जागेश्वर मंदिर
संसार में शिव-शक्ति सिरजनहार हैँ. जहाँ शिव और शक्ति दोनों जाग्रत स्वरूप में हैं वह स्थान है जागेश्वर. महादेव की महिमा जागेश्वर से कई किलोमीटर पहले से दिखने लगती है. ऊँचे देवदार व्रक्ष मानों आकाश तक शिव की शक्ति का जयगान कर रहे हों. देवों का निवास स्थान माने जाने वाले देवदार यहाँ किस कदर शिव-शक्ति की महिमा से अभिसिंचित है, इसका साक्षात प्रमाण जागेश्वर धाम प्रांगण में आकर और दर्शनीय हो जाता है. जागेश्वर महादेव जहाँ विराजमान हैं, उनके ठीक पीछे देवदार के रूप में शिव-शक्ति यानी अर्धनारीश्वर रूप की दिव्य महिमा के विराट दर्शन होते हैं. देवदार के व्रक्ष अमूमन सीधे होते हैं. मगर मंदिर प्रांगण स्थित इस देवदार में कुछ ऊँचाई के बाद दो समान शाखायें रूपांतरित हुई हैं. यही नहीं इस देवदार में अकल्पनीय तौर पर शिव की जटायें भी दिखती हैं. माहौल ऐसा कि प्रांगण का कंकर-कंकर शंकर के रूप में अवतरित होता है.
चारों तरफ से देवदार के जगंलो से घिरे प्राचीन श्री जागेश्वर धाम के मंदिर के दर्शन करते हैं भगवान शिव के पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन, जो नागेश दारुकावने के नाम से जाने जाते हैं .
मंदिर के ठीक पीछे देवदार के घने जंगल नजर आ रहे थे . अलमोड़ा से जागेश्वर धाम की ओर बढ़ते समय मौसम में सूरज की रौशनी सीधी पड़ने के कारण कुछ गर्माहट थी, किन्तु चीड़ के जंगलों के समाप्त होते ही जैसे देवदार के जंगल प्रारम्भ होते हैं मौसम में ठण्डक बढ़ जाती है क्योंकि देवदार सदैव जलश्रोत के आस पास ही पाये जाते हैं. यहां पर देवदार की छाव मॉ के आंचल से कम न थी. चल रही ठंडी हवा तन और मन पर शिवभक्ति पहूँचाने के लिए काफी थी .
जागेश्वर उत्तराखंड के कुमाऊं खंड में बसा एक छोटा सा पहाड़ी क़स्बा है . यह घने देवदार के जंगलो में मध्य बसा बड़ा ही खूबसूरत, शांत और आस्था से भरपूर स्थल है. यहाँ का मौसम अक्सर सुहाना रहता हैं .
जागेश्वर धाम के मंदिर एक प्राचीन मंदिरों का समूह हैं, जहाँ पर एक स्थान पर छोटे और बड़े सभी प्रकार के मंदिर मिलाकर करीब सवा सौ और पूरे धाम क्षेत्र के भी मंदिर मिला लिए जाए तो यह संख्या करीब डेढ़ सौ से अधिक है. समुंद्रतल से लगभग 1820 मीटर (5460 फिट) ऊँचाई पर स्थित जागेश्वर धाम अल्मोड़ा से करीब 36 किमी., पाताल भुवनेश्वर से 104 किमी० और काठगोदाम से करीब 110 किमी० की दूरी पर हैं .
जागेश्वर के इन मंदिरों का निर्माण पत्थर की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है . दरवाजों की चौखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं . मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी का अद्भुत प्रयोग किया गया है. कुछ मंदिर के शिखर काफी ऊँचे तो कुछ के छोटे आकार के भी हैं. जागेश्वर धाम के मंदिर समूह पुरातत्व के नजरिये से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं. जिसको देखते हुए भारतीय पुरात्तत्व विभाग ने मंदिर के पास ही एक अद्भुत संग्रहालय का निर्माण कराया है. इसमें 6वीं सदी की प्राचीन मूर्तियां शामिल है. इन मंदिरों का जीर्णोद्धार कत्यूरी राजाओं ने आठवीं से दसवीं शताब्दी के बीच गुप्त साम्राज्य काल के दौरान कराया था.
