शिव जी की अनुमति से सती जी अपनी पत्नी की खोज में भटक रहे श्री राम की परीक्षा लेने की योजना बनाते हुए आगे बढ़ीं. उनके मन में अनेक तरह के विचार और योजनाएं थीं कि कैसे वह श्री राम की परीक्षा ले सकती हैं. शिव जी ने सती जी को चेताया था कि जो भी भ्रम तुम्हारे मन में है, उसे विवेकपूर्वक दूर करो और उसी के अनुसार कार्य करो. शिव जी ने यह भी कहा था कि जब तक तुम वापस नहीं आओगी, मैं इसी बड़ के पेड़ के नीचे तुम्हारा इंतजार करूंगा. यह शिव जी के धैर्य और उनके सती के प्रति असीम प्रेम का प्रतीक था.
सती जी का भ्रम
सती जी उत्सुकता से श्री राम की परीक्षा लेने के लिए चल पड़ीं. उनके मन में यह विचार था कि क्या श्री राम वाकई भगवान हैं या सिर्फ एक साधारण मानव. उन्होंने अपने आप से कहा कि अगर वह श्री राम की परीक्षा लेंगी, तो उनकी असली पहचान का पता चलेगा. इसी कारण उन्होंने सीता जी का रूप धारण कर लिया, ताकि श्री राम की प्रतिक्रिया को परख सकें. यह सती जी के मन का भ्रम था, जो उन्हें श्री राम की दिव्यता को समझने से रोक रहा था.
श्री राम की दिव्यता
श्री राम, जो सबके अंतःकरण के ज्ञाता थे, तुरंत सती जी की माया को पहचान गए. उनके सामने सती का सीता के रूप में आना एक असामान्य घटना थी, लेकिन श्री राम ने अपनी विनम्रता और विवेक से इस परिस्थिति का सामना किया. उन्होंने सती जी को पहचानते हुए हंसते हुए उनका स्वागत किया और कहा, “आप इस वन में अकेली किसे ढूंढ रही हैं? वृषकेतु शिव जी कहां हैं?”
श्री राम के इन रहस्यमय और विचारशील शब्दों ने सती जी को भीतर से हिला दिया. वह समझ गईं कि उनके कपट को भगवान राम ने तुरंत भांप लिया है. लक्ष्मण भी इस दृश्य से चकित हो गए लेकिन कुछ बोल नहीं सके, क्योंकि वह भगवान राम की लीला को समझ नहीं पाए.
सती का पश्चाताप
श्री राम के शब्दों ने सती जी के मन में गहरा प्रभाव डाला. उन्हें शिव जी की चेतावनी याद आ गई कि वह इस प्रकार की परीक्षा न लें. अपने मन में उठी आशंकाओं और पछतावे से भरकर सती जी वहां से चल पड़ीं. अब उनके मन में यह विचार गूंजने लगा कि उन्होंने शिव जी की बात न मानकर भारी गलती कर दी है. उन्हें यह महसूस हुआ कि उनका यह कार्य शिव जी और श्री राम, दोनों के प्रति अनादर का प्रतीक था.
शिव जी का चिंतन
उधर, शिव जी को इस बात का आभास हो चुका था कि सती का कल्याण अब संभव नहीं है. उन्होंने सती के इस निर्णय पर गहन विचार किया और राम नाम के जप में लीन हो गए. शिव जी जानते थे कि सती जी ने जो मार्ग चुना है, वह उनके लिए उचित नहीं है और अब वह उस स्थिति में फंस चुकी हैं जहां से वापसी संभव नहीं है. इस घटना ने शिव जी को आंतरिक रूप से विचलित किया, लेकिन वह अपने ध्यान और राम के प्रति असीम भक्ति से खुद को शांत रखने की कोशिश कर रहे थे.
लेख का मर्म
यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि भगवान की लीला और उनकी माया को समझ पाना अत्यंत कठिन है. सती जी के मन का भ्रम और उनकी परीक्षा लेने की जिज्ञासा ने उन्हें एक कठिन परिस्थिति में डाल दिया. श्री राम, जो सब जानते हैं, ने सती जी के कपट को पहचान लिया लेकिन फिर भी उन्होंने सती जी के प्रति विनम्रता और आदर दिखाया. इस घटना के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि भगवान के प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास ही सच्ची भक्ति का मार्ग है, और किसी भी प्रकार के संशय या कपट से हमें बचना चाहिए.