Anjani Nigam
विजयादशमी को विजय पर्व के रूप में तो मनाया ही जाता है, इस दिन शमी वृक्ष के पूजन का खास महत्व होता है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि को तारा उदय होने के समय विजय काल माना जाता है, जो सर्व कार्य सिद्धि दायक होता है. शमी वृक्ष का संबंध त्रेतायुग में प्रभु श्री राम से है तो द्वापर युग में पांडवों से भी है. आइए विस्तार से जानते हैं शमी वृक्ष के पूजन का महत्व और क्या है पूजन की विधि.
रामायण महाभारत काल में शमी वृक्ष
प्रभु श्री राम ने रावण के साथ युद्ध में विजय पाने के लिए जहां एक ओर देवी की आराधना और शस्त्रों का पूजन किया था, वहीं उन्होंने शमी वृक्ष का पूजन भी किया. इसके बाद ही उन्होंने वानरों और भालुओं की सेना को युद्ध करने के लिए आगे बढ़ने का निर्देश दिया था. इसके बाद द्वापर युग में जब पांडव दुर्योधन से जुआ में हार गए तो उसने 12 वर्ष के वनवास के साथ तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त रखी थी. तेरहवें वर्ष में उनका पता लगने पर फिर से 12 वर्ष का वनवास भोगना था. इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष तथा अन्य शस्त्र विराट राज्य की सीमा में एक शमी वृक्ष पर रखे और स्वयं बृहन्नला बनकर राजा विराट के यहां नौकरी करने लगे. जब गोरक्षा के लिए राजा विराट के पुत्र उत्तर ने अर्जुन को साथ लिया तो अर्जुन ने इसी शमी वृक्ष में छिपे अपने धनुष और शस्त्र उतार कर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी.
शमी की पूजा का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान शिव, गणपति और शनि देव की प्रसन्न करने के लिए शमी के पेड़ बेहद खास माना जाता है. मान्यता के अनुसार शमी का पेड़ भगवान शिव का प्रतीक है. ऐसे में शमी पेड़ की पूजा करने से शिवजी की कृपा प्राप्त की जा सकती है. शिव जी के पुत्र गणेश जी हैं और शिष्य शनि देव हैं. इसलिए शमी की पूजा से गणेश जी और शनिदेव भी प्रसन्न होते हैं.
शमी वृक्ष से जुड़ी खास बातें
घर के बाहर की तरफ किसी शनिवार अथवा विजयादशमी के दिन इस पौधे को लगाना शुभ रहता है. किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए घर से निकलते समय शमी का दर्शन विशेष फलदायक होता है. यदि घर में पौधा लगा है, तो प्रत्येक शनिवार के दिन पौधे की जड़ के निकट दीपक जलाना चाहिए. इस पेड़ को कभी भी बिना स्नान या रात के समय स्पर्श नहीं करना चाहिए. नियमित पूजा करने से हर तरह की पीड़ा का नाश होता है.



