आदिशक्ति की उपासना से होते हैं सभी मनोरथ पूरे, लेकिन गलत अष्टमी मनाने से बढ़ जाते हैं कष्ट

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Shashishekhar Tripathi

इस बार शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर 2024, दिन गुरुवार से प्रारंभ हो रही है. नवरात्रि की हर तिथि माता जगजननी के अलग-अलग स्वरूप को समर्पित है. इस अवसर पर देवी पूजन के साथ-साथ नौ दिनों का व्रत भी रखा जाता है. आदिशक्ति जगदम्बा के हर स्वरूप से अलग-अलग मनोरथ पूर्ण होते हैं. देवी की पूजा प्रारंभ करने से पूर्व घट (कलश) की स्थापना और ज्वार बोई जाती है. आइए जानते हैं नवरात्र में घट स्थापना का शुभ मुहूर्त क्या है, साथ ही अष्टमी और नवमी के भ्रम को भी दूर करते हैं.

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त  

निर्णय सागर पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्रि में घट स्थापना का पहला शुभ मुहूर्त 3 अक्टूबर को प्रातः 6:35 से 8:03 तक है. प्रातः काल का यह समय कलश स्थापना के लिए सबसे शुभ माना गया है. जो लोग किसी कारणवश इस अवधि में कलश स्थापना नहीं कर पाते, वह दोपहर 12:03 से 12:50 तक अभिजित मुहूर्त में घट स्थापना कर सकते हैं. शुभ मुहूर्त में घट स्थापना करने से माता का पूरा आशीर्वाद मिलता है.

 नवरात्रि की तिथियां  

– 3 अक्टूबर: प्रतिपदा  

– 4 अक्टूबर: द्वितीया  

– 5 अक्टूबर: तृतीया  

– 6 अक्टूबर: तृतीया (तिथि वृद्धि)

– 7 अक्टूबर: चतुर्थी  

– 8 अक्टूबर: पंचमी  

– 9 अक्टूबर: षष्ठी  

– 10 अक्टूबर: सप्तमी  

– 11 अक्टूबर: अष्टमी/ नवमी

– 12 अक्टूबर: विजयादशमी 

नवमी और अष्टमी के नियम

नवमी और अष्टमी हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण तिथियाँ मानी जाती हैं, खासकर देवी दुर्गा की पूजा में. इन तिथियों का सही समय और संयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे जुड़ी कई आध्यात्मिक मान्यताएँ भी हैं, जो सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करने के लिए मानी जाती हैं. इसलिए, इन तिथियों का पालन करते समय कुछ खास नियमों का ध्यान रखना जरूरी होता है.

क्या है अष्टमी और नवमी का सही संयोजन 

महाअष्टमी का पालन करते समय यह सुनिश्चित करना जरूरी है, कि यह तिथि नवमी के साथ हो. इसका मतलब है कि अष्टमी और नवमी एक दूसरे से जुड़ी होनी चाहिए और अष्टमी का पालन अकेले नहीं करना चाहिए. इसका एक मुख्य कारण यह है कि शरद ऋतु में, जब देवी दुर्गा की पूजा होती है, तब महाअष्टमी और नवमी का संयोजन विशेष शुभ माना जाता है. यह संयोजन व्यक्ति को शोक और कष्ट से बचाता है.पद्मपुराण में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अष्टमी और नवमी एक-दूसरे से जुड़ी होनी चाहिए. यह संयोजन अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है.

न करें सप्तमी के साथ वाली अष्टमी 

ऐसी मान्यता है कि अगर अष्टमी का पालन सप्तमी के साथ किया जाए, तो यह अशुभ परिणाम दे सकती है.पुराणों में लिखा गया है कि सप्तमी के साथ अष्टमी करने से जीवन में शोक और कष्ट आते हैं. जम्भ नामक दानव की कहानी इसका उदाहरण देती है. कहा जाता है कि सप्तमी और अष्टमी के गलत संयोजन से दानव जम्भ की मृत्यु हो गई थी. इसलिए, जो लोग शुभता और सफलता की कामना करते हैं, उन्हें सप्तमी युक्त अष्टमी का पालन करने से बचना चाहिए.

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