Curse of Shukracharya: शुक्राचार्य ने राजा ययाति को कौन सा दिया शाप, गिड़गिड़ाने पर मुक्ति का रास्ता भी बताया

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राजा ययाति और दैत्यगुरु शुक्राचार्य
Curse of Shukracharya : दैत्यगुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी राजा ययाति के साथ विवाह कर सुख पूर्वक रह रही थी।

Curse of Shukracharya : दैत्यगुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी राजा ययाति के साथ विवाह कर सुख पूर्वक रह रही थी। इस बीच उसने दो पुत्रों को भी जन्म दिया लेकिन एक दिन राजा के साथ कहीं घूमने निकली तो जहां पर उसके साथ आई दासी शर्मिष्ठा जो असुरराज वृषपर्वा की पुत्री थी, के तीन पुत्रों को खेलते हुए देख ठहर गयी। बच्चों से उनके पिता के बारे में पूछने के बाद वह क्रोधित हो उठी और सीधे अपने पिता शुक्राचार्य के आश्रम पहुंची, पीछे-पीछे राजा ययाति भी उसे समझाते हुए पहुंच गए। 

देवयानी ने पिता को बतायी घटना तो शुक्राचार्य ने दिया शाप

आश्रम पहुंच कर देवयानी ने पिता को प्रणाम कर कहा, पिताजी, धर्म को अधर्म ने जीत लिया, नीचा ऊंचा हो गया और शर्मिष्ठा मुझसे बहुत आगे बढ़ गयी है। उसने ययाति की ओर इशारा करते हुए कहा कि उसके तीन पुत्र मेरे इन महाराज से हैं। इन्होंने धर्म मर्यादा का उल्लंघन किया है इसलिए इन पर विचार कीजिए। पुत्री की पूरी बात सुनने के बाद शुक्राचार्य बोले, राजन ! तुमने जानबूझ कर धर्म-मर्यादा का उल्लंघन किया है इसलिए मैं तुम्हें शाप देता हूं कि तुम बूढ़े हो जाओ। शाप का तुरंत ही असर हुआ तो राजा गिड़गिड़ाते हुए बोला, आचार्य जी, मैं बूढ़ा नहीं होना चाहता हूं क्योंकि मैं अभी देवयानी से तृप्त नहीं हुआ हूं। आप कृपा करके अपना शाप वापस ले लीजिए। इस पर गुरु शुक्राचार्य बोले, मेरा शाप कभी व्यर्थ नहीं हो सकता है। तुम मेरे दामाद हो इसलिए तुम्हारे आग्रह को स्वीकार करते हुए इतनी छूट दे सकता हूं कि तुम अपना बुढ़ापा किसी अन्य को दे सको। इस पर ययाति ने उनके सामने ही घोषणा की, मेरा जो पुत्र मुझे अपनी जवानी देकर मेरा बुढ़ापा लेने को तैयार होगा, वही इस राज्य, पुण्य और यश का भागी होगा। 

देवयानी के पुत्रों ने पिता का बुढ़ापा लेने से किया इनकार 

आचार्य ने कहा, ठीक है, श्रद्धापूर्वक मेरा चिंतन करने पर तुम्हारा बुढ़ापा दूसरे पर चला जाएगा और जो पुत्र तुम्हें अपनी जवानी देगा वही राजा, आयुष्मान, यशस्वी और तुम्हारे कुल का वंशधर होगा। इसके बाद राजा ययाति राजधानी वापस लौटे और पहले पुत्र यदु को बुलाकर कहा, मैं बूढ़ा हो गया हूं, मेरे शरीर में झुर्रियां भी पड़ गयी हैं और बाल भी सफेद हो चुके हैं किंतु मैं अभी जवानी के भोगों से संतुष्ट नहीं हुआ हूं। तुम मेरा बुढ़ापा लेकर अपनी जवानी दे दो। एक हजार वर्ष पूरे होने पर मैं तुम्हारी जवानी तुम्हें लौटा दूंगा। उनकी बात सुन कर यदु ने साफ इनकार करते हुए बुढ़ापे के दोष गिनाए और कहा कि मैं आपका बुढ़ापा नहीं ले सकता हूं। उन्होंने कहा, यदि तुम अपनी जवानी नहीं दे सकते तो जाओ तुम्हारी संतान को राज्य में हक नहीं मिलेगा। इस पर ययाति ने अपने दूसरे पुत्र तुर्वसु को बुलाया और वही प्रस्ताव रखा तो उसने भी उनका बुढ़ापा लेने से इनकार कर दिया। ययाति ने उसे भी शाप देते हुए कहा, जा तेरा वंश नहीं चलेगा। तू मांसभक्षी, दुराचारी और वर्षसंकर म्लेच्छों का राजा होगा। 

शर्मिष्ठा का तीसरा पुत्र हुआ राजी

इस तरह ययाति ने देवयानी के दोनों पुत्रों को शाप देते हुए शर्मिष्ठा के पुत्र द्रुह्य को बुलाया और और जवानी देने की बात कही किंतु उसने भी इनकार करते हुए कहा बूढ़े को हाथी घोड़ा रथ और युवतियों का सुख नहीं मिलता है, जबान भी लड़खड़ाती है। क्रोधित होते हुए ययाति ने उसे भी शाप दिया कि तुझे ऐसे स्थान पर रहना पड़ेगा जहां हाथी घोड़ा तो दूर बैल बकरे और गधे भी नहीं नसीब होंगे। केवल तू ही नहीं तेरे वंश की भी यही गति होगी। शर्मिष्ठा के दूसरे पुत्र अनु के भी प्रस्ताव न मानने पर उसे भी शाप दिया कि तेरी संतान जवान होकर मर जाएगी। 

अब अंत में ययाति ने शर्मिष्ठा के तीसरे पुत्र पुरु को बुलाया और बुढ़ापा लेकर जवानी देने का प्रस्ताव रखा, पुरु ने प्रसन्नता से अपने पिता का प्रस्ताव स्वीकार किया कि एक हजार वर्ष तक विषय भोग करने के बाद वह अपना बुढ़ापा वापस ले लेगा। ययाति ने शुक्राचार्य का ध्यान करते हुए अपने पुत्र से जवानी लेकर बुढ़ापा उसे दे दिया।       

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