हिंदू धर्म में गाय का इतना अधिक महत्व है कि गौमाता कह कर ही बुलाया जाता है. मान्यता है कि गाय के शरीर में 33 कोटि देवी देवताओं का वास है, इतना ही नहीं गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास माना गया है. कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन गायों के नाम है जिसमें गायों का पूजन कर वंदन किया जाता है. इस बार गोपाष्टमी का पव्र 9 नवंबर शनिवार को पड़ रहा है.
इस तरह गाय बछड़े की पूजा कर श्री कृष्ण को करें प्रसन्न
गोपाष्टमी के दिन बछड़े सहित गाय को सजा कर उसका पूजन किया जाता है. ऐसा करने वाले को सुख समृद्धि प्राप्त होती है तथा नवग्रहों के दोष दूर होते हैं और धन संकट भी नहीं रहता है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण और उनके भाई बलराम ने गो चरण लीला शुरु की थी. इसलिए इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में जागने के बाद नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए. इसके बाद सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर उनसे प्रार्थना करनी चाहिए. भगवान का पूजन करने के बाद बछड़े और गाय को अच्छी तरह से स्नान करा गाय के पैरों में घुंघरू आदि पहना कर गोमाता की सींग को गेरू आदि से रंग कर चुनरी बांधना चाहिए. अब गाय और बछड़े को भोजन कराने के बाद उसकी परिक्रमा करें और फिर गाय को लेकर उसके साथ ही कुछ दूरी तक चलना चाहिए. गोधूलि वेला में एक बार फिर से गाय का पूजन कर उन्हें गुण व हरा चारा जरूर खिलाना चाहिए. हां गाय की चरण रज को माथे से लगाना बिल्कुल भी न भूलें. गाय बछड़े का पूजन करने से भगवान श्री कृष्ण भी प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा देते हैं.
गोपाष्टमी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब श्री कृष्ण छह वर्ष के हुए तो यशोदा जी से कहने लगे, ‘मैया, अब मैं बड़ा हो गया हूं, अब मैं बछड़ों को नहीं गाय को चराने जाऊंगा. इस पर माता यशोदा बोलीं, ठीक है लल्ला, अपने बाबा से पूछ लेना, इतना सुनते ही वह नंद बाबा के पास पहुंच गए. पहले तो उन्होंने मना किया किंतु बालक कृष्ण के कहने पर कहा पंडित को बुलाकर लाओ वह गौ चारण का मुहूर्त बता देंगे. पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और पंचांग देख गणना कर बताया कि गौ चारण के लिए केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है, इसके बाद साल भर तक कोई मुहूर्त नहीं है. वह शुभ मुहूर्त कार्तिक शुक्ल अष्टमी की तिथि थी. एक अन्य मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ही कृष्ण ने अपनी एक अंगुली से गोवर्धन पर्वत को उठा कर ब्रजवासियों की इंद्र के प्रकोप से रक्षा की थी. वह सात दिनों तक पर्वत को उठाए रहे फिर कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन इंद्र ने क्षमा मांगी. तभी से अष्टमी पर गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाता है.