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आपने अमृतसर के गोल्डन टेंपल के बारे में पढ़ा सुना तो होगा ही और संभव है कि वहां के दर्शन भी किए हों किंतु क्या आप दक्षिण भारत के गोल्डन टेंपल के बारे में जानते है. जी हां, तमिलनाडु के वेल्लोर में स्थित 1500 किलोग्राम शुद्ध सोने से बना यह गोल्डन टेंपल मां महालक्ष्मी को समर्पित है, जिसे श्री पुरम महालक्ष्मी स्वर्ण मंदिर कहा जाता है. धनतेरस और दीपावली पर माता महालक्ष्मी के दर्शन करने का विशेष महत्व है इसलिए यहां पर दर्शनार्थियों की अच्छी खासी भीड़ लगती है. माना जाता है कि संसार भर में सबसे अधिक सोना इसी मंदिर में लगा है क्योंकि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में 750 किलोग्राम सोना लगा है.
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सात सालों में तैयार हुआ मंदिर
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वेल्लोर मौजूद यह मंदिर अद्वितीय संरचना और बेहतरीन आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी प्रसिद्ध है. प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु शक्ति नारायणी अम्मा के मन में इस मंदिर को बनवाने का विचार आया तो उन्होंने इस 100 एकड़ भूमि में फैले विशाल मंदिर का निर्माण सन 2000 में शुरू कराया और इसे पूरा करने में सात साल लग गए. 2007 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ. मंदिर के गर्भ गृह में देवी महालक्ष्मी की दिव्य मूर्ति स्थापित है. मंदिर के दोनों ही भागों को करीब 1500 किलोग्राम सोने की परत से कवर किया गया, जिसकी सुनहरी चमक रात की रोशनी में देखने लायक होती है. वेल्लोर से 7 किमी दूर थिरूमलाई कोडी की पहाड़ियों की तलहटी में स्थित श्रीपुरम एक बड़ा आध्यात्मिक केंद्र है. मंदिर का निर्माण वेल्लोर की धर्मार्थ संस्था श्री नारायणी पीठम ने कराया है जिसका सुंदरता और दिव्यता के चलते बीते 14 सालों में ही यह मंदिर प्रसिद्ध तीर्थ बन चुका है. दरअसल इसके पीछे मंदिर का नाम भी है. श्री पुरम में श्री का अर्थ है देवी लक्ष्मी और पुरम निवास को कहते हैं, मान्यता है कि धन की देवी मां लक्ष्मी वास्तव में यहां निवास करती हैं और दर्शन करने वाले भक्तों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं.
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तारानुमा है मंदिर जाने का मार्ग
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श्री पुरम मंदिर का रास्ता एक तारानुमा पथ है जिसकी लंबाई लगभग 1.8 किमी है, जिसे चक्र कहते हैं. इसी से चलकर मंदिर तक पहुंचा जाता है. इस पूरे मार्ग की दीवारों पर धर्म और शास्त्र की बातें पढ़ने को मिलती है, जो मानव जीवन के उद्देश्य को बताने वाली हैं. मंदिर परिसर में एक 27 फीट ऊंची दीपमालिका भी है. इसे जलाने पर मंदिर की निराली छटा दिखती है जो वास्तविक रूप में माता लक्ष्मी का निवास स्थान लगने लगता है. दर्शनार्थी परिसर के दक्षिण से प्रवेश कर घड़ी की सुई की दिशा चलते हुए पूर्व दिशा तक आते हैं, जहां मुख्य मंदिर के भीतर जाकर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन करते हैं और फिर पूर्व में आकर दक्षिण से ही बाहर आ जाते हैं. मंदिर में मरीजों की चिकित्सा के लिए एक सामान्य अस्पताल और शोध केंद्र भी है.