Unao Balaji Sun Temple : झांसी से करीब 35 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश की सीमा पर प्रसिद्ध दतिया मंदिर के निकट उनाव बालाजी में भी एक सूर्य मंदिर है, इस मंदिर में सूर्य भगवान की मूर्ति के साथ उनका यंत्र भी स्थापित है जो इस मंदिर को अन्य सूर्य मंदिरों से अलग करता है. मंदिर की एक और खास बात है कि यंत्र इस तरह से स्थापित है कि सूर्य की पहली किरण उस पर पड़ती है. मान्यता है कि सूर्य भगवान का यह मंदिर हजारों साल पुराना है. यहां पर मकर संक्रांति और रविवार के दिन दर्शकों की खासी भीड़ उमड़ती है. सूर्य मंदिर में अंदर एक दीया है जो बरसों से जल रहा है.
मंदिर का इतिहास
जानकारों के अनुसार सतयुग में राजा मरूच ने यहां पर एक यज्ञ आयोजित कराया, जिसमें उन्हें सभी देवताओं को आमंत्रित किया, कई देवता शामिल भी हुए किंतु सूर्यदेव ने किन्हीं कारणों से आने में असमर्थता व्यक्त की. इस पर उन्होंने सूर्य देव की पत्थर की मूर्ति को रखा, सूर्यदेव ने इसी मूर्ति में प्रवेश किया और यज्ञ में शामिल हुए. स्थानीय लोग बताते हैं कि बाद में यह मूर्ति यज्ञ स्थल पर ही रखी रही. एक स्थानीय निवासी को सपने में पुष्पावती नदी के घाट पर सूर्यदेव की मूर्ति दिखी तो वह दूसरे दिन उस स्थान पर पहुंचा और मूर्ति को देख कर आश्चर्य चकित रह गया. उस स्थान पर सूर्य मंदिर स्थापित कर दिया गया. उनाव बालाजी में सूर्य मंदिर के कारण इसे सूर्य नगरी भी कहा जाता है. राजा मरूच के यज्ञ की कहानी पुराणों में भी मिलती है. मंदिर की स्थापना 16 वीं शताब्दी की बताई जाती है जहां पर शुरुआत में एक चबूतरे पर सूर्य यंत्र स्थापित था जिसे बाद में झांसी के राजा नारायण राव ने मंदिर का रूप दिया. दतिया के राजा नरेश राव ने 1736 से 1762 के बीच मंदिर को भव्य रूप प्रदान कराया.
मंदिर की परम्परा
उनाव बालाजी के इस सूर्य मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ही तरह का महत्व है. परम्परा के अनुसार लोग नदी में स्नान कर भगवान सूर्य को जल अर्पित करने मंदिर में जाते हैं. यह क्रम प्रत्येक रविवार को देखने को तो मिलता ही है, मकर संक्रांति के अवसर पर तो यहां मेला जैसा रहता है. एक और खास बात है कि यहां पर देशी घी के नौ कुएं हैं. पुष्पावती नदी के घाट पर स्थित यह मंदिर असाध्य चर्म रोगों को ठीक करने के लिए जाना जाता है. माना जाता है कि यहां आने वाले निसंतान दंपत्तियों को संतान का सुख मिलता है. घी के कुओं के बारे में कहा जाता है कि मंदिर में प्रतिदिन अखंड ज्योति के लिए आठ किलो घी का उपयोग किया जाता है, जबकि एक दिन में औसतन 20 किलो घी चढ़ावे में आता है. अतिरिक्त घी को कुएं में रखा जाता है. कहते हैं कि मंदिर में घी चढ़ाने की परंपरा करीब 350 साल पहले शुरू हुई थी.