Duryodhan : दुर्योधन के जन्म लेते ही महल में घटित होने लगी कुछ विचित्र घटनाएं, तब विद्वानों ने दिया यह सुझाव 

0
102
महाभारत के आदिपर्व में ऋषि वैशम्पायन ने राजा जनमेजय से कहा, दुर्योधन के जन्मते ही कुछ अजीब तरह की चीजें होने लगीं जैसे जन्म के तुरंत बाद सामान्य रूप से बच्चे रोते हैं किंतु वह तो गधे की तरह रेंकने लगा।

Duryodhan : अपना गर्भ गिरने से गांधारी का चिंतित होना स्वाभाविक था क्योंकि उसने व्यास जी की सेवा सुश्रुसा कर सौ बलशाली पुत्रों की मांग की थी। गर्भ गिरने की जानकारी योगबल से व्यास जी को मिली तो वे तप छोड़ कर आए और गांधारी को उन्हें सुरक्षित करने का उपाय बताया। उचित समय पर सबसे पहले दुर्योधन का जन्म हुआ। 

दुर्योधन के जन्मते ही कुछ विचित्र हुआ

महाभारत के आदिपर्व में ऋषि वैशम्पायन ने राजा जनमेजय से कहा, दुर्योधन के जन्मते ही कुछ अजीब तरह की चीजें होने लगीं जैसे जन्म के तुरंत बाद सामान्य रूप से बच्चे रोते हैं किंतु वह तो गधे की तरह रेंकने लगा। उसकी आवाज सुनकर अन्य गधे, गीदड़, गिद्ध और कौवे भी चिल्लाने लगे। इसके साथ ही आंधी चलने लगी और कई स्थानों पर आग भी लग गयी। इन सारी स्थितियों को देख महाराज धृतराष्ट्र ने भीष्म और विदुर के अलावा ब्राह्मणों, सगे संबंधियों और कुरुकुल के श्रेष्ठ पुरुषों को बुलवाया और कहा, हमारे वंश में पांडुनंदन युधिष्ठिर सबसे बड़े राजकुमार हैं। उन्हें तो उनके गुणों के कारण ही राज्य की प्राप्ति होगी इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं कहना है। आप लोग बताएं कि युधिष्ठिर के बाद मेरे इस पुत्र को राज्य मिलेगा अथवा नहीं !

विद्वानों ने दुर्योधन के जन्मते ही त्यागने का दिया सुझाव

महाराज धृतराष्ट्र अपनी बात कह ही रहे थे, गीदड़ आदि चिल्लाने लगे। इन अमंगलसूचक अपशकुनों को देखर ब्राह्मणों के साथ विदुर जी ने कहा, हे राजन ! आपके इस ज्येष्ठ पुत्र के जन्म के समय से जो लक्षण प्रकट हो रहे हैं उसे देख कर तो यही लगता है कि यह आपके कुल का नाश करने वाला है। इसलिए इसका त्याग करने में ही भलाई है, इसका पालन करने पर आपको और कुल को दुख ही उठाना पड़ेगा। यदि आप अपने कुल का कल्याण चाहते हैं तो सौ में एक कम ही सही, समझ कर इसका त्याग कर दीजिए। सबके समझाने बुझाने पर भी पुत्र स्नेह वश राजा धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके। उन 101 टुकड़ों से सौ पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुई जिसका नाम दुश्शला था। दुर्योधन सहित सभी पुत्र बहुत ही शूरवीर, युद्धकला में प्रवीण थे। जिन दिनों गांधारी गर्भवती थीं, उन दिनों धृतराष्ट्र की सेवा करने के लिए एक वैश्य कन्या लगायी गयी जिसके गर्भ से उसी साल धृतराष्ट्र के युयुत्सु नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जो बहुत ही यशस्वी और विचारशील था।

+ posts

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here