समुद्र मंथन शुरु हुआ तो कई रत्न निकले और वे सब आकाश मार्ग से होते हुए देवलोक में पहुंच गए।
Samudra Manthan : समुद्र मंथन शुरु हुआ तो कई रत्न निकले और वे सब आकाश मार्ग से होते हुए देवलोक में पहुंच गए। दिव्य शरीर धारण करने वाले अमृत भरा सफेद कमंडल लेकर धन्वन्तरि निकले दो असुरों ने शोर मचाना शुरु किया,यह मेरा है, यह मेरा है। इसी शोरगुल के बीच चार सफेद दांतों वाला ऐरावत हाथी निकला जिसे इंद्र ने ले लिया। मंथन इसके बाद भी जारी रहा और बहुत अधिक मथने के बाद कालकूट विष निकला जिसकी गंध मात्र से सब बेचैन और बेसुध होने लगे। कालकूट विष की विषाक्तता को देख कर ब्रह्मा जी ने शिव जी से आग्रह किया तो उन्होंने इस विष को पान करते हुए अपने कण्ठ में रोक लिया। विष की तेजी के कारण ही उनका कण्ठ नीला पड़ गया और वे नीलकण्ठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
अमृत के लिए होने लगी दोनों पक्षों में खींचतान
मंथन के साथ ही इन घटनाओं को देख कर असुरों की उम्मीद टूटने लगी तो लक्ष्मी और अमृत को पाने के लिए जो देवताओं और असुरों मिल कर मंथन कर रहे थे, उनके बीच फूट पड़ गयी। अमृत के लिए दोनों पक्षों के बीच खींचतान होने लगी। इसी मौके पर भगवान विष्णु मोहिनी स्त्री का वेश धारण कर उनके बीच पहुंचे। असुर मोहिनी स्त्री को देख कर उसके रंग रूप और सौंदर्य पर मोहित हो गए।
असुर उस मोहिनी स्त्री का भेद ही नहींं जान सके कि ये तो साक्षात विष्णु जी हैं जो उनके साथ छल करने आए हैं
विष्णु बने मोहिनी स्त्री
असुर उस मोहिनी स्त्री का भेद ही नहींं जान सके कि ये तो साक्षात विष्णु जी हैं जो उनके साथ छल करने आए हैं। उन्होंने अमृत का कमंडल उन लोगों से ले लिया और सुमधुर वाणी में बोली, आप लोग अलग-अलग लाइन बना कर बैठ जाएं, मैं एक-एक कर सभी को अपने हाथों से अमृत पान कराऊंगी। इतना सुनते ही सब लाइन बना कर बैठ गए। इसी बीच राहु नाम के असुर ने देवताओं जैसा रूप बदला और उनके बीच जा बैठा। मोहिनी रूपी विष्णु देवताओं को अमृत पान करा रहे थे, राहु का क्रम आया तो उसे भी पान कराने लगे, अमृत अभी उसके गले तक ही पहुंचा था कि चंद्रमा और सूर्य ने उसका भेद बता दिया। बस फिर क्या था, भगवान विष्णु उसी वक्त अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। राहु का पहाड़ के समान सिर आकाश में उड़ कर गरजने लगा और धड़ पृथ्वी पर गिर कर तड़फने लगा। तभी से वह चंद्रमा और सूर्य का दुश्मन बन गया।