Shantanu Marriage :  गंगा से विवाह का प्रस्ताव रखने पर राजा शांतनु के सामने कौन सी शर्त रखी, जानिए क्यों उन्होंने अपने सात पुत्रों को मारा

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एक बार शिकार खेलते हुए वे गंगातट तक पहुंच गए। वहां उन्होंने एक अनुपम सुंदरी युवती को देखा जो लक्ष्मी के समान चमक रही थी।

Shantanu Marriage : ब्रह्मा जी के शाप को शिरोधार्य कर राजा महाभिष ने पृथ्वी पर राजा प्रतीप के घर पर पुत्र के रूप में उस समय जन्म लिया जब वे शांत हो रहे थे, इसलिए उनका नाम शांतनु रखा गया। शांतनु के बड़े होने पर उन्हें राजगद्दी पर बैठा कर राजा प्रतीप वन में तप करने चले गए। 

विवाह के लिए गंगा ने रखी विचित्र शर्त  

राजा शांतनु को शिकार खेलने का शौक था और इसके लिए वो कई बार बहुत दूर तक चले जाते थे। ऐसे ही एक बार शिकार खेलते हुए वे गंगातट तक पहुंच गए। वहां उन्होंने एक अनुपम सुंदरी युवती को देखा जो लक्ष्मी के समान चमक रही थी। उस दिव्य युवती को देखते हुए राजा शांतनु एकटक उसे देखते ही रहे। उस पर मोहित होते हुए उन्होंने उसका परिचय जानते हुए विवाह का प्रस्ताव रख दिया। युवती ने कहा, राजन मुझे आपकी रानी होना स्वीकार है किंतु मैं जो भी कार्य करूं उसमें आप टोका-टाकी नहीं करेंगे। जब तक आप इस शर्त का पालन करेंगे मैं आपके पास रहूंगी अन्यथा आपको छोड़ कर चल दूंगी। यह सुंदरी और कोई नहीं गंगा ही थीं। राजा ने उनकी शर्त स्वीकार की और उनके साथ महल के लिए चल दीं। 

पुत्रों का जन्म और उनको गंगा में बहाना 

राजा शांतनु गंगा के साथ महल में सुखपूर्वक रहने लगे और कई वर्ष बीत गए। अब तक गंगा जी के साथ उनके सात पुत्र उत्पन्न हो चुके थे। गंगा जी पुत्र के जन्म लेते हुए यह कहते हुए उस शिशु को गंगा में बहा देतीं कि लो मैं तुम्हारी प्रसन्नता के लिए ऐसा कर रही हूं। इस दृश्य को देखना शांतनु के लिए मुश्किल हो रहा था किंतु उन्हें डर था कि टोकते हुए गंगा चली जाएंगी इसलिए चुप ही रहते। आठवां पुत्र होने पर भी गंगा वही करने जा रही थीं कि राजा शांतनु ने उन्हें रोक दिया और बोलें कि नवजात को मारना महापाप है। 

गंगा ने शांतनु को बताया, उनकी पत्नी बनने का राज

राजा शांतनु का गंगा जी से प्रश्न था, आखिर ऐसा तुम क्यों करती हो, इस पर गंगा ने उत्तर दिया, अच्छा आप पुत्र के इच्छुक हैं तो लो इस पुत्र को मैं आपको ही सौंपती हूं, अब इसका ख्याल रखना और पूर्व शर्त के अनुसार मैं यहां से जाती हूं। मैं जह्नु की कन्या हूं और देवताओं के कार्य को पूरा करने के लिए ही इतने दिनों तक आपके पास रही हूं। दरअसल मेरे ये आठो पुत्र अष्ट वसु हैं लेकिन वशिष्ठ जी के शाप के कारण उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा। उन्हें मनुष्य लोक में आपके जैसा पिता और मेरे जैसी मां नहीं मिल सकती थी। लेकिन मैंने उन्हें जन्म लेते ही मुक्त करने की प्रतिज्ञा ली थी। वसुओं का पिता होने के नाते आपको अक्षय लोकों की प्राप्ति होगी। यह आठवां पुत्र अष्टमाश है इसकी आप रक्षा करें। 

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