पूजा और जप भारतीय धार्मिक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा हैं, और इनका पालन सदियों से किया जा रहा है। चाहे घर में पूजा हो या देव मंदिर में, हम हमेशा एक आसन का प्रयोग करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पूजा करते समय सही आसन का चयन कितना महत्वपूर्ण है? शास्त्रों में विभिन्न प्रकार की मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग आसनों का उल्लेख है, परंतु क्या आप जानते हैं कि नित्य पूजा के लिए कौन सा आसन सर्वोत्तम है? आइए, इस लेख के माध्यम से समझते हैं पूजा और जप के दौरान आसन के महत्व को।
बिना आसन के पूजा करना क्या उचित है?
अक्सर हम पूछते हैं कि क्या बिना आसन के भी पूजा की जा सकती है। शास्त्रों के अनुसार, बिना आसन के भूमि पर बैठकर पूजा या मंत्र जाप करने से दुख और दरिद्रता की प्राप्ति होती है। यह आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रवाह और उसके संचय के लिए हानिकारक होता है। इसलिए, पूजा करते समय हमेशा आसन का प्रयोग किया जाना चाहिए।
किस प्रकार के आसन से क्या परिणाम मिलते हैं?
आसन का सही चुनाव न केवल पूजा की शुद्धता के लिए आवश्यक है, बल्कि इससे आपके जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं किस प्रकार के आसन से क्या परिणाम मिल सकते हैं:
- बांस के आसन पर बैठकर पूजा करने से दरिद्रता आती है।
- पत्थर के आसन पर बैठने से रोग उत्पन्न होते हैं।
- लकड़ी के आसन पर बैठने से दुर्भाग्य और दुख प्राप्त होते हैं।
- घास के आसन पर बैठने से यश और कीर्ति नष्ट हो जाती है।
- तिनकों के आसन पर बैठकर पूजा करने से आर्थिक अस्थिरता और धन हानि होती है।
- पत्तों से बने आसन पर बैठकर पूजा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।
- कपड़े के आसन का उपयोग करने से चिंता और बाधाएं उत्पन्न होती हैं।
आसन का आध्यात्मिक महत्व
पूजा और जप के दौरान आसन का चयन सिर्फ एक परंपरा नहीं है, इसका गहरा आध्यात्मिक महत्व भी है। जब भी हम पूजा करते हैं या मंत्र जाप करते हैं, तब हमारे भीतर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह आसन उस ऊर्जा को संचित करने में मदद करता है। यदि हम बिना आसन के भूमि पर बैठते हैं, तो यह ऊर्जा भूमि में समा जाती है, जिससे हमारा आध्यात्मिक विकास बाधित हो सकता है।
शास्त्रों के अनुसार उचित आसन
शास्त्रों में विभिन्न प्रकार के आसनों का वर्णन है, लेकिन कुछ आसनों का प्रयोग शुभ कार्यों के लिए करना अत्यंत लाभकारी माना गया है। इन आसनों में प्रमुख हैं:
- रेशम का आसन
- कंबल का आसन
- काष्ठ (लकड़ी) का आसन
- तालपत्र का आसन
हालांकि, वर्तमान समय में कई प्रकार के आसनों का प्रयोग संभव नहीं है, जैसे पशुओं की चर्म का आसन, जो पहले साधकों द्वारा उपयोग किया जाता था। ब्रह्मांड पुराण में यह विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि जिस आसन पर कोई साधक पहले साधना कर चुका हो, उस आसन का पुनः प्रयोग नहीं करना चाहिए। सभी के लिए अलग-अलग आसन का उपयोग शुभ होता है।
कुशा के आसन का महत्व
कुशा का आसन सबसे शुद्ध और आध्यात्मिक रूप से प्रभावशाली माना जाता है। जो व्यक्ति कुशा के आसन पर बैठकर मंत्र जाप या पूजा करते हैं, उन्हें शुचिता, तन्मयता और स्वास्थ्य में वृद्धि मिलती है। कुशा का संबंध केतु से है, जो मोक्षकारक ग्रह है, और यह ऊर्जा के ह्रास को भी रोकता है।
कंबल के आसन का विशेष महत्व
यदि कोई व्यक्ति कार्य सिद्धि और मनोकामना की पूर्ति के लिए जप करना चाहता है, तो उसे कंबल के आसन पर बैठकर जाप करना चाहिए। यह सर्वोत्तम लाभदायक माना गया है, क्योंकि यह आसन कार्य सिद्धि में सहायक होता है।
आसन को पवित्र करने के मंत्र
पूजा से पहले आसन को मंत्रों द्वारा पवित्र और शुद्ध किया जाता है। जब भी पूजा करने जाएं, अपने आसन को शीश पर लगाकर प्रणाम करें और फिर उसे यथास्थान रखें। यह क्रिया आसन को शुद्ध करने के साथ ही उसमें सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बनाए रखने में मदद करती है।
पूजा और जप के दौरान आसन का सही चयन न केवल आपकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक है, बल्कि यह आपके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति भी लाता है। इसलिए, अगली बार जब भी आप पूजा करें, सही आसन का उपयोग करना न भूलें और उसकी पवित्रता का ध्यान रखें।



