स्वर्ग से पृथ्वी पर गिर रहे रहे राजा ययाति को बीच में ही रोक कर अष्टक मुनि ने उनसे कई प्रश्न किए जिससे उनके धर्मात्मा, सत्यनिष्ठ, कर्तव्यपरायण व विद्वान होने की पुष्टि हो गयी।
Swarg ki Yatra : स्वर्ग से पृथ्वी पर गिर रहे रहे राजा ययाति को बीच में ही रोक कर अष्टक मुनि ने उनसे कई प्रश्न किए जिससे उनके धर्मात्मा, सत्यनिष्ठ, कर्तव्यपरायण व विद्वान होने की पुष्टि हो गयी। इधर वार्तालाप में विलंब होता देख ययाति ने मुनि से प्रार्थना की कि अब मुझे पृथ्वी पर गिरने दीजिए क्योंकि देवता लोग शीघ्रता करने को कह रहे हैं। ययाति के ऐसा कहते ही अष्टक मुनि ने कहा कि स्वर्ग में मुझे जितने भी लोक प्राप्त होने वाले हैं, अंतरिक्ष अथवा सुमेरु पर्वत के शिखरों आदि जहां पर भी मुझे पुण्यों के कारण जाना है, वे सब मैं आपको देता हूं किंतु आप नीचे न गिरें।
ययाति का क्षत्रिय हो कर दान लेने से इनकार
राजा ययाति ने उनके आग्रह को विनम्रता पूर्वक इनकार करते हुए कहा, मैं तो ब्राह्मण नहीं क्षत्रिय हूं इसलिए आपसे दान नहीं ले सकता हूं। इस प्रकार के दान तो मैंने भी बहुत से किए हैं। अष्टक मुनि के साथ ही प्रतर्दन ऋषि भी आश्रम में तप कर रहे थे। दोनों का वार्तालाप सुन उन्होंने भी प्रस्ताव दिया, मुझे भी स्वर्ग अथवा अन्य लोकों और अंतरिक्ष में जो भी प्राप्ति होने वाली है, मैं उसे भी आपको देता हूं किंतु आप यहां न गिरें और वापस स्वर्ग में जाएं। राजा ययाति ने उन्हें भी उत्तर दिया, कोई भी राजा अपने समकक्ष व्यक्ति से दान नहीं ले सकता है। क्षत्रिय होकर दान लेना तो अधम का कार्य है। आज तक किसी भी श्रेष्ठ क्षत्रिय ने ऐसा काम नहीं किया है तो फिर मैं कैसे करूं।
पुण्यों को तिनका देकर खरीदने का मिला प्रस्ताव
राजा ययाति की बातें सुनने के बाद ऋषि वसुमान ने कहा, राजन ! अपने पुण्यों से प्राप्त होने वाले लोकों को देने का प्रस्ताव रख दिया। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि यदि आप इस दान को लेने में हिचकते हैं तो एक तिनके के बदले में सब खरीद लीजिए। ययाति उन्हें भी बुद्धिमत्ता पूर्ण जवाब दिया, यह क्रय विक्रय तो बिल्कुल भी गलत है। मैंने अपने जीवन में अब तक इस तरह की खरीद फरोख्त कभी नहीं की है। कोई भी सत्पुरुष ऐसा नहीं करता है तो मैं कैसे कर सकता हूं। अब वहां उपस्थित ऋषि औशीनर शिवि बोले, आप खरीद फरोख्त नहीं करना चाहते हैं तो कोई बात नहीं आप मेरे सारे पुण्य फल प्राप्त करें क्योंकि मैं इन्हें आपको भेंट करता हूं। आप न लेना चाहें तो न लें लेकिन मैं भी इन्हें स्वीकार नहीं करूंगा।
अचानक आकाश में दिखे पांच स्वर्णिम रथ
ऋषि औशीनर शिवि की बात भी न मानने पर अष्टक ने कहा आप एक एक के पुण्य लोक नहीं ले रहे हैं तो हम आपको अपना सारा पुण्य फल देकर स्वयं नरक में जाने को तैयार हैं। राजा बोले, मैंने जो कभी नहीं किया वह अब कैसे कर सकता हूं। इसी बीच आकाश की ओर देख कर अष्टक मुनि बोले, महाराज ये आकाश में क्या दिख रहा है, क्या इन्हीं से पुण्यलोकों की यात्रा होती है। राजा ने जवाब दिया हां, यही स्वर्णिम रथ आप लोगों को स्वर्ग में लेकर जाएंगे। अब पुनः मुनि ने कहा इन रथों से आप जाएं और हम लोग अपने समय पर आ जाएंगे। राजा ययाति ने कहा हम सब ने स्वर्ग पर विजय प्राप्त कर ली है। स्वर्ग का मार्ग भी साफ दिख रहा है इसलिए सब लोग साथ चलते हैं। दरअसल, अष्टक, प्रतर्दन, वसुमान और शिवि का प्रस्ताव अस्वीकार करने के कारण ययाति भी स्वर्ग के अधिकारी हो गए थे और सभी उन रथों में बैठ कर स्वर्ग के लिए चल पड़े।