Shiv Parvati Vivah Katha: गृहस्थ जीवन को सुखमय बनाने के लिए सुनें और सुनाएं इन दो लोगों के विवाह की पवित्र कथा, जानें मुनि भरद्वाज ने किस कथा का रसपान किया
Shiv Parvati Vivah Katha: विवाह के बाद शिव जी के कैलास पहुंचते ही समारोह में शामिल होने आए सभी देवता अपने अपने लोकों में चल गए. गोस्वामी जी राम चरित मानस के बालकांड में शिव पार्वती के श्रृंगार और भोग विलास का वर्णन करने में सकुचाते हुए सिर्फ इतना ही लिखते हैं कि दोनों जगत के माता और पिता हैं इसलिए उनके इस चरित्र का बहुत अधिक वर्णन करना ठीक नहीं. दोनों लोग गणों के साथ कैलास पर रहने लगे. नित्य नए-नए विहार करते हुए लोगों का बहुत सा समय बीत गया. तभी छह मुख वाले उनके पुत्र का जन्म हुआ जिन्हें स्वामी कार्तिकेय कहा गया.
समुद्र के समान गहरा है इनका चरित्र
छह मुख होने के कारण उन्हें षडानन भी कहा गया. बड़े होने पर उन्होंने तारकासुर से युद्ध कर उसका संहार किया, वास्तव में उसका संहार करने के लिए ही उनका जन्म हुआ था. उनके जन्म, कर्म, साहस, प्रताप और पुरुषार्थ को पूरा संसार जानता है. तुलसी बाबा अपने को मंदबुद्धि और गंवार बताते हुए लिखते हैं कि गिरिजापति महादेव का चरित्र तो समुद्र के समान बहुत ही बड़ा और गहरा है इसलिए उसका पूरा वर्णन करने की क्षमता मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति की तो है ही नहीं. फिर भी इतना तय है कि शिव पार्वती के विवाह की इस कथा जो महिला पुरुष गाएंगे और कहेंगे, वह सभी विवाह आदि और मंगल कार्यों में जीवन भर सुख ही पाएंगे.
कथा सुन भरद्वाज मुनि की आंखों से निकल आए आंसू
शिव पार्वती के विवाह की लीला सुन कर भरद्वाज मुनि सुख में इतना अधिक भाव विह्वल हो गए कि उनकी आंखों से आंसू निकल आए और त्वचा का रोम-रोम खड़ा हो गया. उनकी यह स्थिति देख विवाह प्रसंग सुना रहे ऋषि याज्ञवल्क्य बहुत ही प्रसन्न हुए और बोले, हे मुनीश्वर, इस कथा को सुनकर तुम्हारा जीवन धन्य हो गया. तुमको गौरीपति शिव जी प्राणों से भी प्रिय हैं. जिनकी शिव जी के चरण कमलों में प्रीति नहीं होती है उन्हें श्री रामचंद्र जी सपने में भी अच्छे नहीं लगते हैं. शिव जी के चरणों विशुद्ध प्रेम होना ही राम भक्त के लक्षण हैं.