शक्तिपीठः जानें माता सती के अंगों को क्यों और किसने किया टुकड़ों में विभक्त, क्या है दर्शन का महत्व

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नवरात्र में शक्ति की उपासना और देवी मंदिर का दर्शन करना पुण्य कार्य माना जाता है. इनमें भी यदि शक्तिपीठ के दर्शन करने का अवसर प्राप्त हो जाए तो समझिए मां की पूरी कृपा प्राप्त होगी. शक्तिपीठ क्या होते हैं, कैसे हुआ इनका निर्माण और क्यों हैं इनका इतना अधिक महत्व. इन सारे सवालों का जवाब आपको इसी लेख में मिलेगा. बस अंत तक पढ़ते रहिए. 

धर्मग्रंथों में अलग-अलग संख्या का उल्लेख

पवित्र शक्ति पीठ भारत ही नहीं विदेशों में भी स्थित हैं. देवी पुराण के अनुसार कुल 51 शक्तिपीठों हैं, जबकि देवी भागवत में 108 शक्तिपीठों का उल्लेख है. देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है तथा तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं. देवी पुराण में जो 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं उनमें से भारत में 42, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1,पाकिस्तान में 1 तथा नेपाल में 2 शक्तिपीठ हैं.

ये है शक्तिपीठ की पौराणिक कथा

कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री के रूप में माता दुर्गा ने सती के नाम से जन्म लिया और बाद में भगवान शिव से उनका विवाह हुआ था. एक बार की बात है कि ऋषियों ने किसी यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी देवताओं को बुलाया गया. यज्ञ स्थल में दक्ष के पहुंचते ही वहां उपस्थित सभी लोग सम्मान में खड़े हो गए किंतु भगवान शिव अपने स्थान पर बैठे रहे. अपने दामाद के इस आचरण पर दक्ष बेहद क्रोधित हुए और इसे अपमान माना. बाद में इस अपमान का बदला लेने के लिए दक्ष प्रजापति दक्ष ने भी हरिद्वार कनखल क्षेत्र में बृहस्पति सर्व यज्ञ का आयोजन किया. उन्होंने उस यज्ञ में सभी देवताओं को आमंत्रित किया किंतु जानबूझ कर भगवान शंकर को नहीं बुलाया. देवर्षि नारद से सती को इस बात की जानकारी हुई तो वो यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं किंतु भगवान शंकर ने उन्हें समझाने का प्रयास किया किंतु वह नहीं मानीं और यज्ञ में पहुंच गई. सती ने अपने पिता से न बुलाने का कारण पूछा क्योंकि अन्य पुत्रियां आमंत्रित थीं. इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को लेकर अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया. इस पर नाराज हो कर उन्होंने यज्ञ कुंड में कूद कर अपनी आहुति दे दी. सती के साथ शिव जी की आज्ञा से आए वीरभद्र ने इस पर दक्ष का सिर काट कर अन्य देवताओं को भी शिव निंदा सुनने पर भला बुरा कहा. भगवान शंकर ने यज्ञ कुंड से सती का शरीर निकाला और कंधे पर उठाकर सारे भूमंडल पर घूमने लगे, पृथ्वी पर पहुंचते हुए वो तांडव करने लगे जिससे प्रलय की स्थिति पैदा हो गयी. यह देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के भाग किए, जो पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर गिरे. सती के शरीर के टुकड़े जहां भी गिरे वह स्थान शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हो गए

अगले जन्म में फिर शिव जी बने सती के पति 

कुछ समय के बाद सती ने पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया और पर्वत के कारण पार्वती नाम पड़ा. इस जन्म में उनकी कुंडली देख महर्षि नारद ने शिवजी से विवाह होने की भविष्यवाणी की. माता-पिता की इच्छा न होने पर भी पार्वती जी ने शिव जी को मन ही मन पति मान लिया और जंगल में जाकर हजारों वर्ष तपस्या कर भगवान शंकर को वर के रूप में प्राप्त किया. 

शक्तिपीठ का महत्व

मान्यता है कि शक्तिपीठ में माता दुर्गा जाग्रत अवस्था में उपस्थित रहती हैं, इसलिए उनके दर्शन पूजन और आराधना करने वाले भक्तों को मां की सीधी कृपा मिलती है. मां की कृपा मिलने से उसके जीवन के सभी दुख दूर हो कर उसे सुख शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि नवरात्र में सभी शक्तिपीठों पर दर्शनार्थियों का मेला लगा रहता है.

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1 COMMENT

  1. यह लेख मुझे बहुत पसन्द आया| हम लोग दैनिक जीवन मे भगवान की पूजा- अर्चना करते हैं, लेकिन हमे बहुत से विषयों का ज्ञान नहीं होता है| मैं आप को, आप के इस प्रयास के लिए बहुत बहुत धन्यवाद करती हूँ| मैं भगवान से कामना करती हूँ कि आपका यह प्रयास संसार के सभी सनातन धर्म के मनाने वालों तक पहुँचे और सब जन इसे ग्रहण करे|

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