छत पर लाल रंग की लाइट जलाने का लक्ष्मी जी से क्या है संबंध, युगों पुरानी परम्परा का क्या है कारण

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वैसे तो पूरे कार्तिक मास कई मायनों में महत्वपूर्ण है क्योंकि इस माह में करवा चौथ, अहोई अष्टमी, रमा एकादशी, गोवत्स द्वादशी आदि कई तीज त्योहार के साथ ही पांच दिनों तक चलने वाला दीपावली पर्व भी है. इसी माह में लाभ पंचमी, सूर्य षष्ठी, आंवला नवमी, देव प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह के अलावा पूर्णमासी को गंगा स्नान और सिख पंथ की पहली पातशाही गुरुनानक देव जी महाराज का प्रकाश पर्व भी होता है. इन सभी त्योहारों को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है किंतु इनमें दीपावली का पर्व ऐसा है ,जो देश ही नहीं विदेशों में भी धूम धाम से होता है. 

इस रात भ्रमण पर निकलती हैं मां लक्ष्मी

पांच दिनों के इस पर्व में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, अमावस्या को महालक्ष्मी यानी धन की देवी का पूजन. ब्रह्म पुराण के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को मां लक्ष्मी विष्णु जी से अनुमति लेकर अकेले पृथ्वी पर भ्रमण करने निकलती हैं और अपने भक्तों के धन धान्य संबंधी कष्टों को दूर करती हैं. इसी मान्यता के आधार पर इस दिन मां लक्ष्मी का विधि विधान से पूजन कर उन्हें तरह-तरह से प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है. भक्त रात भर भजन कीर्तन और जागरण करने के साथ ही घरों पर रोशनी करते हैं ताकि माता आएं तो उन्हें घर वाले सोते हुए न मिलें और उनके घर पधार कर कृपा कर सकें.

 

छतों पर लाल बल्ब की रोशनी

इस पर्व पर छत पर रोशनी करने का प्रावधान है और यह कार्य सदियों से होता चला आ रहा है. जब बिजली के संसाधन नहीं थे, तब भी लोग छत पर एक लंबा सा बांस लगाते थे और उसके सबसे ऊपरी सिरे पर लाल पन्नी से बनी ही कंडील के भीतर एक दीपक जला कर टांग देते थे. यह कार्य कार्तिक मास का कृष्ण पक्ष के प्रारंभ के साथ ही शुरु हो जाता था और पूर्णिमा तक किया जाता  था. अब आधुनिक युग में लोग छत पर लंबे से बांस में लाल बल्ब जलाते हैं. इस बल्ब को जला कर एक तरह से माता लक्ष्मी को सिग्नल दिया जाता है कि आपको इस घर में भी आकर अपनी धन धान्य सुख समृद्धि रूपी कृपा बरसाएं. यदि आपने कार्तिक मास के प्रारंभ से यह कार्य नहीं किया है तो अमावस्या की रात तो अवश्य ही करें.

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