नारद मुनि पर्वतराज हिमाचल के घर पहुंचे तो उनकी खूब आवभगत हुई फिर उन्होंने अपनी बेटी पार्वती के भविष्य और विवाह के बारे में जानकारी की. नारद जी ने कहा कि तुम्हारी बेटी पूरे जगत में पूजी जाएगी और इसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं होगा. इसका पतिव्रत धर्म इतना कठिन होगा कि संसार भर की महिलाएं इसका नाम लेकर पतिव्रत रूपी तलवार का धार पर चलने में भी संकोच नहीं करेंगी. उन्होंने आगे कहा कि यह कन्या हर तरह से सुलक्षण वाली है.
दामाद के बारे में सुन हिमवान दुखी हुए
त्रिकालज्ञ महर्षि नारद ने कहा कि हर तरह से गुणवान और सौभाग्यशाली होने के बाद भी पर्वतराज आपकी बेटी में दो चार अवगुण भी हैं, जिन्हें जान लेना जरूरी है. इतना सुनते ही पर्वतराज और उनके साथ उनकी पत्नी मैना चौंक पड़ीं और ध्यान से सुनने लगीं. उन्होंने उसके होने वाले पति का विश्लेषण करते हुए बताया कि इसे गुणहीन, मानहीन, माता पिता विहीन, उदासीन, लापरवाह, योगी, जटाधारी, निष्काम हृदय, बिना वस्त्र वाला पति प्राप्त होगा, ऐसा इस कन्या के हाथ की रेखाएं बता रही हैं. इतना सुनते ही पर्वतराज और उनकी महारानी को गहरा दुख हुआ.
पति के बारे में, जान मुस्कुराने लगी पार्वती
पर्वतराज और उनकी पत्नी मैना दोनों ही महर्षि की बात सुनकर चिंता में पड़ गए लेकिन पार्वती जी उनकी बातों को सुनकर मुस्कुराने लगी, उनके मुस्कुराने का रहस्य तो सर्वज्ञ होते हुए भी नारद मुनि नहीं जान सके. गोस्वामी तुलसीदास जी श्री राम चरित मानस में लिखते हैं कि महर्षि की बात कभी गलत हो ही नहीं सकती है, इस विचार के आधार पर पार्वती जी ने उनके वचनों को अपने हृदय में मान लिया.
नारद जी ने बताया विधाता का लिखा नहीं मिट सकता
जहां एक ओर पार्वती जी के मन में मुनि की बातें सुनकर शिव जी के चरणों में स्नेह पैदा होने लगा किंतु मन में एक शंका भी हुई कि उनसे मिलना तो बहुत ही कठिन है. महर्षि की बातें कभी झूठी नहीं हो सकती हैं, ऐसा विचार कर पर्वतराज हिमवान, मैना और होशियार सखियां चिंता करने लगीं तभी सभा का सन्नाटा तोड़ते हुए पर्वतराज बोले, हे मुनीश्वर, अब आप ही उपाय बताएं. इस पर महर्षि ने उत्तर देते हुए कहा कि विधाता ने माथे पर जो भी लिख दिया है, उसे कोई भी नहीं मिटा सकता है. तो भी मैं एक उपाय बता सकता हूं जिससे तुम्हें वैसा ही वर मिलेगा जैसा मैंने अभी बताया है. मैंने जो कुछ भी अवगुण बताए हैं वह सब शिव जी में हैं. यदि शिव जी के साथ विवाह हो जाए तो यही अवगुण गुण में परिवर्तित हो जाएंगे. जिस तरह विष्णु जी शेषनाग पर सोते हैं किंतु कोई भी विद्वान उन पर दोष नहीं लगाता है. सूर्यदेव और अग्निदेव भी अच्छे बुरे सभी रसों का भक्षण करते हैं किंतु उनको कोई बुरा नहीं कहता है.
कथा का मर्म
पार्वती जी की रेखाएं देख कर उनके लिए योग्य वार बांचने की इस कथा से सीख मिलती है कि जिन बातों को समाज के लोग अवगुण समझते हैं, यदि वही सब श्रेष्ठतम व्यक्ति में हों तो वह गुण के रूप में दिखने लगते हैं. दूसरी बात है कि विधाता के लिखे को कोई नहीं बदल सकता है, अच्छा बुरा जीवन मरण सब उनके हाथ में ही है.