सप्तर्षियों ने तप में लीन पार्वती जी को कई तरह से समझाने का प्रयास किया कि वे शिव जी को वर के रूप में पाने का प्रयास छोड़ दें क्योंकि संसार में उनसे भी अच्छे वर मिल जाएंगे. उनकी इन बातों का पार्वती जी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और साफ कर दिया कि वह विवाह करेंगी तो सिर्फ शिव जी से ही. पार्वती जी ने उनके पैरों पर पड़ते हुए कहा कि अब आप लोग घर जाइए क्योंकि बहुत देर हो चुकी है. शिव जी के प्रति उनके मन में इतनी श्रद्धा और प्रेम देख कर मुनियों ने उन्हें जगत जननी कह कर संबोधित करते हुए कहा कि वह माया है और शिव जी भगवान हैं. इस तरह आप दोनों इस जगत के माता-पिता हैं. इतना कहते हुए मुनि उनके चरणों में सिर रख कर चल दिए.
पार्वती का प्रेम सुन आनंद में डूबे शिव जी
पार्वती जी से मिलने के बाद मुनि सीधे पर्वतराज हिमवान के पास पहुंचे और कहा कि वह जंगल जाकर पार्वती जी को घर ले आएं, उनकी तपस्या पूरी हुई. यहां पर संदेश देने के बाद सप्तर्षियों ने सीधे शिव जी के पास पहुंचे और उन्हें पूरा घटनाक्रम विस्तार से बताया. पार्वती जी की प्रेम की बाते सुनते ही शिव जी आनंद में डूब गए. इसके बाद शिव जी मन को स्थिर कर प्रभु श्री राम का ध्यान करने लगे.
इसलिए बनी शिव जी के विवाह की रणनीति
उसी समय की बात है कि अत्यधिक शक्तिशाली अजर अमर असुर तारक से कई युद्धों में हार चुके देवता ब्रह्मा जी के पास समाधान के लिए पहुंचे. उन्होंने बताया कि शिव जी का पुत्र ही उनका वध कर सकता है. उन्होंने समाधिस्थ शिव जी के विवाह का उपाय बताते हुए कहा कि उनके सामने कामदेव को भेज कर उनकी समाधि भंग कराओ फिर मैं खुद ही उनके पैरों पर सिर रख दूंगा.
कामदेव समझ गया कि उसका अंत आ गया
देवता ब्रह्मा जी के सुझाए गए उपाय के आधार पर कामदेव के पास पहुंचे और अपनी बात कही. कामदेव ने हंस कर कहा कि शिव जी को समाधि से उठाने का मतलब है कि उसके बाद मेरा बचना मुश्किल है फिर भी मैं लोक हित में यह कार्य करुंगा.
लेख का मर्म
यह तय होने के बाद कि असुर तारक का वध शिव जी के पुत्र के हाथों ही हो सकता है, सब उनके विवाह का प्लान करने लगे. इसमें भी मुख्य भूमिका ब्रह्मा जी की रही. इस लेख से यह सीख मिलती है कि अपना नुकसान सह कर भी लोकहित के कार्य को करने से पीछे नहीं हटना चाहिए.