“श्री भक्तमाल” के अनुसार महाराज पृथु के अवतार के बाद भगवान विष्णु के श्री हरि अवतार को गजेन्द्रमोक्ष के नाम से भी जाना जाता है।
Shri Bhaktamal : “श्री भक्तमाल” के अनुसार महाराज पृथु के अवतार के बाद भगवान विष्णु के श्री हरि के अवतार की कथा है, जिसे गजेन्द्र मोक्ष के नाम से भी जाना जाता है।
क्षीरसागर में त्रिकूट नाम का बहुत ही सुंदर और श्रेष्ठ पहाड़ था। उसकी ऊंचाई 10 हजार योजन अर्थात 1,28,000 किलोमीटर थी और लंबाई चौड़ाई भी इतनी ही थी। इस पर्वत के तराई क्षेत्र में ऋतुराज नाम का बहुत ही शानदार बगीचा और एक सरोवर भी था। इस सरोवर के आस-पास बहुत से हाथी-हथिनी के साथ उनका सरदार भी था, जिसे गजेन्द्र कहा जाता था। एक बार वह हथिनियों के साथ घूम रहा था लेकिन तेज धूप उसे परेशान भी कर रही थी। तेजी से प्यास लगने के कारण वह पानी की तलाश में था तभी उसे कमल फूल के पराग कणों की सुगंध लगी तो वह उसी दिशा में चलते हुए सरोवर तक पहुंच गया। उसने नहाने के साथ ही प्यास भी बुझाई और पानी में खेलने लगा।
उसे मालूम भी नहीं था कि उस सरोवर में एक विशाल घड़ियाल भी है। हाथी की मस्ती में इधर- उधर उछलने से घड़ियाल को बड़ी गुस्सा आई और उसने गजेन्द्र का पैर पकड़ लिया। उसके साथ के हाथी और हथिनियों ने गजेन्द्र को निकालने की भरपूर कोशिश की किंतु कामयाब नहीं हुए। कई बार हाथी उसे कुछ बाहर खींच लेते लेकिन तभी घड़ियाल उसे पानी के भीतर खींच ले जाता। काफी देर तक दोनों के बीच रस्साकसी चलती रही। जब गजेन्द्र ने समझा कि उसके साथ के हाथी और हथिनियां लाख कोशिश के बाद भी नहीं छुड़ा पा रहे हैं तो उसे लगा कि अब तो घड़ियाल उसे खा ही लेगा। जान का संकट आते ही उसे भगवान की याद आई तो उसने मानसिक तौर पर परब्रह्म परमात्मा की शरण लेते हुए छुड़ाने की प्रार्थना की। उसने अपनी सूंड़ में एक कमल का फूल भी ले लिया और बोला, हे नारायण ! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो, रक्षा करो। भगवान ने अपने भक्त की पुकार सुनी तो तुरंत ही वहां पहुंचे और चक्र से घड़ियाल का मुंह चक्र से फाड़कर गजेन्द्र को छुड़ा दिया। बंधन कटते ही गजेन्द्र भगवान की तरह चतुर्भुज हो गया और भगवान उसे अपना पार्षद बना कर अपने लोक ले गए।