Somnath Jyotirlinga: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत में सौराष्ट्र के वेरावल बंदरगाह में विराजमान है जिसे प्रभास पाटन क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. 12 ज्योतिर्लिंगों में पहले ज्योतिर्लिंग के रूप में इसकी गिनती होती है, भगवान शिव के कुल 12 ज्योतिर्लिंग बताए जाते हैं हालांकि बहुत से अन्य शिव मंदिरों को भी ज्योतिर्लिंग के समान ही सम्मान प्राप्त है. अत्यंत भव्य और वैभवशाली होने के चलते विदेशी आक्रांताओं ने इस मंदिर को लूटने के लिए कई बार ध्वस्त किया और हर बार समाज के लोगों ने पुनर्निर्मित भी किया गया. देश की आजादी के बाद भारत सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के संकल्प के अनुसार मंदिर का पुनरुद्धार कराया गया. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद 11 मई 1951 को मौजूदा मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुए थे.
मंदिर का पौराणिक इतिहास
प्राचीन भारतीय परम्परा के अनुसार सोमनाथ का अपने ससुर दक्ष प्रजापति के श्राप से चंद्र देव की मुक्ति से घनिष्ठ संबंध माना जाता है. चंद्रमा का विवाह दक्ष की सत्ताईस पुत्रियों से हुआ था किंतु उन्होंने रोहिणी का पक्ष लेते हुए अन्य रानियों की उपेक्षा की. बस इस बात से दुखी दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे दिया जिससे उसने प्रकाश की शक्ति खो दी. बाद में चंद्रमा इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए ब्रह्मा जी के पास गया तो उन्होंने प्रभास तीर्थ में भगवान शिव की आराधना करने की सलाह दी. चंद्रमा की घोर तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए अंधकार के श्राप से मुक्त करने के साथ ही कहा कि इस स्थान पर वह हमेशा मौजूद रहेंगे इस पर चंद्रमा ने सोने का मंदिर बनवाया था. चंद्रमा अर्थात सोम के कष्ट को दूर करने के कारण ही यहां के शिव मंदिर को सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कहा जाता है. बाद रावण ने एक चांदी का मंदिर बनवाया था, माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने चंदन की लकड़ी से सोमनाथ मंदिर बनवाया था. इतिहासकारों के अनुसार मंदिर को 17 बार नष्ट कर लूटा गया. किंतु हर बार इसका पुनर्निर्माण भी कराया गया. प्राचीन इतिहास के अनुसार सोमनाथ मंदिर को 1024 ईस्वी में महमूद गजनवी ने तहस-नहस कर दिया था। मूर्ति को तोड़ने से लेकर यहां पर चढ़े सोने-चांदी तक के सभी आभूषणों को लूट कर गजनी ले गया. उसने शिवलिंग को भी तोड़ने का प्रयास किया और न टूटने पर आसपास के क्षेत्र में आग लगवा दी. प्राचीन ग्रंथों के अनुसार प्रथम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की प्राण-प्रतिष्ठा वैवस्वत मन्वंतर के दसवें त्रेता युग के दौरान श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को की गई थी.
पितरों के श्राद्ध के लिए भी प्रसिद्ध
सोमनाथ मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट करता है. इस तीर्थ को पितरों के श्राद्ध के रूप में भी जाना जाता है. चैत्र, भाद्रपद और कार्तिक माह में यहां पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकत्र होकर पितरों का श्राद्ध करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है.
ज्योतिषीय मान्यता भी
ज्योतिषचार्य पंडित शशिशेखर त्रिपाठी बताते हैं कि सोमनाथ महादेव का शिवलिंग प्राचीन समय से चमत्कारी माना जाता है. जिस तरह चंद्रमा ने यहां पर महादेव की आराधना कर अपने ससुर के श्राप से मुक्ति पाई और पहले की तरह प्रकाशमान हो गया उसी तरह जिन लोगों की कुंडली में चंद्र नीच का हो अथवा चंद्रमा के कारण दोष हो तो इस शिवलिंग के दर्शन और पूजा करने से उस व्यक्ति को पीड़ा से मुक्ति मिलती है. सोमनाथ महादेव के दर्शन से साधक के जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं.