पं. राजेंद्र प्रसाद त्रिपाठी
भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत में अनेकता में एकता का सिद्धांत गहराई से निहित है. यह अवधारणा वैदिक दर्शन की एक महत्वपूर्ण देन है, जिसका विस्तार हमें पुराणों और तंत्र ग्रंथों में भी देखने को मिलता है. भारतीय तंत्र शास्त्र में शिव, दुर्गा और विष्णु जैसे प्रमुख देवताओं के बीच कोई भेदभाव नहीं माना जाता, बल्कि उनमें एकता को ही श्रेष्ठ बताया गया है. इस लेख में हम वैदिक दर्शन के इस दिव्य उपहार की व्याख्या करेंगे और महाविद्याओं के गूढ़ रहस्यों को समझने का प्रयास करेंगे.
शिव, दुर्गा और विष्णु की एकता: मुंडमाला तंत्र की दृष्टि
तंत्र ग्रंथों में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ, मुंडमाला तंत्र, इस बात पर बल देता है कि जो शिव हैं, वही दुर्गा हैं और जो दुर्गा हैं, वही विष्णु हैं. इन तीनों देवताओं में भेद करने वाला व्यक्ति अज्ञानी और दुर्बुद्धि कहलाता है. इसके अनुसार, हमें देवी, शिव और विष्णु में एक ही सत्ता देखनी चाहिए. जो भी इन देवताओं में भेद करता है, उसे नरक का भागी माना जाता है. वैदिक और तांत्रिक परंपराएं इस प्रकार की एकता की विचारधारा को पुष्ट करती हैं.
देवी पराम्बा की ब्रह्मरूपिणी सत्ता
देवी भागवत के अनुसार, एक बार देवताओं ने देवी पराम्बा से पूछा, “हे देवी, आप कौन हैं?” इसके उत्तर में देवी ने कहा, “मैं ब्रह्मरूपिणी हूं और सारा संसार मुझसे उत्पन्न हुआ है.” इस उत्तर में देवी ने यह भी स्पष्ट किया कि उनमें और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है; दोनों सदैव एक ही हैं. यह संवाद देवी पराम्बा की अद्वितीय सत्ता और ब्रह्म से उनके अटूट संबंध को दर्शाता है. देवी ने कहा, “जो मैं हूं, वही ब्रह्म हैं, और जो ब्रह्म हैं, वही मैं हूं.” यह शाश्वत सत्य हमें इस बात का बोध कराता है कि परमात्मा और प्रकृति में कोई भेद नहीं है.
महाविद्या: भोग और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग
तंत्र शास्त्रों के ऋषियों ने पराशक्ति के निर्गुण और निराकार स्वरूप का गहन विवेचन किया है. साथ ही, साधकों की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पराशक्ति के सगुण और साकार रूपों का भी चित्रण किया गया है. इन असंख्य रूपों में नवदुर्गा और दस महाविद्याएं विशेष प्रसिद्ध हैं.
तंत्र परंपरा में अविद्या, विद्या और महाविद्या के रूप में ज्ञान की व्याख्या की गई है. अविद्या वह लौकिक ज्ञान है, जिससे संसारिक जीवन चलता है, जबकि विद्या वह ज्ञान है, जो मुक्ति का मार्ग बताती है. महाविद्या वह है, जो व्यक्ति को भोग और मोक्ष, दोनों की प्राप्ति कराती है. महाविद्या की साधना से व्यक्ति को उसकी इच्छाओं के अनुसार फल प्राप्त होता है—जैसे पुत्रार्थी को पुत्र, धनार्थी को धन और मोक्षार्थी को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
दस महाविद्याओं की रहस्यमयी साधना
शाक्त तंत्र में वर्णित दस महाविद्याएं अत्यंत गूढ़ और रहस्यमयी मानी जाती हैं. ये दस महाविद्याएं हैं—काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, श्री विद्या (ललिता), छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला (लक्ष्मी).
इन महाविद्याओं का ज्ञान सरल नहीं है और यह स्वार्थी या अहंकारी व्यक्ति को प्राप्त नहीं होता. केवल श्रद्धा, विश्वास और पूरी निष्ठा से साधना करने वाले साधक को ही भगवती पराम्बा अपनी रहस्यमयी शक्तियों का अनुभव कराती हैं. यह रहस्य कभी शास्त्रों के माध्यम से तो कभी सद्गुरु के उपदेशों द्वारा साधक के सामने प्रकट होता है.
वैदिक दर्शन और तांत्रिक साधना का महत्व
वैदिक दर्शन और तंत्र शास्त्रों में वर्णित अनेकता में एकता का सिद्धांत और महाविद्याओं का गूढ़ रहस्य हमें यह सिखाते हैं कि ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां एक ही स्रोत से उत्पन्न हैं. यह ज्ञान व्यक्ति को सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होता है. महाविद्याओं की साधना केवल भौतिक सुख-सुविधाओं की पूर्ति नहीं करती, बल्कि मोक्ष के मार्ग पर भी साधक को अग्रसर करती है. इस प्रकार, वैदिक दर्शन का यह दिव्य उपहार न केवल भारतीय संस्कृति की धरोहर है, बल्कि यह आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करना चाहते हैं.