ब्रह्मर्षि नारद ने पार्वती जी के मस्तक की रेखाएं पढ़ने के बाद उनका भविष्य बांचते हुए जब होने वाले पति की विशेषताएं बतायीं तो वे इतने पर ही शांत नहीं रहे बल्कि उन्होंने उन विशेषताओं वाले का नाम भी बताया कि उनके साथ विवाह होते ही जो विशेषताएं सबको दोष के रूप में दिख रही हैं, वह सब गुणों के रूप में दिखने लगेंगी. उन्होंने पर्वतराज हिमवान और मैना को बताया कि गंगा नदी में शुद्ध और प्रदूषित दोनों ही तरह के जल बहते हैं फिर भी कोई उन्हें अपवित्र नहीं कहता है. गंगाजल से बनी शराब का संत कभी भी सेवन नहीं करते लेकिन यही शराब यदि गंगा जी में मिल जाए तो पवित्र हो जाती है. ऐसा ही अंतर ईश्वर और जीव में है.
शिव को पाने के लिए करना होगा कठोर तप
महर्षि ने कहा कि शिव जी भगवान हैं इसलिए इस विवाह में हर तरह से कल्याण ही कल्याण है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि इतना सुयोग्य वर पाने के लिए पार्वती को कठोर तप करना होगा, क्योंकि महादेव की आराधना बहुत ही कठिन है लेकिन तप करने से वह बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और फिर मनोवांछित फल देते हैं. उन्होंने हिमवान से कहा कि तुम्हारी कन्या तप करे तो त्रिपुरारी महादेव होनहार को मिटा सकते हैं. संसार में वर तो बहुत से हैं किंतु इस कन्या के लिए शिवजी को छोड़ कर दूसरा कोई वर नहीं है. शिव जी अपनी आराधना करने वालों को वर देने वाले, शरणागत के दुखों का नाश करने वाले, कृपा के समुद्र और सेवकों के मन को प्रसन्न करने वाले हैं. इतना कह कर भगवान का स्मरण करते हुए
देवर्षि के जाते ही मैना ने पर्वतराज से कही मन की बात
देवर्षि नारद ने पार्वती जी के सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और पर्वतराज से कहा कि संदेह का त्याग करो, हर तरह से कल्याण ही होगा. इतना कह कर देवर्षि नारायण नारायण कहते हुए ब्रह्मलोक को चल दिए. गोस्वामी तुलसीदास जी बालकांड के 79 वें दोहे में कहते हैं कि इसके बाद एकांत पाकर पर्वतराज हिमवान की पत्नी मैना ने उनसे कहा, हे नाथ मैं मुनि के वचनों का अर्थ नहीं समझ पाई. आप मेरी कन्या का विवाह उसी के साथ कीजिए जिसका उत्तम कुल और अनुकूल घर हो. पार्वती मुझे प्राणों से भी प्यारी है इसलिए किसी अयोग्य वर के साथ विवाह नहीं किया जाएगा भले ही मेरी बेटी कुंवारी ही रहे. यदि उसके जैसी सुकन्या के योग्य वर न मिला तो हम लोगों को हमेशा पश्चाताप बना रहेगा और लोग यही कहेंगे कि पर्वत स्वभाव से ही जड़ यानी मूर्ख होते हैं.