त्रिशक्ति और शिवतत्व के मिलन से होती है स्कंद की उत्पत्ति, माता की उपासना से होता दुखों का अंत और मिलता है मोक्ष

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Anjani Nigam

नवरात्र के पांचवें दिन तक मां की साधना करने वाले साधक को सभी लौकिक, सांसारिक और माया के बंधनों से मुक्त मिल जाती है. इस दिन स्कंदमाता की आराधना की जाती है. पूरी तरह से एकाग्र होकर मां का ध्यान करने से भक्त को अलौकिक तेज प्राप्त होता है क्योंकि स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं. मां की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और पृथ्वीलोक में ही परम शांति व सुख की अनुभूति होती है. मां की कृपा से मोक्ष का द्वार स्वयं ही सुलभ हो जाता है. एक और खास बात है कि मां के इस स्वरूप की आराधना से भगवान स्कंद की पूजा भी स्वाभाविक रूप से हो जाती है. 

माता का स्वरूप
माता पार्वती के एक पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है. माता इस स्वरूप में अपनी गोद में भगवान स्कंद को बालरूप में धारण करती हैं. माता स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं, दाहिनी तरफ की ऊपरी भुजा में वह भगवान स्कंद को गोद में पकड़े हैं जबकि निचली भुजा में कमल का फूल लिए हुए हैं. कमल के फूल पर ही विराजित होने और सफेद जैसा गोरा रंग होने के कारण ही इन्हें पद्मासना की देवी, शुभ्र वर्णा और विद्यावाहिनी देवी भी कहा जाता है. इनका वाहन भी सिंह है. माता की आराधना से प्राप्त तेज ही भक्त की सभी जरूरतों को पूरा करता है और उसे प्राप्य वस्तुओं की रक्षा भी. माता की उपासना में भक्त “या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।” मंत्र का पाठ करता है जिसमें वह प्रार्थना करता है कि सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध मां अम्बे आपको बारम्बार प्रणाम है, हे मां आप मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें. 

स्कंद शब्द का अर्थ और मर्म भी जानिए
अक्सर देखा जाता है कि लोगों के पास ज्ञान तो होता है किंतु उचित समय पर वह उसका इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं. घर में कभी किसी उपकरण के खराब होने पर अपने जिस ज्ञान के माध्यम से आप उसे ठीक करते हैं, उसे ही व्यवहारिक ज्ञान कहा जाता है. स्कंद सही व्यवहारिक ज्ञान और क्रिया के एक साथ होने का प्रतीक है. जब किसी व्यक्ति का कर्म सही और व्यवहारिक ज्ञान से लिप्त होता है तब स्कंद तत्व का उदय होता है, देवी दुर्गा स्कंद तत्व की माता हैं. स्कंद शब्द ज्ञान शक्ति और कर्म शक्ति का एक साथ सूचक है. इन दोनों शक्तियों के मिश्रण का परिणाम स्कंद ही है. स्कंदमाता वह दैवीय शक्ति हैं, जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती है, जो ज्ञान को कर्म में बदलती है. मान्यता है कि देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम हैं. इन त्रिशक्तियों के साथ शिव तत्व के मिलन से ही स्कंद का जन्म होता है.

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