देवताओं के आग्रह पर कामदेव अपना फूलों का धनुष और सहायकों को लेकर शिव जी के पास जाने के लिए चला. हाथों में मछली के निशान वाली ध्वजा भी थी. अब कामदेव ने कोप शुरु किया तो उसके प्रभाव से क्षण भर में ही वेदों की मर्यादा मिट गयी. यहां तक कि विवेक की सेना के नायक ब्रह्मचर्य, नियम, हर तरह का संयम, धीरज, धर्म, ज्ञान, विज्ञान, सदाचार, जप, योग वैराग्य आदि सब विवेक के साथ रणभूमि में पीठ दिखा कर भाग खड़े हुए. भाग कर उन लोगों के अच्छे ग्रन्थों के पन्नों के बीच शरण ली. ऐसी स्थिति में पूरे संसार में कोलाहल मचने लगा, सबके मन में एक ही सवाल था, हे भगवान अब क्या होगा. ऐसा दो सिर वाला कौन है जिसके लिए रति के पति कामदेव ने क्रोध करके धनुष बाण उठा लिया है.
कामदेव को क्रोध से सब भूले मर्यादा
कामदेव के क्रोध का परिणाम यह हुआ कि संसार के जितने भी चर-अचर प्राणी हैं, सब अपनी अपनी मर्यादा भूल कर काम के वशीभूत हो गए. जैसे-जैसे काम का प्रभाव बढ़ता गया, सबके हृदय में काम की इच्छा बलवती होने लगी. गोस्वामी तुलसीदास श्री राम चरित मानस में लिखते हैं कि लताओं को देख कर पेड़ों की डालियां झुकने लगीं, नदियां लहराते हुए समुद्र की ओर दौड़ीं और ताल तलैया भी एक दूसरे से मिलने लगीं. वह लिखते हैं जब जड़ चीजों की यह स्थिति हो गयी तो चेतन की बात ही नहीं कही जा सकती है. सिद्ध, विरक्त, महामुनि और योगी भी काम वासना को प्रेरित होने लगे.
बस दो घड़ी तक ही सारे ब्रह्मांड में कामदेव का रचा हुआ तमाशा रहा लेकिन इतनी देर में ही संसार में सब कुछ उलटा-पुलटा हो गया. लेकिन इस मौके पर भी केवल वही लोग बचे रहे जिन्हें श्री रघुनाथ ने अपनी शरण में ले रखा था. इस दो घड़ी के समय में ही कामदेव शिव जी के सामने पहुंचा और उन्हें देख कर डर गया जिससे सारा संसार फिर जैसा का तैसा हो गया. जिस तरह नशे में मस्त लोग नशा उतर जाने पर सुखी हो जाते हैं.
शिव जी की समाधि तोड़ने को कामदेव ने चलाए बाण
इसके बाद कामदेव ने अपनी मौत तय जान कर तुरंत ही सुंदर ऋतुराज वसंत को प्रकट किया. इसके प्रभाव में हर तरह प्रेम उमड़ने लगा. कामदेव ने हर तरह की कलाएं कीं किंतु शिव जी को समाधि से न डिगा सका. कामदेव ने इसके बाद तीखे बाण छोड़े जो सीधे शिव जी के हृदय में लगे जिससे उनकी समाधि टूटी और वे जाग गए. उनके मन में बहुत तरह से क्षोभ हुआ. उन्होंने आंख खोल कर सब ओर नजर दौड़ाई और कामदेव को देख कर क्रोध हुआ तो तीसरी आंख भी खोल दी जिससे कामदेव देखते ही देखते वह भस्म हो गया. इस घटना से देवता डर गए और दैत्य सुखी हो गए. भोग में लिप्त रहने वाले लोग कामसुख की याद कर चिंतित हो गए तो योगी और साधक निष्कंटक हो गए कि अब वह ईश्वर भक्ति ठीक से कर सकेंगे.
लेख का मर्म
कामदेव यानी वासना का ऐसा प्रभाव होता है कि ब्रह्मचर्य, संयम, नियम, हर तरह का संयम, धीरज, धर्म, ज्ञान, विज्ञान, सदाचार, जप, योग, वैराग्य और विवेक आदि सब ग्रन्थों की बातें हो जाती हैं. इसलिए मनुष्यों को काम वासना के प्रभाव में आने से बचना चाहिए जो ज्ञान और बुद्धि से प्राप्त होता है.