Dharam : राजा जनमेजय के आग्रह पर वेद व्यास जी के प्रमुख शिष्यों में से एक ऋषि वैशम्पायन महाभारत की कथा सुना रहे थे। इसी में प्रसंग आता है असुर गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और असुरराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा के बीच का झगड़े का। झगड़ा बहुत ही मामूली बात पर हुआ किंतु है बहुत रोचक।
इंद्र की शरारत से बिगड़ी बात
देवगुरु बृहस्पति का पुत्र कच दैत्यगुरु से संजीवनी विद्या सीख कर गया, तो उसने देवताओं को भी वह विद्या सिखा दी। अब देवता अपने को बलशाली समझने लगे क्योंकि उन्हें मालूम था कि यदि कोई देवता मर भी गया तो उसे जीवित किया जा सकेगा। बस इसी बात पर देवताओं ने देवराज इंद्र पर दबाव डाला कि दैत्यों पर हमला किया जाए और इंद्र ने अभियान शुरु कर दिया। रास्ते में एक जंगल के तालाब में बहुत ही युवतियां जल क्रीड़ा का आनंद ले रही थीं। इंद्रदेव को शरारत सूझी और वायु बन कर उन्होंने उन कन्याओं के कपड़ों को आपस में मिला दिया। जल क्रीड़ा करने के बाद युवतियां बाहर निकलीं तो शर्मिष्ठा ने भूल वश देवयानी के कपड़े पहन लिए। इस पर देवयानी क्रोधित हो गयी और उसे भला बुरा कहा। उसकी बात पूरी भी नहीं हो पाई कि शर्मिष्ठा जोर से बोली, तेरे बाप तो मेरे पिता को सोते बैठते भी नहीं छोड़ते हैं। मेरे पिता के सामने भाट की तरह उनका गुणगान करते नहीं थकते फिर भी तू घमंड कर रही है।
विवाद बढ़ा तो एक ने दूसरी कन्या को कुएं में धकेला
इस पर देवयानी इतना अधिक नाराज हुई कि शर्मिष्ठा के कपड़े खींचने लगी। इससे क्रोधित हो कर उसने देवयानी को जंगल के एक कुएं में धकेल दिया और मरी हुई जान कर बिना उधर देखे अपने आवास की ओर लौट गयी। वह कुएं के भीतर से बचाने की आवाज लगा रही थी कि तभी राजा ययाति शिकार खेलने के लिए उधर से निकलने और पानी की तलाश में कुएं के पास पहुंचे तो देखा कुआं तो सूखा हुआ है और अंदर एक सुंदरी कन्या है। राजा ने उसका परिचय पूछा तो देवयानी ने पूरी बात बताते हुए कुएं से बाहर निकालने का आग्रह किया। ययाति देवयानी को कुएं से बाहर निकाला। इस पर धन्यवाद देकर वह अपने आवास की ओर चल दी।