Pandu Went to Brahmaloka: जानिए ऋषियों ने वानप्रस्थी राजा पाण्डु को ब्रह्मलोक जाने से क्यों रोका, दिव्य दृष्टि से देख कर क्या बताया 

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जानिए ऋषियों ने वानप्रस्थी राजा पाण्डु को ब्रह्मलोक जाने से क्यों रोका, दिव्य दृष्टि से देख कर क्या बताया।

Pandu Went to Brahmaloka : किंदम मुनि के शाप के बाद हस्तिनापुर नरेश पाण्डु अपने नेत्रहीन बड़े भाई राजा धृतराष्ट्र को राजकाज की जिम्मेदारी देकर अपनी पत्नियों कुन्ती और माद्री के साथ एक वन से दूसरे वन में जाकर तप करने लगे। उनका व्यवहार के कारण जंगल में तपस्या में लीन अन्य ऋषियों में कोई उन्हें पुत्र तो कोई भाई और मित्र मान कर प्रेम करने लगा। एक बार उन्होंने अमावस्या तिथि को देखा कि बड़े-बड़े ऋषि महर्षि ब्रह्माजी के दर्शन करने के लिए ब्रह्मलोक की यात्रा पर जा रहे हैं। 

ऋषियों के साथ ब्रह्मलोक के लिए चलने लेग पाण्डु

महर्षियों को यात्रा करते हुए देख कर पाण्डु ने पूछा, हे महर्षियों ! आप लोग कहां की यात्रा करने जा रहे हैं। ब्रह्मा जी के दर्शन करने की बात जानकर वे भी दर्शन करने की आशा से अपनी पत्नियों के साथ चल पड़े। उन्हें पीछे आता देख ऋषियों ने कहा, राजन ! मार्ग में बहुत से दुर्गम स्थान हैं। विमानों की भीड़ से ठसाठस भरी अप्सराओं के खेलने का स्थान भी बीच में है। ऊंचे नीचे बाग बगीचे भी मिलेंगे और नदियों के बहुत ही पतले कगार होंगे जिन पर चलना बहुत मुश्किल होगा। ऊंचे भयंकर पर्वत और गुफाएं भी हैं जहां बर्फ के अलावा अन्य कुछ नहीं मिलेगा। वहां तो वृक्ष होंगे  न ही हिरन या अन्य पशु पक्षी। वहां तो केवल वायु और सिद्ध ऋषि-महर्षि जाते हैं। ऐसे दुर्गम मार्ग पर राजन आपकी सुकोमल पत्नियां कुन्ती और माद्री कैसे चल सकेंगी। इसलिए आप इस यात्रा को स्थगित कर दीजिए। 

पितृऋण को लेकर चिंता जताई

ऋषियों की बात सुनने के बाद पाण्डु ने विनम्रता के साथ जवाब दिया, मैं जानता हूं कि स्वर्ग के द्वार संतानहीन व्यक्ति के लिए बंद रहते हैं। मनुष्य पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण और मनुष्य ऋण के रूप में चार प्रकार के ऋण लेकर जन्म लेता है। यज्ञ से देवता, स्वाध्याय और तपस्या से ऋषि, पुत्र तथा श्राद्ध से पितर एवं परोपकार से मनुष्य का ऋण उतरता है। मैं तीन तरह के ऋणों से तो मुक्त हो चुका हूं किंतु पितरों का ऋण यानी कर्ज अभी भी सिर पर है। मेरी यही अभिलाषा है कि मेरी पत्नी के गर्भ से पुत्रों का जन्म हो ताकि इस ऋण से भी मुक्त हो सकूं। 

ऋषियों ने राजा को मनोरथ सफल होने का दिया आशीर्वाद

राजा पाण्डु का कथन सुनने के बाद ऋषियों ने दिव्य दृष्टि से देख कर कहा, हे धर्मात्मन ! आपके देवताओं के समान पुत्र होंगे। आप अपने इस देवदत्त अधिकार का उपभोग करने के लिए प्रयास कीजिए। निश्चित रूप से आपका मनोरथ सफल होगा। आप बिल्कुल भी निश्चिंत रहें।

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