Vastu : वास्तुपुरुष कैसे करते हैं जीवन खुशहाल? भूमि और भवन से कैसा है इनका संबंध

0
276

Vastu: ब्रह्मांड की हर वस्तु का निर्माण पांच तत्वों से हुआ है, और इन तत्वों का उचित समायोजन ही वास्तुशास्त्र कहलाता है। जब हम प्रकृति के अनुरूप कार्य करते हैं, तो हमें हमेशा अनुकूल परिणाम मिलते हैं। इसी प्रकार, जब किसी भवन या अन्य संरचना का निर्माण प्राकृतिक अनुकूलता के अनुसार किया जाता है, तो यह निर्माण भी सकारात्मक परिणाम देता है। ऐसे भवन में रहने वाले व्यक्ति को प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने में मदद मिलती है, जिससे वह किसी भी प्रकार के दोष से मुक्त होकर एक खुशहाल और समृद्ध जीवन व्यतीत कर सकता है।

पंचतत्व और वास्तुपुरुष का महत्व  

वास्तुशास्त्र में पंचतत्वों और वास्तुपुरुष की पूजा का विशेष महत्व है। जब भूमि चयन और निर्माण कार्यों में देवताओं की आराधना की जाती है, तो उस स्थान पर सकारात्मक ऊर्जाओं का प्रवाह बढ़ जाता है। मनुष्य, इन तत्वों और वास्तुपुरुष की कृपा पाकर, अपनी भूमि और भवन निर्माण को सफल बना सकता है। वास्तुपुरुष को प्राणमय पुरुष के रूप में देखा जाता है, और उनकी आध्यात्मिकता को विशेष महत्व दिया जाता है। संतुष्टि और सेवा द्वारा किसी भी जीव या व्यक्ति को प्रसन्न किया जा सकता है, जिससे उसकी कृपा प्राप्त होती है। प्रकृति के विपरीत आचरण करने पर व्यक्ति को कष्ट, रोग, और दारिद्र्य जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यही वास्तुशास्त्र का मूल रहस्य है।

सकारात्मक ऊर्जा और वास्तु विज्ञान  

वास्तुशास्त्र का मुख्य उद्देश्य भवन निर्माण में सकारात्मक ऊर्जा का समायोजन करना है। जिस प्रकार एक स्वस्थ शरीर के लिए उचित आहार की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार वास्तुशास्त्र में भवन निर्माण के लिए सकारात्मक ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। यह विज्ञान भूमि, वायु, जल, आकाश, और अग्नि जैसे तत्वों का समायोजन करता है, जिससे भवन में चुंबकीय और वैद्युत तरंगों का प्रभाव संतुलित रहता है। 

वास्तुशास्त्र का परिचय  

वास्तुशास्त्र पंचतत्वों (जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि, और आकाश) और तीन प्रमुख बलों (गुरुत्व, चुंबकीय, और सौर ऊर्जा) पर आधारित विज्ञान है। इसके अतिरिक्त, यह आठ दिशाओं, ग्रहों, और नक्षत्रों की गति के आधार पर जीवन को संतुलित और सुखमय बनाने का प्रयास करता है। जब किसी भवन का निर्माण इन तत्वों के अनुसार किया जाता है, तो वह भवन सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर हो जाता है, जो जीवन में सुख और समृद्धि लाता है।

वास्तुपुरुष की उत्पत्ति  

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और राक्षस अंधकासुर के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में भगवान शिव के पसीने से एक विशाल और क्रूर प्राणी उत्पन्न हुआ, जिसने पूरे ब्रह्मांड में हड़कंप मचा दिया। ब्रह्मा जी की आज्ञा से देवताओं ने इस प्राणी को पृथ्वी पर औंधे मुंह गिरा दिया, जिसका सिर ईशान कोण और पैर नैऋत्य कोण में था। ब्रह्मा जी की आराधना करने पर उसे ‘वास्तुपुरुष’ का दर्जा मिला। ब्रह्मा जी ने उसे आशीर्वाद दिया कि यदि किसी भी निर्माण कार्य में उसकी पूजा न की गई, तो वह निर्माण असफल होगा और जीवन में दरिद्रता और अंधकार का प्रवेश होगा। 

वास्तुपुरुष और उनकी स्थिति  

वास्तुपुरुष को भूखंड में औंधे मुंह लेटे हुए पुरुष के रूप में दर्शाया गया है। उनका सिर ईशान कोण में, कंधे उत्तर और पूर्व में, कुहनियां वायव्य और अग्नि कोण में, और पैर नैऋत्य कोण में स्थित होते हैं। यदि वास्तुपुरुष की स्थिति और उनके नियमों के अनुसार निर्माण किया जाता है, तो वह शुभ फल देता है, अन्यथा विपरीत प्रभाव उत्पन्न हो सकता है। ब्रह्मा जी के आशीर्वाद के अनुसार, वास्तुपुरुष की पूजा के बिना कोई भी निर्माण सफल नहीं होता। जब उन्हें प्रसन्न किया जाता है, तो वह वास्तु देवता बनकर निर्माण कार्यों को सफल बनाते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here