Shri Bhaktamal  : श्री नृसिंह अवतार की कथा

0
36
श्री भक्तमाल” में चौथा अवतार नृसिंह भगवान का है।

Shri Bhaktamal  : “श्री भक्तमाल” में चौथा अवतार नृसिंह भगवान का है। कथा इस तरह से है कि तीसरे अवतार वराह स्वरूप भगवान ने हिरण्याक्ष का वध किया तो उसकी माता दिति, पत्नी भानुमती, और भाई हिरण्यकशिपु सहित पूरा परिवार बहुत दुखी था। हिरण्याक्ष की मृत्यु के बाद दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु बना। उसने परिजनों और अन्य सभी को समझा बुझा कर शांत कराया किंतु स्वयं अशांत रहा। उसके भीतर बदला लेने की आग धधक रही थी, उसने कठिन तपस्या कर ऐसी शक्ति प्राप्त करने का निर्णय लिया जिससे वह त्रिलोकी का निष्कंटक राजा बन सके। 

हिरण्यकशिपु ने मंदराचल पर्वत की घाटी में जाकर घोर तप किया जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और कहा कि अमरत्व छोड़ कोई भी वर मांग लो। इस पर उसने कहा आपके बनाए हुए किसी भी प्राणी, किसी भी अन्य जीव, दिन-रात, भीतर-बाहर, अस्त्र-शस्त्र, पृथ्वी या आकाश कहीं भी मेरी मृत्यु न हो। मैं समस्त प्राणियों का एकछत्र सम्राट बन सकूं, आपके समान मेरी महिमा हो और तपस्वियों और योगियों, योगेश्वरों जैसा ऐश्वर्य मिले। ब्रह्मा जी ने कहा ऐसा ही होगा और वहां से चले गए। वरदान पाकर हिरण्यकशिपु प्रसन्न था कि उसने चतुराई से ब्रह्मा जी को ठग कर अमरत्व प्राप्त कर अपने लिए मृत्यु का दरवाजा बंद कर दिया।  वरदान पाने के बाद उसने सभी दिशाओं में रहने वाले जीवों को अपने अधिकार में कर लिया और पराक्रम से सभी लोकपालों को जीत कर इंद्रभवन में रहने लगा। 

विश्व विजेता बन उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि तपस्या, व्रत, यज्ञ आदि शुभ कर्म करने वाले सभी लोगों को मार डालो। जहां एक ओर वह भगवान विष्णु के भक्तों का संहार कर रहा था वहीं उसके घर में जन्मा उसी का बालक प्रह्लाद भगवान की भक्ति में लीन था। पुत्र को विष्णु भक्त जान वह उसे अपना शत्रु समझने लगा और उसे भी मारने का आदेश दिया। दैत्यों ने तरह-तरह के प्रयोग किए, पहाड़ से नीचे फेंका, हाथियों से कुचलवाया, जहर भी दिया गया, आग में चलने को मजबूर किया किंतु सब कुछ व्यर्थ रहा। भक्त प्रह्लाद नारायण-नारायण का जाप करते हुए पांच वर्ष की उम्र में ही लोगों को भगवान की महिमा सुनाता रहा। उसकी कथा सुनाने का यह प्रभाव पड़ा कि उसके साथ गुरुकुल में पढ़ने वाले सहपाठी दैत्यपुत्र भी भगवत भक्त बनने लगे। 

इन बातों की जानकारी मिली तो हिरण्यकशिपु को बहुत ही क्रोध आया और उसने पहले अपने सेवकों को बुरी तरह लताड़ लगायी फिर खुद ही अपने पुत्र को मारने का निश्चय किया। उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को डांटा और पूछा तू किसके बूते मेरी आज्ञा का उल्लंघन करता है। भगवान के भक्त प्रह्लाद ने बहुत ही सहजता से उत्तर दिया, मेरे साथ सर्वशक्तिमान भगवान है। बेटे की बात सुन पिता राजा हिरण्यकशिपु ने क्रोध में बोला, जरा मैं भी देखूं तेरा जगदीश्वर कहां है, यदि वह सब जगह है तो इस पत्थर के खंभे में क्यों नहीं दिखता। मैं अभी तलवार से तेरा सिर धड़ से अलग करता हूं, देखूं तेरा हरि कैसे बचाता है। इतना कहते ही वह तलवार लेकर कूदा और खंभे में बहुत जोर से घूंसा मारा और फिर वह प्रह्लाद की ओर लपका लेकिन यह क्या, वह खंभे से निकले अद्भुत प्राणी को देखकर अचम्भे में पड़ गया। वह न तो आदमी था और न ही शेर, कुछ देर तो वो हिरण्यकशिपु के साथ खिलवाड़ करता रहा और जैसे ही संध्या हुई, जोरदार सिंहनाद करते हुए हिरण्यकशिपु को उसी के दरबार की चौखट पर अपनी जंघा पर गिरा कर नाखूनों से पेट चीर कर मार डाला। ये विचित्र प्राणी ही भगवान विष्णु का चौथा अवतार नृसिंह भगवान थे। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here