Shashishekhar Tripathi
रावण, जिसने देवताओं तक को भयभीत कर रखा था, वह लंका का अजेय सम्राट था. उसका घमंड और शक्ति इतनी प्रबल थी कि वह खुद को अमर और अजेय मानने लगा था. परंतु जैसे हर कहानी में एक मोड़ आता है, वैसे ही रावण के जीवन में भी बुरे दिन शुरू होने वाले थे और इस आने वाली तबाही का सबसे पहला संकेत किसी देवता या ऋषि ने नहीं, बल्कि लंका की एक राक्षसी, त्रिजटा ने देखा था. उसका स्वप्न केवल एक सपने तक सीमित नहीं था, बल्कि वह रावण के पतन और राम की विजय का भविष्यसूचक सन्देश था. त्रिजटा का स्वप्न केवल एक भविष्यवाणी नहीं था, बल्कि यह रावण के बुरे दिनों की शुरुआत का प्रतीक था. यह हमें यह सिखाता है कि अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, सत्य और धर्म की विजय सदैव होती है. त्रिजटा की भक्ति, धैर्य और सत्यनिष्ठा ने उन्हें रामायण की कथा में अमर कर दिया और उनका स्वप्न एक ऐसे युग की ओर संकेत करता है, जहां धर्म का अंततः उदय होता है.
त्रिजटा का स्वप्न:
जब सीताजी अशोक वाटिका में अपनी अग्नि परीक्षा के दिनों को काट रही थीं, तब लंका की राक्षसियों को उन्हें रावण के समर्पण के लिए विवश करने का कार्य सौंपा गया था. इनमें से एक थी त्रिजटा, जो अन्य राक्षसियों से बिल्कुल अलग थी. एक दिन, अचानक त्रिजटा ने एक विचित्र और डरावना स्वप्न देखा. वह स्वप्न न केवल लंका के लिए अशुभ था, बल्कि रावण के पूरे साम्राज्य के अंत की ओर संकेत कर रहा था.
क्या था वह स्वप्न ?
त्रिजटा के स्वप्न में एक बंदर (हनुमान का प्रतीक) लंका में आग लगा रहा था. लंका की चमकती इमारतें जलकर राख हो रही थीं और राक्षसों की विशाल सेना विनाश के गर्त में समा रही थी. सबसे विचित्र दृश्य था रावण का, जो नंगा होकर गदहे पर सवार था. उसके सिर मुड़े हुए थे और उसकी बीसों भुजाएँ कटी हुई थीं. वह गदहे पर बैठा यमपुरी की दिशा में, यानी दक्षिण दिशा में जा रहा था, मानो उसके अंत का समय आ चुका हो. दूसरी ओर, विभीषण को लंका का नया राजा घोषित किया जा रहा था और चारों ओर आनंद का वातावरण था.
रावण के पतन का संकेत:
त्रिजटा का यह स्वप्न एक साधारण स्वप्न नहीं था. यह आने वाले भयानक घटनाक्रम का संकेत था, जो लंका को पूरी तरह बदलने वाला था. त्रिजटा ने यह बात बाकी राक्षसियों को बताई और कहा कि “यह स्वप्न अवश्य सच होगा.” उनका यह दावा न केवल रावण के पतन की भविष्यवाणी थी, बल्कि यह एक प्रतीक था कि जब अधर्म अपने चरम पर पहुँच जाता है, तब धर्म का उदय अनिवार्य हो जाता है.
रोचकता का प्रसंग:
त्रिजटा का स्वप्न एक रोचक मोड़ इसलिए था क्योंकि यह उस समय आया, जब रावण अपने घमंड के चरम पर था. उसने सोचा कि उसकी ताकत उसे अमर बना सकती है. लेकिन किसे पता था कि लंका की एक साधारण राक्षसी के स्वप्न में ही उसका अंत छुपा होगा? स्वप्न में गदहे पर सवार रावण का चित्रण उसकी प्रतिष्ठा के अंतिम विनाश का प्रतीक था. यह दृश्य लंका की समृद्धि के अंत और एक नए युग की शुरुआत का संकेत था.
त्रिजटा का धैर्य और भक्ति:
त्रिजटा का यह स्वप्न केवल एक भविष्यवाणी नहीं था, बल्कि यह दिखाता है कि वह राक्षसियों की भीड़ में एकमात्र थी, जो धर्म और सत्य का पालन करती थी. उन्होंने स्वप्न का वर्णन इस भाव से किया, मानो प्रभु श्रीराम की विजय सुनिश्चित हो चुकी हो. त्रिजटा का यह दृढ़ विश्वास उनकी श्रीराम भक्ति का प्रतीक था. यही कारण था कि जब अन्य राक्षसियाँ सीताजी को विवश करने का प्रयास कर रही थीं, त्रिजटा ने सच्चाई के साथ खड़ी रहकर उन्हें सांत्वना दी.
स्वप्न का सत्य होना:
त्रिजटा के स्वप्न में जो दिखा, वह बिल्कुल सही सिद्ध हुआ. हनुमान ने लंका को जलाया, रावण की विशाल सेना का विनाश हुआ, और अंत में रावण का पतन ठीक उसी प्रकार हुआ, जैसे त्रिजटा ने देखा था. विभीषण, जो सत्य और धर्म के पथ पर थे, लंका के नए राजा बने और रामायण की कथा ने धर्म की विजय के साथ अपना समापन किया.