काशी नरेश की कन्याओं के स्वयंवर में ऐसा क्या हुआ जो वीर राजाओं ने भी दांतों तले अंगुली दबा ली।
Kashi Naresh : शांतनु और सत्यवती के बड़े पुत्र चित्रांगद की गंधर्वराज से युद्ध में मृत्यु के बाद, गंगापुत्र देवव्रत भीष्म ने अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य को बालक होने के बाद भी माता सत्यवती से सलाह कर राज्य की बागडोर सौंप दी। भीष्म की सलाह से वह राज्य का संचालन करने लगा और भीष्म राज्य के रक्षक के रूप में कार्य करते रहे। जब भीष्म ने महसूस किया कि विचित्रवीर्य युवा अवस्था को प्राप्त हो रहे हैं तो उन्होंने उसके विवाह का विचार किया।
विचित्रवीर्य के विवाह के लिए भीष्म काशी पहुंचे
भीष्म के मन में विचित्रवीर्य के विवाह की बात आई, तभी उन्हें पता लगा कि काशी नरेश अपनी तीन बेटियों का विवाह करने के लिए स्वयंवर रचा रहे हैं। बस इस जानकारी पर उन्होंने माता सत्यवती से सहमति ली और अकेले ही रथ पर सवार हो काशी के लिए चल पड़े। स्वयंवर के समय सभाकक्ष में उपस्थित विभिन्न स्थानों के राजाओं ने अपना-अपना परिचय दिया ताकि उसी आधार पर काशी नरेश की पुत्रियां अपने लिए योग्य वर का चयन कर सकें। शांतनु नन्दन भीष्म ने अपना परिचय दिया तो तीनों सुंदर कन्याएं उन्हें अकेला और बूढ़ा समझ कर घबरा गयीं। वहां पर उपस्थित राजा लोग भी हंसी उड़ाते हुए आपस में कहने लगे कि यह बूढ़ा भी विवाह रचाने आया है जबकि इसने तो आजीवन अविवाहित व ब्रह्मचर्य का पालन करने का व्रत लिया था। अब बाल सफेद होने और शरीर में झुर्रियां पड़ने पर इसे यहां आने में शर्म नहीं लगी।
राजाओं की फुस्फुसाहट पर भीष्म हुए क्रोधित
राजाओं की फुस्फुसाहट सुनकर भीष्म को क्रोध आ गया। उन्होंने अपने भाई के लिए तीनों कन्याओं का हरण कर रथ में बैठाया और कहा, क्षत्रिय विवाह स्वयंवर की प्रशंसा करते हैं, धर्मज्ञ मुनि भी इस कार्य की प्रशंसा करते हैं। हे राजाओं ! मैं तुम लोगों के सामने कन्याओं का बल पूर्वक हरण कर रहा हूं। तुम लोग अपनी पूरी ताकत लगाकर मुझे जीत सको तो जीत लो या फिर हार कर भाग जाओ। मैं तुम लोगों के सामने युद्ध के लिए खड़ा हूं, इतना कह कर सभी राजाओं और काशी नरेश को ललकार कर वे कन्याओं को लेकर चल पड़े। उनकी ललकार स्वीकार करते हुए सभी राजाओं ने एक साथ उन पर हमला बोल दिया।
भीष्म ने राजाओं को धूल चटाई
राजाओं के हमले से भीष्म जरा भी विचलित नहीं हुए बल्कि अकेले ही उन सबका मुकाबला करने लगे। राजाओं ने हजारों बाणों की एकसाथ बौछार की किंतु धनुर्धर भीष्म के आगे उनकी एक न चली। बड़ा ही भयंकर युद्ध हुआ जिसमें भीष्म ने राजाओं के धनुष, ध्वजा, कवच ही नहीं बहुतों के सिर भी काट दिए। भीष्म की युद्धकला देख लोग दांतों तले अंगुली दबाने लगे। भीष्म अकेले ही इस महासंग्राम को जीतने के बाद तीनों कन्याओं को लेकर हस्तिनापुर लौट आए।