhisthira : ब्रह्मलोक को जा रहे ऋषियों के साथ वानप्रस्थ आश्रम में पत्नियों के साथ रह रहे राजा पाण्डु भी चलने लगे तो ऋषियों ने उन्हें रोक दिया। फिर दिव्य दृष्टि से देख कर बताया कि उनकी पहली पत्नी कुन्ती से देवताओं के समान पुत्रों का जन्म होगा, ऐसा देवताओं ने उन्हें पहले ही आशीर्वाद दे रखा है। इसलिए पृथ्वी लोक छोड़ने के पहले उन्हें इस दिशा में कार्य करना चाहिए। इतना कह कर सभी ऋषि अपने गंतव्य की ओर चल पड़े।
कुन्ती ने पाण्डु से किया प्रश्न
जंगल में रहते हुए एक दिन पाण्डु ने अपनी पत्नी कुन्ती से कहा, प्रिये ! ऋषियों के बताए अनुसार तुम्हें पुत्र प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। कुन्ती ने उन्हें बताया कि बाल्यकाल में पिता जी के आदेश पर मैं अतिथियों की सेवा करती थी। ऐसे में एक बार दुर्वासा ऋषि आए तो वे मेरी सेवा सुश्रुषा से अत्यधिक प्रसन्न हुए और मुझे एक मंत्र सिखा कर कहा, जब भी तुम इस मंत्र से जिस देवता की याद करोगी वह देवता न चाहते हुए भी तुम्हारे अधीन हो जाएगा। उनके अनुसार विवाह के बाद पति की आज्ञा से वो जिस देवता का आह्वान करेंगी, उसी से संतान होगी। अब आप ही बताएं कि मैं किस देवता का आह्वान करूं ताकि उनके जैसी संतान पैदा हो।
पाण्डु ने कुन्ती को दिया ये जवाब
कुन्ती के वचन सुनने के बाद पाण्डु ने कहा, आज तुम विधिपूर्वक धर्मराज का आह्वान करो, वे त्रिलोकी में श्रेष्ठ पुण्यात्मा हैं इसलिए उनसे जो संतान होगी वह निःसंदेह धार्मिक होगी। उनके द्वारा प्राप्त पुत्र का मन अधर्म की ओर कभी नहीं जाएगा। पतिदेव की बात सुन कुन्ती ने धर्मराज का आह्वान किया और उनकी पूजा करके बताया गया मंत्र पढ़ने लगी। उनके आह्वान करने पर धर्मराज सूर्य के समान चमकते हुए विमान पर बैठकर कुन्ती के पास आए और मुस्कुराकर बोले, बताओ कुन्ती मैं तुम्हें कौन सा वर दूं। कुन्ती ने भी उन्हें प्रणाम कर कहा कि आप मुझे अपने जैसा पुत्र दें।
कुन्ती ने दिया पहले पुत्र को जन्म
इसके बाद धर्मराज के संयोग से कुन्ती को गर्भ ठहरा और समय आने पर आश्विन शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ज्येष्ठा नक्षत्र और अभिजीत मुहूर्त में हुआ जब सूर्य देव तुला राशि में थे। जन्म होते ही आकाशवाणी हुई, यह बालक धर्मात्मा मनुष्यों में श्रेष्ठ होगा। यह सत्यलवादी और सच्चा वीर तो होगा ही, सारी पृथ्वी पर शासन भी करेगा। तीनों लोकों में यशस्वी पाण्डु के इस प्रथम पुत्र का नाम युधिष्ठिर होगा।