अपने पति महादेव के लाख मना करने के बाद भी बिना निमंत्रण के पिता दक्ष के घर पहुंची सती ने देखा कि वहां बहुत बड़ा यज्ञ हो रहा है जिसमें महादेव को छोड़ कर अन्य सभी देवता आमंत्रित किए गए हैं और उनके लिए उचित आसन भी हैं. हां, पिता के घर जाने की अत्यधिक जिद करने पर महादेव ने अपने कुछ विशेष गण जरूर उनके साथ भेज दिए. घर पहुंचने पर पिता को देख सम्मान सहित प्रणाम करने पर भी उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया, उनके प्रभाव में अन्य किसी ने भी उन्हें यथोचित सम्मान नहीं दिया. बहनें उन्हें देख मुस्कुरा कर चली गई जबकि मां ने बेटी के प्रति अपना स्नेह प्रदर्शित किया.
जब अपमान के क्रोध में, सती ने नहीं बख्शा किसी को भी
यज्ञ स्थल का नजारा देखने के बाद सती का रोम-रोम जलने लगा और समझ में आ गया कि महादेव उन्हें पिता के घर बिना बुलाए जाने पर क्यों रोक रहे थे. पति द्वारा परित्याग करने पर सती को उतना दुख नहीं हुआ था, जितना दुख यज्ञ मंडप में शिव जी का भाग न देख कर हुआ. उनकी मां ने उन्हें बहुत तरह से समझाने की कोशिश की किंतु वह शिव जी का सार्वजनिक रूप से अपमान न सह सकीं और क्रोध में जलने लगीं इसके बाद डांटते हुए स्वर में यज्ञ सभा में उपस्थित सभासदों और मुनि श्रेष्ठों को संबोधित किया.
सती ने साफ कहा कि जिन लोगों ने भी इस मंडप में शिव जी की निंदा की या सुनी है, उन सबको इस कर्म का फल तुरंत ही प्राप्त होगा, उन्होंने यहां तक कहा कि मेरे पिता दक्ष भी पछताएंगे. वो बोलीं, जहां संत, शिवजी और लक्ष्मी पति विष्णु जी की निंदा सुनी जाए, वहां के बारे में ऐसी मर्यादा बतायी गयी है कि यदि वश चले तो निंदा करने वाले की जीभ ही काट ली जाए और यदि ऐसा न कर सके तो कान मूंद कर वहां से निकल जाना चाहिए. गोस्वामी तुलसीदास राम चरित मानस के बालकांड में वहां का वर्णन करते हुए लिखते हैं, कि त्रिपुर दैत्य को मारने वाले महेश्वर संपूर्ण संसार की आत्म, जगतपिता सबका हित करने वाले हैं. सती ने कहा उनका जन्म दक्ष प्रजापति से जरूर हुआ है किंतु वह मंदबुद्धि है, जो शिव जी की निंदा कर रहे हैं.
सती ने अपने को योगाग्नि में जला लिया
सती ने कहा कि चंद्रमा को ललाट पर धारण करने वाले वृषकेतु शिव जी को हृदय में धारण करके मैं इस शरीर का तुरंत ही त्याग कर दूंगी और ऐसा कहते हुए उन्होंने अपना शरीर योगाग्नि में जलाकर भस्म कर लिया जिससे विशाल यज्ञशाला में हाहाकार मच गया क्योंकि इस घटना की उम्मीद तो किसी को भी नहीं थी. सती के मरने की बात सुनते ही उनके साथ आए शिव जी के गण यज्ञ का विध्वंस करने लगे. जैसे यह जानकारी शिव जी को मिली उन्होंने क्रोध में आकर अपने बलशाली गण वीरभद्र को भेजा जिन्होंने वहां पहुंचते ही पूरे यज्ञ को तहस नहस कर उपस्थित देवताओं को भी दंड दिया.
कथा का मर्म
सती के पिता दक्ष प्रजापति और शिव जी की इस पौराणिक कथा का सार यही है, कि पति के मना करने पर कोई कार्य जबरन नहीं करना चाहिए, साथ ही पति का अपमान पिता भी करे तो बर्दाश्त नहीं करना चाहिए नहीं तो परिस्थितियां जीवन समाप्त करने को विवश कर देती हैं.