Shashishekhar Tripathi
शारदीय नवरात्र के पावन अवसर पर आज दर्शन करते हैं मां विंध्यवासिनी के. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में पतित पावनी गंगा के तट पर विंध्याचल पहाड़ी पर स्थित मां विंध्यवासिनी के मंदिर की मान्यता शक्तिपीठ के रूप में है. शारदीय हो या वासंतिक दोनों ही नवरात्रों में मंदिर में लाखों की संख्य़ा में श्रद्धालु मां के दर्शन कर आशीर्वाद मांगने आते हैं. मान्यता है कि माता यहां महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती देवी के रूपों में दर्शन देती हैं. कहा जाता है कि नवरात्र के नौ दिनों में माता यहीं पर निवास करती हैं और श्रद्धा तथा आस्था के साथ पूजा करने वाले अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं.
पौराणिक ग्रंथों की मान्यता
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार देवकी के आठवें गर्भ से जन्मे श्री कृष्ण को बचाने के लिए गोकुल में माता यशोदा के गर्भ से जन्मी जिस बालिका को वसुदेव जी लेकर आए थे, वह वास्तव में भगवान की शक्ति योगमाया थीं. इसलिए जब कंस को देवकी की आठवीं संतान होने की सूचना मिली तो वह कारागार पहुंचा जहां देवकी और वसुदेव थे, उसे यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि आठवीं संतान कन्या है. जैसे ही उसने में जमीन पर पटक कर मारना चाहा, कन्या उसके साथ से छूट कर आकाश में पहुंच गयी. योगमाया ने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित कर कंस से कहा, मूर्ख तुझे मारने के लिए देवकी की आठवीं संतान जन्म ले चुकी है, मुझे मारने से क्या होगा. बाद में देवताओं ने उनसे कहा कि धरती पर आपका कार्य पूरा हुआ अब देवलोक चलिए लेकिन देवी योगमाया बोलीं, अब में धरती पर ही भिन्न भिन्न रूपों में रहूंगी. आप मेरी पहली स्थापना विंध्याचल में करें. देवताओं ने एक शक्तिपीठ बना कर उनकी स्तुति की और देवी वहीं पर विराजमान हो गयीं. शिवपुराण में उन्हें सती का अंश माना गया है, सती होने के कारण उन्हें वनदुर्गा भी कहा जाता है. श्रीमद्भागवत में उन्हें नंदजा भी कहा गया है जबकि उनका एक नाम कृष्णानुजा भी है. इस तरह वे श्री कृष्ण की बहन भी थीं और उन्होंने योगविद्या तथा महाविद्या बन कर कंस और चाणूर मुष्टि जैसे उसके शक्तिशाली असुरों का संहार कराया.
सिद्धि प्राप्ति का स्थान
मां विंध्यवासिनी के कारण पूरा विंध्याचल ही बहुत पवित्र है, देवी भक्त यहां पर विभिन्न सिद्धियों की प्राप्ति के लिए साधना करने आते हैं. मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा सप्तशती के अनुसार ब्रह्मा विष्णु और महेश भी देवी की मातृ रूप में उपासना करते हैं, उनसे मिली ऊर्जा के आधार पर ही वे सृष्टि का संचालन करते हैं.
कुलदेवी के रूप में आराधना
माता विंध्यवासिनी को नागवंशीय राजा कुलदेवी के रूप में पूजते थे. विंध्याचल धाम के त्रिकोण पथ पर भैरवनाथ मंदिर के सामने स्थित है. मान्यता है कि पाताल लोक से इसी रास्ते से नागवंशीय आते थे और अपनी कुलदेवी की आराधना करते थे. यदुवंशी भी उन्हें अपनी कुलदेवी मान कर आराधना करते हैं क्योंकि यदुवंशी नंदबाबा और यशोदा के यहां कन्या रूप में योगमाया का जन्म हुआ था.
नवरात्र से संबंधित बहुत अच्छी जानकारी मिली