पं. राजेंद्र प्रसाद त्रिपाठी
प्रदक्षिणा, जिसे परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय धर्म और संस्कृतियों में एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रक्रिया है. इसका अर्थ है देवताओं, पवित्र स्थलों या मूर्तियों के चारों ओर घुमावदार गति में चलना. प्रदक्षिणा का शाब्दिक अर्थ “दक्षिण की ओर चलते हुए परिक्रमा करना” है, जिसमें व्यक्ति का दाहिना अंग देवता की ओर होता है. इस प्रक्रिया के दौरान माना जाता है कि व्यक्ति उस पवित्र स्थान की ऊर्जा को अवशोषित करता है.
प्रदक्षिणा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मों में प्रदक्षिणा की विशेष मान्यता है. यह पूजा अनुष्ठानों का एक अभिन्न अंग है, जिसे श्रद्धालु गर्भगृह, अग्नि, नदियों, वृक्षों, मूर्तियों या अन्य पवित्र वस्तुओं के आसपास गोलाकार में चलते हुए संपन्न करते हैं. विवाह संस्कारों में भी अग्नि के चारों ओर प्रदक्षिणा करना एक अनिवार्य कार्य है, जिसे देवताओं और अग्नि को साक्षी मानकर किया जाता है.
यह माना जाता है कि पवित्र स्थान के चारों ओर घूमने से वहां की सकारात्मक ऊर्जा को प्राप्त करना सरल हो जाता है. यही कारण है कि मंदिरों, तीर्थ स्थानों, और अन्य धार्मिक स्थलों पर प्रदक्षिणा को विशेष रूप से महत्व दिया जाता है.
प्रत्येक देवता के लिए प्रदक्षिणा की संख्या
धार्मिक शास्त्रों में प्रत्येक देवता के लिए कितनी बार प्रदक्षिणा की जानी चाहिए, इसका स्पष्ट उल्लेख किया गया है. ‘कर्म लोचन’ ग्रंथ के अनुसार:
– दुर्गा जी की एक प्रदक्षिणा
– सूर्य देव की सात प्रदक्षिणा
– गणेश जी की तीन प्रदक्षिणा
– विष्णु भगवान की चार प्रदक्षिणा
– शिव जी की आधी प्रदक्षिणा
शिव जी की आधी प्रदक्षिणा के पीछे एक विशेष धार्मिक नियम है, जिसे ‘सोम सूत्र’ कहा जाता है. यह माना जाता है कि जिस ओर शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल गिरता है, उसे पार नहीं करना चाहिए और इसलिए शिव की पूर्ण प्रदक्षिणा नहीं की जाती.
प्रदक्षिणा का महत्व और लाभ
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि जो लोग प्रदक्षिणा करते हैं, उन्हें अनेक प्रकार के आध्यात्मिक और धार्मिक लाभ प्राप्त होते हैं. उदाहरणस्वरूप:
– तीन प्रदक्षिणा साष्टांग प्रणाम के साथ करने पर व्यक्ति को दस अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य प्राप्त होता है.
– सहस्रनाम का पाठ करते हुए की गई प्रदक्षिणा सप्त द्वीपवती पृथ्वी की परिक्रमा के समान पुण्य देती है.
– विष्णु भगवान की तीन परिक्रमा करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है.
यह भी माना जाता है कि कामना या इच्छा के अनुसार प्रदक्षिणा की संख्या बदल सकती है.
विशेष परिक्रमा स्थल और अवसर
कुछ धार्मिक स्थलों और अवसरों पर प्रदक्षिणा विशेष महत्व रखती है, जैसे:
– गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा: भगवान कृष्ण से जुड़ी यह परिक्रमा विशेष पुण्यदायक मानी जाती है.
– पीपल और बरगद की परिक्रमा: इन वृक्षों की प्रदक्षिणा को जीवन में समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है.
– होलिका दहन की परिक्रमा: इस अवसर पर प्रदक्षिणा से बुरी शक्तियों से रक्षा और समृद्धि की कामना की जाती है.
प्रदक्षिणा करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
प्रदक्षिणा के दौरान देवी-देवताओं का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है. साथ ही, शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि एक हाथ से प्रणाम या अधूरी प्रदक्षिणा पूर्व में किए गए पुण्य की हानि का कारण बन सकती है. इसलिए प्रदक्षिणा के समय ध्यानपूर्वक और पूर्ण श्रद्धा के साथ प्रक्रिया का पालन करना चाहिए.
प्रदक्षिणा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह आध्यात्मिक उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है. शास्त्रों के निर्देशानुसार देवताओं की प्रदक्षिणा करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ होते हैं, बल्कि इससे जीवन में शांति, समृद्धि और पुण्य की प्राप्ति होती है.



