प्रति वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन श्री हरि के योग निद्रा से जागने के बाद उनके विग्रह स्वरूप शालिग्राम के साथ तुलसी माता से विवाह किया जाता है. इस बार यह तिथि 12 नवंबर, मंगलवार को है. इस व्रत को करने वाली महिलाओं का सौभाग्य अखंड होता है इसलिए विवाहित महिलाएं कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन देवी तुलसी के पौधे की आराधना कर उनसे सुहाग मांगते हुए उनकी परिक्रमा करती हैं. लेख में जानिए इस दिन क्यों होता है शालिग्राम और तुलसी का विवाह और किस कारण श्री विष्णु को बनना पड़ा पत्थर.
पहले शालिग्राम तुलसी विवाह की कथा जानिए
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भगवान गणपति के शाप के कारण तुलसी देवी असुर शंखचूड़ की पत्नी बनीं. जब असुर का आतंक दुनिया भर में बहुत अधिक बढ़ गया तो श्री विष्णु हरि ने अपनी माया फैलाकर शंखचूड़ का कवच उसकी पत्नी का पतिव्रत धर्म लेकर उसका वध कर दिया. इसके बाद श्री हरि शंखचूड़ का स्वरूप बना कर पतिव्रता तुलसी के घर पहुंचे और शंखचूड़ के स्वभाव के अनुसार ही प्रदर्शन किया जिससे तुलसी बहुत प्रसन्न हुईं और युद्ध में जीत का उत्सव मनाने के बाद उनके साथ ही रात्रि शयन भी किया. तुलसी जी को उनके व्यवहार पर कुछ संदेह हुआ तो उन्होंने उनकी वास्तविकता पूछी और शाप दिया कि आपने धोखे से मेरा सतीत्व नष्ट किया है. मैं आपको पत्थर होने का शाप दे रही हूं. तुलसी के शाप के भयभीत विष्णु जी तुरंत ही अपने असली रूप में आ गए. उन्हें देख कर तुलसी को समझने में देर नहीं लगी कि उनके पति शंखचूड़ का वध हो गया है क्योंकि उसकी रक्षा तो तुलसी के सतीत्व के कारण हो रही थी. कुछ क्षण मूर्छित रहने के बाद उन्हें होश आया तो बोलीं, हे प्रभु, आपका हृदय पत्थर के समान है तभी तो आपने मेरे पति को मार दिया. अब यह मेरा श्राप है कि आप पत्थर बन कर इस पृथ्वी पर रहें.
बिना तुलसी के नहीं होती शालिग्राम की पूजा
श्री विष्णु ने उन्हें हर तरह से समझाया कि शंखचूड़ का आतंक इतना अधिक बढ़ गया था कि देवता भी परेशान हो गए थे, तुम्हारे पतिव्रत धर्म और सतीत्व के कारण ही वह अजेय हो गया था. फिर भी तुमने मेरे लिए सैकड़ों साल सिर्फ मेरे लिए ही तप किया है इसलिए मैं यह वचन देता हूं कि तुम दिव्य देह धारण कर मेरे साथ रहोगी. तुम्हारे शाप को पूरा करने के लिए मैं पत्थर रूप में शालिग्राम बन कर पृथ्वी पर रहूंगा और तुम मेरे साथ तुलसी के पौधे के रूप में रहोगी. तुम्हारे पौधे के पत्तों को बिना मेरी पूजा अधूरी रहेगी. बिना तुम्हारी आराधना के मेरी पूजा करने वाले नरक भोगेंगे.
इस तरह मनाएं तुलसी विवाह उत्सव
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन तुलसी विवाह उत्सव मनाने के लिए तुलसी के गमले को गेरू और चावल के ऐपन से सजाएं. फिर सुहाग की प्रतीक ओढ़नी चढ़ाएं. पंचदेवों तथा शालिग्राम जी का विधिवत पूजन कर भगवान शालिग्राम जी के सिंहासन को गमले की सात बार परिक्रमा कराएं और आरती करते हुए विवाह उत्सव की पूर्णता करें. महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए व्रत करती हैं.