वृंदावन की महिमा अपरम्पार जहां भगवान श्री कृष्ण के प्रभाव से भक्ति रहती जीवंत, लेकिन ज्ञान और वैराग्य हो रहा कमजोर जानिए क्यों

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देवर्षि नारद पृथ्वी लोक में धर्म को विलुप्त होते और व्याभिचार, कदाचार आदि बढ़ने से दुखी हो ऋषियों से चर्चा कर रहे थे. उन्होंने ऋषियों को वृंदावन धाम की एक घटना बतायी. घटना के अनुसार यमुना के तट पर एक युवती दुखी भाव में थी और उसके निकट ही दो वृद्ध पुरुष लंबी लंबी सांस ले रहे थे. उसके चारो तरफ सैकड़ों महिलाएं पंखा झलते हुए उसे सांत्वना दे रही थीं. नारद जी ने कहा कि भीड़ देख कर वह भी उस स्थल पर पहुंचे तो युवती ने उन्हें देखते ही अपनी चिंता दूर करने का आग्रह किया. 

पुत्रों की स्थिति देख दुखी हुई मां भक्ति

नारद जी द्वारा परिचय पूछने पर उस युवती ने बताया कि वह स्वयं भक्ति है जबकि दोनों पुरुष उसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य हैं. समय के फेर में दोनों बुरी तरह जर्जर हो गए हैं. साथ खड़ी देवियां गंगा जी आदि नदियां हैं जो मेरी सेवा करने आई हैं. इसके बाद भी मुझे शांति नहीं है. युवती बोली, उसका जन्म दक्षिण में हुआ, कर्नाटक में बड़ी हुई और महाराष्ट्र में सम्मानित भी हुई किंतु गुजरात में आते ही बुढ़ापे ने घेर लिया. कलयुग के प्रभाव से पाखंडियों ने अंग भंग कर दिए जिसके कारण अपने दोनों पुत्रों के साथ निस्तेज बनी रही. अब वृंदावन धाम आने पर चमत्कार हो गया और मैं परम सुंदरी और नवयुवती हो गयी किंतु मेरे पुत्रों की दशा पहले जैसी ही है. पुत्रों की स्थिति के कारण दुख है क्योंकि बूढ़ा तो मां को होना चाहिए किंतु यहां उलटा है. 

नारद मुनि ने अपनी दिव्य दृष्टि से देख कर बताया कि तुम्हें दुख नहीं करना चाहिए, श्री हरि तुम्हारा कल्याण करेंगे. फिर आगे कहा कि कलयुग के कारण ही सदाचार, योगमार्ग और तप का विलोप हो रहा है. श्री मद्भागवत के प्रथम अध्याय के अनुसार नारद जी ने युवती से कहा कि अब कलयुग के प्रभाव के कारण किसी को भी तुम्हारे साथ तुम्हारे पुत्रों ज्ञान और वैराग्य के दर्शन नहीं होते हैं.

कलयुग में हरिकीर्तन से तप और योग जैसा फल

युवती के यह पूछने पर कि राजा परीक्षित ने इस पापी कलयुग को क्यों रहने दिया और श्री हरि कैसे यह सब अधर्म देख रहे हैं तो नारद मुनि बोले, श्री कृष्ण के पृथ्वी छोड़ते ही यहां पर कलयुग आ गया था, दिग्विजय के लिए निकले राजा परीक्षित ने कलयुग को दीन अवस्था में देखा किंतु परोपकारी होने के कारण उसका वध करना उचित नहीं समझा. राजा को पता था कि जो फल तपस्या योग और समाधि से नहीं मिलता, वही फल कलयुग में श्री हरिकीर्तन से प्राप्त होता है. सूत जी ने शौनक मुनि को नारद जी और युवती का संवाद बताते हुए कहा कि भक्ति नारद जी का उपदेश सुन कर बहुत ही प्रसन्न हुई और कहा कि आपके उपदेश से कयाधु के पुत्र प्रह्लाद ने माया पर विजय और ध्रुव ने आपकी कृपा से ध्रुव पद प्राप्त किया. नारद जी ने युवती से कहा कि तुम भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों का चिंतन करो तो तुम्हारा सारा दुख दूर हो जाएगा.

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