पंचदेवों में शामिल हैं सूर्य नारायण, सूर्य को अर्घ्य देने से मिलता है दीर्घायु का आशीर्वाद और होती है मनोकामना पूरी

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सूर्य, नदी और वृक्षों ने हमारे जीवन को संभव बनाया है, तो यह हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम भी उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि अर्थात् छठ पर्व हमें यह अवसर प्रदान करता है जब सूर्यदेव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं. उनकी पूजा कर उन्हें धन्यवाद देते हुए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. सूर्य की पूजा वैदिक काल से होती चली आ रही है. सूर्य देव को वेदों की आत्मा माना जाता है क्योंकि सूर्य ही पृथ्वी को प्रकाशवान करते हैं. नवग्रहों में सूर्य ग्रह को राजा माना जाता है.  

ब्रह्मा विष्णु महेश और गणेश जी संग लिया जाता नाम

हिंदू धर्म में यूं तो 33 करोड़ देवी देवता माने गए हैं, जिनमें से ब्रह्मा विष्णु महेश के अलावा गणेश जी और सूर्यदेव को पंचदेव कहा जाता है. जिस तरह अन्य देवी देवताओं के लिए अलग-अलग दिन निर्धारित हैं उसी तरह सूर्यदेव की आराधना के लिए रविवार का दिन तय है. छठ पर्व का विशेष महत्व केवल इसलिए नहीं है कि कुछ अनुष्ठान पूरे किए जाते हैं, बल्कि इस पर्व के माध्यम से सामाजिक अस्मिता, आपसी सौहार्द्र और एकजुटता भी दिखती है. परिवार के साथ इस पर्व को मनाने के लिए रोजी रोटी के लिए अलग-अलग स्थानों पर बसे लोग भी अपने घर लौटते हैं. इस तरह यह पर्व सूर्य उपासना के साथ ही पारिवारिक एकत्रीकरण का भी माध्यम है. वैसे तो हर पर्व लोक आधारित होता है, लेकिन इसमें तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार आदि के भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका, बज्जिका व अवधी के लोग अपने को इस पर्व में एकता और सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में भी देखते हैं. भोजपुरी प्रवासियों के लिए साल भर में एक बार इस बहाने एकत्र होने सांस्कृतिक रस लेने, मिलने-जुलने तथा सामाजिक समरसता का अवसर मिलता है.

प्रणाम करके भी कर सकते हैं आराधना

छठ पर्व चार दिन का होने के साथ ही 36 घंटे के निर्जला व्रत होता है जिसमें सूर्य की उपासना की जाती है. सूर्यदेव का बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक जाति, धर्म और आर्थिक स्थिति के लोगों को ऊर्जा और ऊष्मा देने का कार्य सभी के लिए प्रेरक है. इस पर्व में सूर्य नदी और वृक्ष के महत्व के लिए इसलिए लिखा गया है, वृक्ष कबहुं नहिं फल भखें नदी न संचै नीर। परमारथ के कारने साधुन धरा सरीर।। . इस पर्व के साथ ही सर्दी की आहट हो जाती है जिससे बचाव के लिए लोग सूर्य की रोशनी अर्थात धूप में बैठ कर कहते हैं, सुरुज सुरुज घाम करा, लइका सलाम करें. इसलिए हमें सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए.  

अर्घ्य देना है सेहत का खजाना

मान्यता है कि छठ पूजा और व्रत करने से घर की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं, बच्चे दीर्घायु होते हैं और घर में शांति आती है. शाम के समय सूर्य की आराधना से जीवन में संपन्नता आती है, इस समय सूर्यदेव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं, उन्हें अर्घ्य देकर प्रसन्न किया जाता है जबकि प्रातः काल उदित होने के समय सूर्यदेव अपनी पहली पत्नी ऊषा के साथ रहते हैं जिन्हें अर्घ्य देने से व्रती की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. सूर्य की आराधना से सेहत बनती है और रोग मिटते हैं. आजकल अधिकांश लोग विटामिन डी की कमी से पीड़ित हैं जो प्रातः कालीन सूर्य की रोशनी का सेवन करने से दूर होती है. इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है, अटके कामों में सफलता मिलती है. पेट संबंधी रोगों में लाभ और विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता प्राप्त होती है. सुबह के समय सूर्य को अर्घ्य देने से मिलने वाली किरणों के प्रभाव से शरीर में प्रतिरोधक क्षमता के साथ आत्मविश्वास बढ़ता है. नाम और यश की प्राप्ति होती है.

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