जगद्गुरु शंकराचार्य ने अपने भ्रमण के दौरान इसकी मान्यता को पुनर्स्थापित किया था . इस मंदिर समूह के मध्य में मुख्य मंदिर में स्थापित शिव लिंग को श्री नागेश ज्योतिर्लिंग के रूप में भी पूजा जाता है. इसी नाम का एक और ज्योतिर्लिंग द्वारिका के पास भी स्थापित है, जिसे श्री नागेश ज्योतिर्लिंग के रूप में भी मान्यता प्राप्त है.
यह जानकारी रही जागेश्वर धाम के बारे में, अब चलते हैं अपनी यात्रा वृतांत पर . मंदिर के आसपास स्थानीय दुकानदारों की काफी दुकाने थी . मंदिर से कुछ कदम पहले ही हमने एक दुकान से प्रसाद लिया और हम मंदिर में प्रवेश द्वार पहुँच गए . प्रवेश द्वार से मंदिर परिसर में कई छोटे-बड़े विभिन्न आकार के अत्यंत कलात्मक प्राचीन मंदिर नजर आ रहे थे. इन समूह में से दो मुख्य मंदिर बड़े आकार के थे, जिनके शिखर काफी ऊँचे थे . इस समय मंदिर में कुछ खास भीड़भाड़ नहीं थी, भक्तगण बड़े आराम से अपने आराध्य देवो के दर्शन करते हैं.
प्रातः 4 बजे श्रीजागेश्वर की गुप्तआरती होती है. ऊँचे शिखर वाला यह प्राचीन मंदिर परिसर के मध्य में विराजमान, जो योगेश्वर मंदिर के नाम से भी जाने जाते हैं. मुख्य द्वार पर दोनों तरफ पत्थर के बड़े-बड़े द्वारपाल की मूर्तियां उकेरी गयी है. मैं करीब पांच बजे प्रातः गर्भ गृह में पहुँचा. मध्य में एक छोटा किन्तु प्राचीन शिवलिंग अलोकिक ऊर्जा की द्विव्यता प्रसारित कर रहे थे. कहा जाता है की पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने व पूजा-अर्चना करने से भक्तो के दुःख दूर हो जाते हैं. मेरे साथ गर्भ गृह में केवल मेरा भांजा आदित्य और मंदिर के पुजारी पण्डित पूरन भट्ट जी थे. उन्होंने मुझे अखण्ड ज्योति के विषय में बताया जो कि पिछले 100 वर्षों से निरंतर प्रकाशित है. पुजारी जी ने संकल्प दिलाने के पश्चात विस्तार से जलाभिषेक एवं पूजन कराया. गर्भ गृह की ऊर्जा शब्दों में नहीं बताई जा सकती है. महादेव की महिमा की ऊर्जा को आत्मसाद करने हेतु आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय का जाप प्रारम्भ हुआ. दिव्य ऊर्जापुंज में न जाने मेरा कब ध्यान लग गया और जाप चलता गया करीब दो घंटे अखँडित जाप चला. जाप करने के पश्चात आत्मीयपुष्टता की अनुभूति हो रही थी. भक्तों की संख्या काफी हो गई थी.
इसके बाद हमने परिसर के कुछ और मंदिरों के दर्शन किये, इनमे कुछ इस प्रकार है, श्री हनुमान जी, श्री नवदुर्गा जी , श्री सूर्यदेव जी, श्री लक्ष्मीदेवी जी, श्री केदारेश्वर जी, श्री नवग्रह, श्री बालेश्वर जी आदि. जागेश्वर मंदिर समूह में लगभग सवा सौ छोटे-बड़े मंदिर है. मंदिर समूह के छोटे मंदिरों के सुन्दर शिखर बने हुए थे, पर अधिकतर छोटे मंदिर देव विहीन ही थे, मतलब उनमे किसी भी भगवान की प्रतिमा नहीं थी . हो सकता है, काल के गाल में नष्ट हो गए हो. वैसे काफी प्राचीन मूर्तियां और अवशेष पुरातत्व विभाग के संग्राहलय में रख दिए गए हैं जहां पर जाकर उनके दर्शन किए जा सकते हैं.
महामृत्युंजय मंदिर –
शिवालय में प्रवेश करते ही दाहिनी ओर भगवान आशुतोष का प्राचीन महामृत्युंजय था, जिसमें स्थापित महामृत्युंजय शिवलिंग को भारत वर्ष में स्थापित सभी बारह ज्योतिर्लिंग का उद्गम माना जाता हैं . हम भगवान को नत-मस्तक करते हुए मंदिर गर्भ-गृह में पहुँच गए . गर्भ-गृह में कुछ सामान्य आकार से बड़े शिवलिंग के पीछे ताम्बे के शेषनाग विराजित हैं. वहां शिवोपासना के साथ साथ नाग उपासना भी विधिवत हो रही थी.
