कानपुर में रामलीला का मंचन ढाई सौ सालों से भी अधिक पुराना है जहां मंचन स्थल तक भगवान के स्वरूपों की सवारी यानी यात्रा भी निकलती है और विजयादशमी के दिन अन्याय पर न्याय और असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक रावण के पुतले का दहन भी होता. ऐसा कानपुर ही नहीं बल्कि देश के अधिकांश नगरों में होता है किंतु कानपुर के निकट के दो जिले ऐसे हैं जहां पर विजयादशमी के दिन पुतले का दहन नहीं किया जाता है. दशहरा से ठीक पांच दिन बाद यानी शरद पूर्णिमा के दिन इन शहरों में पुतला दहन होता है लेकिन दोनों ही शहरों की मान्यता अलग अलग है. ये दो जिले हैं कन्नौज और उन्नाव.
यहां शरद पूर्णिमा को होता पुतला दहन
सबसे पहले बात करते हैं कन्नौज की, कनौज एक प्राचीन नगर है जिसका जिक्र पुराणों और महाभारत में भी आया है. यहां पर दशहरा का पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को न मना कर पांच दिन के दिन बाद शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. उसी दिन बड़ा मेला लगता है और उसी में रावण के पुतले का दहन किया जाता है. जिले की यह परिपाटी 200 सालों से चली आ रही है. यहां की रामलीला का मंचन इतना जोरदार होता है कि लोग साल भर इंतजार करते हैं और दूसरे शहरों में बसे लोग भी शामिल होते हैं.
करते हैं रावण की मृत्यु का इंतजार
कन्नौज के लोगों का मानना है कि प्रभु श्री राम ने बलशाली रावण की नाभि में तीर चला कर उसका अमृत कलश तो निकाल दिया था जिसके कारण वह अजेय था किंतु तीर लगते ही उसकी मृत्यु नहीं हुई बल्कि वह भूमि पर गिर पड़ा. उसकी मृत्यु तो पांच दिन बाद शरद पूर्णिमा के दिन हुई थी. इन पांच दिनों में प्रभु श्री राम ने अपने लघु भ्राता लक्ष्मण, जो वनवास में उनके साथ थे, को रावण के पास राजनीति का पाठ सीखने के लिए भेजा. दरअसल श्री राम जानते थे कि अत्याचारी और आततायी होने के बाद भी रावण वेद पुराणों का ज्ञाता और प्रकांड विद्वान था. शरद पूर्णिमा को उसकी मृत्यु हुई थी इसीलिए उस दिन कन्नौज में रामलीला का मंचन और पुतला दहन होता है.
उन्नाव में देरी का यह है कारण
उन्नाव भी एक प्राचीन नगर है जो कानपुर के बगल में ही स्थित है. यह नगर पौराणिकता, ऐतिहासिकता, राजनीतिक जागरूकता और साहित्यिक अभिरुचि के कारण प्रसिद्ध है. यहां भी दशहरा वाले दिन पुतला दहन न करने का रिवाज है. दरअसल कानपुर और प्रदेश का राजधानी के बीच स्थित उन्नाव किसी समय में कस्बा था और यहां के लोग रोजगार के लिए लखनऊ और कानपुर में प्रवास करते थे. लखनऊ और कानपुर में दशहरा उत्सव मनाने की परम्परा बहुत पुरानी थी और यहां पर देख कर ही उन्नाव के लोगों ने अपने जिले में भी इसे शुरु करने का निर्णय लिया. स्थानीय लोगों के अनुसार विचार किया गया कि यदि दशहरा वाले दिन मेला लगाकर पुतला दहन किया गया तो उपस्थित लोगों की संख्या बहुत ही कम रहेगी. इसीलिए यहां के लोगों ने शरद पूर्णिमा के दिन दशहरा मना कर पुतला दहन करने का निर्णय लिया ताकि कार्यक्रम में संख्या और जोश की कमी न रहे.



