गंगा ने राजा शांतनु से सशर्त विवाह कर लिया और सात पुत्रों के जन्म होते ही मार दिया ।
Secret of Ganga : गंगा ने राजा शांतनु से सशर्त विवाह कर लिया और सात पुत्रों के जन्म होते ही मार दिया किंतु आठवें पुत्र का जन्म होते ही जब राजा ने टोंक दिया तो गंगा बोली, आपने पूर्व निर्धारित शर्त को तोड़ दिया है और इसलिए अब मैं आपके यहां नहीं रह सकती हूं। शांतनु के पूछे जाने पर गंगा ने पूरा किस्सा बताया कि ये सातों वसु थे, जिन्हें वशिष्ठ मुनि के शाप के कारण मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा और मैंने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इन्हें तुरंत ही मुक्त कर दिया।
शांतनु ने गंगा से प्रश्न पूछ जिज्ञासा की शांत
शांतनु की जिज्ञासा अभी शांत नहीं हुई थी, उन्होंने गंगा से वशिष्ठ मुनि का पूरा परिचय पूछते हुए कहा कि आठवें शिशु ने ऐसा क्या किया जो तुमने इसे मनुष्य योनि में जीने के लिए छोड़ दिया। गंगा देवी ने स्पष्ट किया, विश्वविख्यात तपोनिष्ठ वशिष्ठ मुनि वरुण के पुत्र हैं। मेरु पर्वत के पास ही उनका पवित्र और सुंदर आश्रम है जहां रहते हुए वे तप करते हैं। कामधेनु की पुत्री नन्दिनी उन्हें यज्ञ का हविष्य देने के लिए वहीं रहती हैं।
वसु ने पत्नी के कहने पर गाय का किया हरण
गंगादेवी ने बताया, एक बार पृथु आदि वसु अपनी पत्नियों के साथ उस वन में आए थे। द्यौ नाम के वसु की पत्नी की दृष्टि नन्दिनी पर पड़ गयी जो समस्त तरह की कामनाओं को पूर्ण करने में सक्षम जान पड़ी। उसने उसे अपने पति द्यौ को दिखाया। वसु ने उसे देख जवाब दिया, प्रिये ! यह सर्वोत्तम गौ वशिष्ठ मुनि की है। यदि कोई मनुष्य इस गौ का दूध पी ले तो वह 10 हजार वर्षों तक जीवित और जवान बना रहेगा। वसु की पत्नी ने उसकी ओर लालच भरी निगाहों से देखते हुए कहा कि मैं इस गाय को अपनी एक सखी को देना चाहती हूं इसलिए तुम इसका हरण कर लो। अपनी पत्नी की बात मान कर द्यौ ने अपने भाइयों को बुलाकर यह बात बतायी और उनके सहयोग से हरण कर लिया। वसु उस समय भूल गए कि ऋषि वशिष्ठ महान तपस्वी हैं और शाप देकर उन्हें देवयोनि से हटा सकते हैं।
वसुओं को क्यों लेना पड़ा मृत्युलोक में जन्म
इधर वशिष्ठ मुनि जब पूजन के लिए फल फूल आदि लेकर अपने आश्रम में लौटे और नन्दिनी को न देख उसे वन में ढूंढने पहुंचे। नंदिनी के न मिलने पर उन्होंने दिव्य दृष्टि से सबकुछ पता करने के बाद वसुओं को शाप दिया और कहा तुम लोगों ने मेरी गाय को हर लिया इसलिए आप सभी का जन्म मनुष्य योनि में होगा। शाप की जानकारी होते ही वसु नन्दिनी को लेकर वशिष्ठ मुनि के आश्रम में उन्हें प्रसन्न करने पहुंचे। इस पर ऋषि वशिष्ठ ने कहा, अन्य वसु तो एक-एक वर्ष में ही मनुष्य योनि से छुटकारा पा जाएंगे किंतु द्यौ को अपना कर्म भोगने के लिए बहुत समय तक मृत्युलोक में रहना होगा और यह संतान भी नहीं उत्पन्न करेगा। पिता की प्रसन्नता के लिए स्त्री समागम का भी त्याग करेगा। गंगा ने कहा, हे राजन ! यह आठवा पुत्र ही द्यौ नामक वसु है जो चिरकाल तक मृत्युलोक में रहेगा। इतना कह कर गंगा जी उस कुमार के साथ अन्तर्ध्यान हो गयीं।