यहां की नैसर्गिक प्राकृतिक सुंदरता अतुलनीय है. परमात्मा ने इस स्थल पर अपने अनमोल खजाने से खूबसूरती जी भर कर लुटाई है. पुराणों के अनुसार सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी. कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था. आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की. शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएं पूरी नहीं होती. केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं. भक्तगण महामृत्युंज का जाप यहां करते हैं. परिसर के दाहिनी ओर यज्ञ कुण्ड स्थिति है जहां प्रतिदिन यज्ञदेव को समिधा का भोग लगाया जाता है.
एक मुखी शिवलिंग में कुबेर के दर्शन
जागेश्वर परिसर से जुड़ा हुए ऊंचे भाग में जगहां थोड़ा सा ऊपर चढ़ कर श्रीकुबेर जी का मंदिर है. मंदिर के विषय में कहा जाता है कि इसी स्थान पर बहुत ज्यादा मात्रा में स्वर्ण, रत्न निकले थे. यहां एक मुखी शिवलिंग है जिसमें कुबेर जी दृश्य हैं. यहां पर भावपूर्ण उपासना करने के पश्चात कुबेर जी द्वारा सम्पन्नता का आशीष प्राप्त होता है.
कालसर्प की होती है शांति
जागेश्वर धाम के पुजारी श्री पूरन भट्ट ने बताया की कालसर्प के दोष के कारण नाग देवताओं के कोप को शांत करने के लिए उनकी उपासना विधिविधान से कराई जाती है. नागेश्वर की कृपा से नाग देवताओं को प्रसन्न करके कालसर्प योग के कुप्रभावों में न्यूनता आती है.
श्रीजागेश्वर धाम की यात्रा हेतु कुछ उपयोगी बातें –
- वैसे काफी भक्तगण अलमोड़ा में ठहरते हैं और वहां से जागेश्वर धाम के दर्शन करके शाम तक वापस अलमोड़ा पहुंच जाते हैं. लेकिन यदि वास्तविक शिवमहिमा का अनुभव करना है तो अलमोड़ा में रुकने के बजाए जागेश्वर धाम में रुकना चाहिए. अब जागेश्वर धाम में रुकने की पर्याप्त व्यवस्थाएं हैं. अलमोड़ा से जागेश्वर पहुंचने में करीब 4 से पांच घंटे लग जाते हैं अगर सुबह चले तो दोपहर तक पहुंचेंगे फिर दर्शन करेंगे. वापस जाने की जल्दी रहती है शाम तक वहां से वापसी कर लेते हैं. ऐसा करने में वह आनन्द नहीं मिलता है जो वहा रुक कर लिया जा सकता है.
- जागेश्वर धाम आने से पहले ऑनलाइन होटल या टूरिष्ट रेस्ट हाउस बुक कराकर ही आना ज्यादा बेहतर रहता है.
- माता पिता व बुजुर्गों को भी लाया जा सकता है क्योंकि यहां पर कोई चढ़ाई नहीं जो भक्तों को दर्शन के दौरान पैदल चढ़ना पड़े. मंदिर से चंद कदम पर ही सारी रुकने की व्यवस्थाएं हैं. मंदरि के द्वार तक गाडिया आती हैं.
- खाने के लिए बहुत सामग्री लाने की जरूत नहीं है. यहां पर काफी साफ सफाई का ध्यान रखने वाले ढ़ाबे हैं. कुछ लोगों ने अपने घर में ही व्यवस्था कर रखी हैं. महिलाएं कढ़ी चावल, राजमा चावल, आलू का पराठा काफी स्वादिष्ट बनाती हैं. वैसे मजेदार बात यह है कि पूरे पहाड़ पर दूर्गम जगह पर भी मैगी जरूर मिल जाती है जोकि बच्चों को निराश नहीं होने देती है.
- यहां पर एक खास बात और दिखी कि मंदिर परिसर में पुजारियों द्वारा आर्थिक शोषण नहीं किया जाता है. आपको बताएंगे कि आप पूजा कराएं. यदि मन हो तो कराएं. समाग्री के अतिरिक्त कोई भी मांग नहीं होती है. जैसी श्रद्धा भक्त की बने पुजारी ग्रहण कर लेते हैं. वर्षों से भट्ट परिवार ही यहां की पूजा पाठ की जिम्मेदारी लिए हुए हैं.



