: देवताओं और असुरों ने मिल कर अमृत पाने की लालसा में समुद्र मंथन शुरु किया तो वासुकि नाग के मुख का हिस्सा असुरों और पूंछ का हिस्सा देवताओं ने पकड़ा।
Samudra Manthan: देवताओं और असुरों ने मिल कर अमृत पाने की लालसा में समुद्र मंथन शुरु किया तो वासुकि नाग के मुख का हिस्सा असुरों और पूंछ का हिस्सा देवताओं ने पकड़ा। बार बार खींचे जाने और मंदराचल पर्वत की रगड़ लगने से नाग के मुख से कभी धुआं तो कभी आग की लपटें सांस के साथ निकलने लगीं। उसके मुख से निकली सांसें कुछ ही क्षणों में बादल बन कर बरसने लगे तो खींचने से हांफ रहे देवताओं को कुछ राहत मिली। समुद्र में मंदराचल पर्वत के मंथन से जोरदार आवाजें आने लगीं और पर्वत के ऊपर के पेड़ आपस में रगड़ कर गिरने लगे। औषधीय पेड़ों का दूध और रस चू-चू कर समुद्र में गिरने लगा तो उनके गुणों का प्रभाव समुद्र के जल में पर भी पड़ने लगा।
महाभारत ग्रंथ के आदि पर्व के अनुसार उधर मंदराचल पर्वत की चोटी पर स्थित अनेकों दुर्लभ मणियां भी समुद्र के जल में निकल कर गिरीं जिनके स्पर्श से समुद्र का खारा जल अमृतत्व को प्राप्त करने लगा। समुद्र का जल दूध के रंग का हो गया और मंथन करने से दूध से घी बनने लगा। मथते-मथते जब देवता थक कर चूर हो गए तो ब्रह्मा जी से बोले, नारायण को छोड़ कर देवता और असुर सभी थक चुके हैं, लगातार मथने के बाद भी समुद्र से अमृत नहीं निकल रहा है। देवताओं के ऐसा कहने पर ब्रह्मा जी ने नारायण से आग्रह किया कि वे देवताओं को भी बल प्रदान करें। इस पर नारायण बोले, मैं ही तो समुद्र मथने वाले सभी लोगों को बल दे रहा हूं, सभी लोग पूरी शक्ति लगा कर मंदराचल को घुमाते हुए समुद्र को अमृत देने के लिए मजबूर कर दें।
नारायण के बल देते ही मंथन ने जोर पकड़ा
भगवान विष्णु के इतना बोलते ही सब बल युक्त महसूस करने लगे और दोगुनी ताकत से मथने के काम में जुट गए। परिणाम स्वरूप पूरा समुद्र इस हलचल से बेचैन सा होने लगा। समुद्र से सबसे पहले अनगिनत किरणों वाला शीतल प्रकाश से भरा हुआ चंद्रमा निकला। सभी चंद्रमा की चमक देखते हुए मंथन करते जा रहे थे तभी देवी भगवती और सुरा यानी शराब की देवी निकलीं। ठीक इसी मौके पर मंथन से सफेद रंग का उच्चैश्रवा घोड़ा निकला। पांचवें क्रम में श्री नारायण के सीने पर सुशोभित होने वाली दिव्य किरणों से युक्त कौस्तुभ मणि और वांछित फल देने वाला कल्पवृक्ष तथा कामधेनु गाय भी निकली। ये सभी समुद्र से निकल कर आकाश मार्ग से स्वतः ही देवताओं के लोक में चले गए। इसके बाद दिव्य शरीर वाले आरोग्य के देवता धन्वन्तरि प्रगट हुए जिनके हाथ में अमृत से भरा हुआ सफेद कमंडल था। अमृत के कमंडल को देखते हुए असुर मंथन छोड़ “ये मेरा है”, “ये मेरा है” बोलते हुए शोर मचाने लगे।