ब्रह्मर्षि नारद ने पार्वती जी के मस्तक की रेखाएं पढ़ने के बाद उनका भविष्य बांचते हुए जब होने वाले पति की विशेषताएं बतायीं तो वे इतने पर ही शांत नहीं रहे बल्कि उन्होंने उन विशेषताओं वाले का नाम भी बताया कि उनके साथ विवाह होते ही जो विशेषताएं सबको दोष के रूप में दिख रही हैं, वह सब गुणों के रूप में दिखने लगेंगी. उन्होंने पर्वतराज हिमवान और मैना को बताया कि गंगा नदी में शुद्ध और प्रदूषित दोनों ही तरह के जल बहते हैं फिर भी कोई उन्हें अपवित्र नहीं कहता है. गंगाजल से बनी शराब का संत कभी भी सेवन नहीं करते लेकिन यही शराब यदि गंगा जी में मिल जाए तो पवित्र हो जाती है. ऐसा ही अंतर ईश्वर और जीव में है.